Saturday, 16 May 2015

मृत्यु निश्चित थी

एक छोटी पर उत्साह से भरी सेना लेकर सिकन्दर युनान से निकला. उसकी आँखों में सारे विश्व को जीतने का सपना था. एक के बाद एक विजय प्राप्त कर उसकी सेना भारत तक आ पहुंची.

तक्षशिला के राजा अम्बी ने युद्ध नहीं किया. उसने यूनानियों की अधीनता स्वीकार कर ली. परन्तु झेह्लम नदी के तट पर सिकन्दर को पुरु के सेना का सामना करना पड़ा. घमासान युद्ध हुआ. पुरु हार गया.

जीत से उत्साहित सिकन्दर ने अपने सेनापतियों को आदेश दिया, “कूच की तैयारी करो. हम भारत के अन्य राज्यों को भी जीतेंगे”.

परन्तु यूनानी सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. पुरु की सेना छोटी थी लेकिन अपनी वीरता से उस सेना ने यूनानियों के दाँत खट्टे कर दिए थे. पुरु हार तो गया था पर इस युद्ध ने यूनानियों को साहस तोड़ दिया था.

यूनानियों को सूचना मिली थी कि गंगा पार एक विशाल सेना उनका सामना करने के लिए तैयार थी. उस सेना में दो लाख पैदल, अस्सी हज़ार घुड़सवार, आठ हज़ार रथ और छह हज़ार हाथी थे. इतनी बड़ी सेना से यूनानी टक्कर लेने को तैयार न थे.

सिकन्दर को विश्वास न हुआ कि उसकी सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था. विश्व-विजय पूरी किये बिना लौट जाना उसके लिए हार समान ही था. क्रोध और निराशा ने उसे घेर लिया. उसने अपने आप को अपने खेमे में बंद कर लिया और धरती पर लेट गया.

उसके मित्र और सेनापति असमंजस में पड़ गये. मित्रों ने उसे समझाया. सेनिकों ने बिलख-बिलख कर वापस लौटने की प्रार्थना की. अंततः निराश सिकन्दर ने अपने देश लौट चलने का निर्णय किया. सेना का एक भाग नावों पर सवार हो नदी के रास्ते सागर की ओर चल दिया. बाकी सेना धरती मार्ग से चल दी.

सिकन्दर स्वयं नदी मार्ग से गया. यात्रा कठिन थी. कई जगह उन पर आक्रमण हुआ और कई राज्यों से उन्हें युद्ध करना पड़ा. ऐसी ही एक लड़ाई माल्वों के साथ हुई.

माल्व अपने रण कोशल के लिए सारे भारत में प्रसिद्ध थे. यूनानियों ने उनके राज्य पर हमला कर दिया. माल्वों के कई किले ध्वस्त कर दिए.

माल्वों के एक किले पर जब यूनानियों ने हमला किया तो किले की दीवार पर खड़े सेनिकों ने तीरों की वर्षा कर उन्हें पछाड़ दिया. दीवार पर चढ़ने के लिए यूनानियों ने एक जगह सीढ़ी लगाई. कुछ यूनानी सैनिक ऊपर चढ़ने लगे. चढ़ने वालों में सबसे आगे स्वयं सिकंदर था.

जैसे ही सिकंदर पहुंचा, सीढ़ी टूट कर नीचे गिर गई. किले के भीतर खड़े सेनिकों ने दीवार पर खड़े यूनानियों पर तीरों की बौछार कर दी. पीछे लौटना संभव न था. आगे मृत्यु दिखाई दे रही थी. बचाव का कोई उपाय न था.

अचानक सिकन्दर दीवार से नीचे कूद गया. उसने अपनी दोनों बाहें फैला रखे थे. वह ऊंची आवाज़ में माल्व सेनिकों को ललकार रहा था. माल्व सेनिकों को लगा कि जैसे आकाश से बिजली आ गिरी हो. घबरा कर वह पीछे हट गये. लेकिन उनकी घबराहट पल भर के लिए ही थी.

माल्व सेनिकों ने देखा कि सिकंदर के साथ सिर्फ दो सैनिक थे. माल्व यूनानियों पर टूट पड़े. सिकन्दर वीरता के साथ लड़ा पर घायल हो गया. तभी एक माल्व सैनिक ने इतनी ज़ोर से एक तीर मारा कि कवच को चीरता हुआ तीर सिकन्दर की छाती में धंस गया. सिकंदर इस चोट को सहन न कर पाया और धरती पर लुढ़क गया. माल्व सैनिक तलवार लेकर सिकन्दर पर झपटा.

दोनों युनानी अपने राजा की रक्षा के लिए आगे आये. माल्व सैनिक उन दोनों पर ही टूट पड़ा. उसने इतना भयंकर आक्रमण किया कि एक यूनानी मारा गया और दूसरा बुरी तरह घायल हो गया. परन्तु घायल यूनानी तब तक लड़ता रहा जब तक सिकन्दर कुछ संभल न गया.

सिकंदर उठ खड़ा हुआ और माल्व सैनिक से भिड़ गया. माल्व सैनिक घायल हो चुका था. वीरता से लड़ता हुआ वह मारा गया. तभी एक अन्य माल्व सैनिक वहां आ पहुंचा. उसने लकड़ी की गदा से सिकंदर की गर्दन पर प्रहार किया. सिकन्दर लड़खड़ा गया. खड़े रहने के लिए उसे दीवार का सहारा लेना पड़ा.

सिकंदर बिलकुल अकेला था. उसके शरीर की सारी शक्ति खत्म हो चुकी थी. अब वह लड़ने की स्थिति में न था. सामने खड़ा माल्व सैनिक किसी भी पल हमला कर सकता था. सिकन्दर को अपनी मृत्यु निश्चित प्रतीत हो रही थी.

उधर यूनानी सैनिक किले में घुसने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे. वह जानते थे की उनका सम्राट किले के अंदर फंस चुका था और उसका बचना असंभव था. किले के बाहर भीषण लड़ाई हो रही थी. दोनों ओर के सैनिक जान हथेली पर रख कर लड़ रहे थे.

एक भयंकर युद्ध के बाद यूनानी सैनिक किले के भीतर आने में सफल हो गये. कुछ यूनानियों ने तुरंत अपने असहाय राजा को घेर लिया. अन्य सैनिक माल्वों से लड़ने लगी. माल्व वीरता से लड़े पर हार गये.

घावों के कारण सिकन्दर बेहोश हो गया था. यूनानी उसे उठा कर अपने शिविर में ले आये. अफवाह फ़ैल गई कि उसकी मृत्यु हो गई  थी.

यूनानी चिकित्सकों ने सिकन्दर की छाती में धंसा तीर निकालने का बहुत प्रयास किया पर वो सफल न हुए. सिकंदर दर्द से छटपटा रहा था. जब किसी भी प्रकार तीर निकाला न जा सका तो चिकित्सकों ने तीर काट डाला. फिर उसका कवच उतारा और शल्य क्रिया से छाती में धंसा तीर का फल छाती से निकाला.

सिकन्दर के घाव गहरे थे. उपचार में बहुत समय लगा. यूनानी सैनिक बेचैन हो रहे थे. स्वास्थ्य में सुधार होने पर वह अपने सेनिकों से मिला, उन्हें उत्साहित किया. अपने सम्राट को जीवित देख यूनानी ख़ुशी से झूम उठे. यूनानी सेना अपने देश वापस चल दी.
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(प्लूटार्क के वर्णन से प्रेरित)

© आई बी अरोड़ा
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सिकंदर से सम्बंधित एक और कहानी ‘दस प्रश्न’

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