मनु बहुत प्रसन्न
था.
आज उसका दसवां जन्मदिन था. उसके पिता ने उससे कह रखा था कि वह उसके लिए एक सुंदर उपहार लेकर आयेंगे. परन्तु उसी दिन उन्हें घर लौटने में देर हो गई. ऑफिस में अचानक एक आवश्यक काम आ पड़ा था. वह समय से घर आ नहीं पाए.
आज उसका दसवां जन्मदिन था. उसके पिता ने उससे कह रखा था कि वह उसके लिए एक सुंदर उपहार लेकर आयेंगे. परन्तु उसी दिन उन्हें घर लौटने में देर हो गई. ऑफिस में अचानक एक आवश्यक काम आ पड़ा था. वह समय से घर आ नहीं पाए.
जब वो घर लौटे तो
रात के आठ बज रहे थे. मनु उदास था. उसके मित्र जा चुके थे. उसे लग रहा था कि पिता उपहार
न ला पायें होंगे. परन्तु जैसे ही उसके पिता आये मनु प्रसन्नता से झूम उठा. पिता जन्मदिन का उपहार लाये थे, एक सुंदर साइकिल.
मनु कई महीनों से एक
साइकिल की मांग रहा था. पर पिता ने कभी हामी ही न भरी थी. साइकिल देख मनु ख़ुशी से उछल
पड़ा. वह उसी समय साइकिल पर घूमने जाना चाहता था.
“बेटा, पहले मुझे केक तो
खिलाओ, और इस समय अँधेरे में बाहर जाना उचित न होगा. कहीं गिर गये तो चोट लग जायेगी. सुबह
जाना और अपनी साइकिल पर खूब घूमना,” पिता ने कहा.
“क्या इस साइकिल को
मैं अपने कमरे में रख लूं?” मनु ने पूछा.
“अरे, साइकिल गैरिज में
रखो. बैडरूम में क्या कोई अपनी साइकिल रखता है?” पिता ने समझाया.
मनु को अच्छा तो न
लगा पर वह अपनी नई साइकिल गैरिज में रख आया. सारी रात वह साइकिल के सपने ही देखता
रहा और सुबह होते ही गैरिज कि ओर भागा.
जैसे ही उसने गैरिज का दरवाज़ा खोला उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी. उसे आश्चर्य हुआ, समझ ही
न आया कि गैरिज में कौन रो रहा था. अचानक उसके मुहं से निकला, “कौन है गैरिज में?”
“मैं हूँ.”
“मैं कौन?”
“मैं, साइकिल.”
मनु ठिठक कर रह गया.
“तुम रो रही हो?
मैंने तो किसी साइकिल को रोते नहीं देखा.”
साइकिल ने कोई उत्तर
न दिया और रोती रही.
“तुम रो क्यों रही
हो?”
“यहाँ गैरिज में बहुत
मच्छर हैं. इन मच्छरों के कारण मैं रात भर सो भी न पाई. यहाँ गर्मी भी कितनी है, न
कोई पंखा है, न कोई वातानुकूलक.” साइकिल ने सुबुकते हुए कहा.
“वातानुकूलक? वह
क्या होता है?”
“एयर कंडीशनर, तुम
इतना भी नहीं जानते?”
“अरे वाह, मुझे नहीं
पता था कि एक साइकिल को भी गर्मी लगती है, मच्छर काटते हैं?”
“और सुबह की चाय का
क्या हुआ? अभी तक चाय भी नहीं पी,”साइकिल ने धीमे से पूछा.
“तुम्हें बैड टी भी चाहिये?”
मनु को समझ न आ रहा था की यह किस प्रकार की साइकिल है.
“हां, बैड टी लेने की
आदत है, पर सप्ताह में सिर्फ तीन दिन. बाकि दिन मैं संतरे का रस पीना पसंद करती
हूँ. तुम लोग खाने में ज़्यादा मिर्च-मसाले तो नहीं डालते?” साइकिल ने पूछा.
“क्यों?”
“मुझे सादा भोजन ही
अच्छा लगता है. भोजन सादा हो तो तन स्वस्थ रहता है और मन शांत.”
“तुम्हारी कोई और
इच्छा हो तो वह भी बता दो?” मनु ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा.
“तुम ने कोई कुत्ता
तो नहीं पाल रखा?” साइकिल ने पूछा.
“तुम्हें कुत्ते
अच्छे नहीं लगते क्या?”
