दस प्रश्न
पुरु को हरा कर
सिकंदर भारत के अन्य राज्यों को जीतने का
सपना देखने लगा. परन्तु यूनानी सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. अपनी सेना के
व्यवहार से सिकंदर बहुत दुःखी व निराश हुआ. परन्तु उसने यूनान लौटने का फैसला कर
लिया.
उन्हीं दिनों कुछ
सन्यासियों ने उन राजाओं को उकसाया जिन्होंने सिकंदर के सामने घुटने टेक,
यूनानियों की अधीनता स्वीकार कर ली थी. एक राजा ने विद्रोह कर दिया. सिकंदर ने
सेना की एक टुकड़ी भेजी. युद्ध हुआ. वह राजा हार गया.
सिकंदर के आदेश पर
युनानिओं ने दस सन्यासियों को पकड़ लिया. उन पर आरोप था कि वह राजाओं को विद्रोह करने के लिए उकसा रहे थे.
जब उन सन्यासियों को
सिकन्दर के सामने लाया गया तो सिकंदर ने कहा, “तुम ने अपने राजा को भड़काया. उसने
विद्रोह किया. इस विद्रोह का परिणाम तो तुम सब ने देख ही लिया है. अब तुम सब को भी
दंडित किया जायेगा. तुम सब को मृत्यु दंड मिलेगा. परन्तु पहले किसे दंड दिया जाये
यह तय करने के लिए मैं तुम सब से एक-एक प्रश्न पूछूँगा. जो संन्यासी सबसे पहले गलत
उत्तर देखा उसे ही सबसे पहले मृत्युदंड दिया जाएगा. किस सन्यासी ने पहले गलत उत्तर
दिया है, इस बात का निर्णय सबसे वृद्ध सन्यासी करेगा.”
सिकन्दर की बात सुन
सन्यासी न डरे, न घबराये. वह सब चुपचाप उसके प्रश्नों की प्रतीक्षा करने लगे.
सिकंदर ने एक
सन्यासी से पूछ, “इस संसार में कौन अधिक हैं, जीवित या मृत?”
सन्यासी ने कहा,
“जीवित ही अधिक हैं, क्योंकि मृत तो इस संसार में हैं ही नहीं.”
दूसरे सन्यासी से प्रश्न
किया, “सबसे बड़े प्राणी कहाँ पाये जाते हैं, सागर में या धरती पर?”
उसने उत्तर दिया,
“धरती पर, क्योंकि सभी सागर धरती का भाग ही हैं.”
“सबसे चालाक पशु
कौन-सा है?” यह प्रश्न तीसरे सन्यासी से पूछा.
सन्यासी ने कहा, “वह
पशु जिसके विषय में मनुष्य अभी तक कुछ नहीं जानता.”
चौथे सन्यासी से
सिकन्दर ने पूछा, “तुम सब ने अपने राजा को विद्रोह करने के लिए क्यों उकसाया था?”
“क्योंकि हम चाहते
थे कि या तो वह गौरव के साथ जीये या कायरों की भांति मर जाये,” उसने निडरता से
कहा.
पांचवें सन्यासी से
पूछा, “तुम्हारे विचार में कौन पुराना है, दिन या रात?”
उसने उत्तर दिया,
“दिन; दिन रात से एक दिन अधिक पुराना है.”
“इस बात का अर्थ
क्या है?” सिकन्दर ने आश्चर्य से पूछा.
“राजन, जटिल
प्रश्नों के उत्तर भी जटिल ही होते हैं,” सन्यासी ने मुस्कुराते हुए कहा.
अगले सन्यासी से
उसने प्रश्न किया, “आदमी को ऐसा क्या करना चाहिये कि सब उससे प्यार करें?”
उत्तर मिला, “अगर वह
शक्तिशाली है तो उसे ध्यान रखना चाहिये कि कोई भी उससे भयभीत ने होवे.”
सातवें सन्यासी से
सिकन्दर ने पूछा, “देवता-समान बनने के लिए एक मनुष्य को क्या करना चाहिये?”
उसने उत्तर दिया,
“वही जो किसी मनुष्य के लिए करना असंभव है.”
“तुम्हारे विचार में
कौन अधिक शक्तिशाली है, जीवन या मृत्यु?” यह प्रश्न आठवें से किया.
“राजन, जीवन ही सब
बुराइयों का सामना करता है और उनसे जूझता है, इसलिये जीवन अधिक शक्तिशाली है.”
नवें सन्यासी से
प्रश्न किया, “आदमी को कब तक जीवित रहना चाहिय?”
“जब तक मृत्यु जीवन
से बेहतर न लगे,” उस सन्यासी ने कहा.
अब सिकंदर ने सबसे
वृद्ध सन्यासी की ओर देखा और बोला, “तुमने सबके उत्तर सुन लिए. बताओ किस सन्यासी
ने सबसे पहले गलत उत्तर दिया?”
वृद्ध सन्यासी
बिल्कुल शांत था. उसने बड़े धैर्य से कहा, “राजन, मेरे विचार में हर एक ने दूसरे से
अधिक गलत उत्तर दिया.”
“अगर तुम्हारा यह
निर्णय है तो सबसे पहले तुम्हें ही दंड दिया जायेगा,” सिकन्दर ने घूरते हुए कहा.
“अगर आप अपना वचन
तोड़ना नहीं चाहते तो ऐसा नहीं हो सकता.”
“क्यों?”
“आपने कहा था की सबसे
पहले उसे दंड दिया जाएगा जो सबसे पहले गलत उत्तर देगा,” सन्यासी ने मंद-मंद
मुस्काते हुए कहा.
वृद्ध सन्यासी का
उत्तर सुन सिकंदर अवाक हो गया. सन्यासियों की बुद्धिमता से वह प्रभावित हो चुका
था. उसने सबको स्वतंत्र कर दिया. ऐसा माना जाता है की एक सन्यासी को वह अपने साथ
यूनान ले गया था.
(प्लूटार्क के वर्णन
पर आधारित)
© आई बी अरोड़ा
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