“मैं कुत्तों से बहुत
चिढ़ती हूँ. उनका सामन्य ज्ञान बहुत कम होता है. उन्हें न्यूज़ पेपर फाड़ने में बड़ा मज़ा आता है, पढ़ना नहीं. पुरानी फिल्मों के गीत तो उन्हें बिल्कुल अच्छे नहीं लगते. सिर्फ शोर-शराबे वाले गाने ही सुनते हैं यह कुत्ते,”
साइकिल ने नखरे भरी आवाज से कहा.
“अच्छा, मुझे यह सब
नहीं पता था.” मनु ने नाक चढ़ा कर बोला.
“तुम्हें तो यह भी
पता न होगा कि मैं दिन में बीस घंटे सोती
हूँ और दस घंटे जागती हूँ?”
‘तुम मुझे मूर्ख
समझती हो? एक दिन में सिर्फ चौबीस घंटे होते हैं, तीस नहीं.”
“वर्ष में कितने महीने होते हैं?” साइकिल ने थोड़ा ऊंची आवाज़ में कहा.
“बारह.”
“तुम निरे मूर्ख हो, एक साल में महीने होते हैं दस, बारह नहीं.”
“तुम्हारी बकवास सुन
कर तो मैं पागल हो जाऊंगा,” मनु चिल्लाया
“पागलपन का भी इलाज
है मेरे पास.” साइकिल ने कहा.
मनु को उसकी बात सुन
कर गुस्सा आ गया और उसने साइकिल को ज़ोर से लात मारी. साइकिल धीरे से दीवार पर चढ़
गयी और अपने को बचा लिया.
“तुम्हारे पाँव इतने
छोटे हैं कि तुम कुछ नहीं कर सकते,” साइकिल ने चिढ़ाते हुए कहा.
मनु ने अचानक झपट कर
साइकिल की हैंडल पकड़ ली और उसे दीवार से नीचे खींचने लगा. परन्तु साइकिल जरा भी नहीं हिल्ली. साइकिल धीरे-धीरे छत की
ओर खिसकने लगी. इतना ही नहीं मनु की बांह भी खिंचती गई. मनु को लगा जैसे उसकी बांह
रबड़ की बनी हुई थी और लम्बी होती जा रही थी. देखते ही देखते साइकिल छत पर चली गयी और मनु की बाहं कोई सात-आठ फुट
लम्बी हो गई.
उसने साइकिल की हैंडल
छोड़नी चाही पर उसका हाथ जैसे हैंडल से चिपक गया था. मनु घबरा गया और पुरी ताकत लगा
कर हाथ को छुडाने की कोशिश करने लगा. पर हाथ छूटा ही नहीं, चिपका रहा.
साइकिल छत पर
गोल-गोल घूमने लगी. मनु का सर चकराने लगा. अचानक साइकिल ने घूमना बंद कर दिया. मनु
छिटक कर दूर जा गिरा. मनु ने अपनी बाहं को टटोला, वह तो पहले जैसी ही थी, न लम्बी,
न छोटी. साइकिल छत पर ही थी और फिर से रो रही थी और बार-बार कह रही थी, “मुझे
गर्मी लग रही है, मुझे गर्मी लग रही है.”
मनु भाग कर अपने
पिता के पास आया. उन्हें सारी बात बताई. वह बोले, “अरे ऐसा भी कहीं होता है? तुम
ने अवश्य ही कोई सपना देखा है.”
पर मनु अपनी बात पर
अड़ा रहा और बोला, “आप दुकानदार से बात करो.”
पिता ने फोन किया तो
दुकानदार ने कहा, “लगता है आपके पास गलती से जादूगर सिमोन की साइकिल चली गई है. वह
साइकिल बहुत ही शैतान है. उसने हमें भी तंग कर रखा था.”
“अब हम क्या करें?”
पिता ने पूछा.
“आप कुछ नहीं कर
सकते, जो करना है वह जादूगर सिमोन ही करेगा. तब तक उस साइकिल से ज़रा सावधान ही रहें. वह
साइकिल कभी भी आप सब के लिए मुसीबत बन सकती है.”
पिता बात कर ही रहे
थे की गैरिज से अजीब-अजीब आवाजें आने लगीं. जैसे कोई कह रहा हो, “मनु, जल्दी उठो
देर हो गई. स्कूल बस छूट जायेगी.”
हड़बड़ा कर मनु उठ
बैठा ओर बोला, “क्या मैं अभी तक सो रहा था? क्या यह सब एक सपना था?”
माँ ने कहा, “अरे,
अपने आप से बातें मत करो. बिस्तर छोड़ो और झटपट तैयार हो जाओ. पहले ही देर हो चुकी
है, स्कूल बस आती ही होगी. देर करगे तो बस छूट जायेगी.”
***********
©आई बी अरोड़ा
No comments:
Post a Comment