हाथी दाँत
सर्दी के दिन थे.
सूरज मोटी रज़ाई ओढ़ कर खूब मज़े से सो रहा था. उठने का उसका मन ही न था. सर्दी में
देर तक सोने का मजा ही कुछ अलग होता है.
मुर्गे ने ज़ोर से
बांग दी. सूरज ने बांग सुनी और अनसुनी कर दी. मुर्गे ने दूसरी बांग दी. बांग सुन
कर सूरज ने रज़ाई से सिर को अच्छी तरह लपेट लिया और धीमे से कहा, “अभी नहीं
उठूंगा.”
जैसे ही सूरज ने सिर
को रज़ाई से लपेट लिया अँधेरा थोड़ा घना हो गया. तब मुर्गे ने तीसरी बार बांग दी.
सूरज ने धीरे से अपना सिर रज़ाई के बाहर निकाला और कहा, “चुप हो जा, मेरे भाई. उठ
रहा हूँ.”
जैसे ही सूरज ने अपना सिर
रज़ाई से बाहर निकाला, आकाश में हल्की-हल्की लालिमा फैलने लगी. परन्तु तब भी जंगल
के सब पशु-पक्षी सोये रहे. कोई भी अपने बिस्तर से न उठा. किसी का भी मन उठने को न
हो रहा था.
तभी एक ज़ोर की चीख
सारे जंगल में गूंज गई. चीख इतनी ज़ोर की थी कि सब एक साथ नींद से जाग उठे. सब
अपने-अपने बिस्तर छोड़ कर घरों से बाहर आ गये. सब हैरान थे. किसी को समझ न आया कि
क्या हुआ है. सब एक साथ बोलने लगे.
“कौन चिल्लाया?”
“कौन चीखा?”
“क्या हुआ?”
“कहां हुआ?”
“किस ने चीख मारी?”
“कौन चिल्ला रहा
है?”
सब उस ओर भागे जिस
ओर से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी. निकट आने पर सब ने पाया कि चिल्लाने की आवाजें
हाथी के घर से आ रही थीं.
“अरे मर गया, मेरा
दाँत, बहुत दर्द हो रहा है, क्या करूं,” हाथी चिल्ला कर कह रहा था.
अब सब को समझ आया कि
कौन चीख-चिल्ला रहा था और क्यों. हाथी चिल्ला रहा था क्यों कि उसके दाँत में दर्द
हो रहा था.
“तुम तो छोटे बच्चों
की तरह चीख रहे हो, कुछ तो शर्म करो,” बाघ ने भीतर आ कर कहा.
“अरे भाई, रात भर
में मज़े से सोया. पर सुबह उधर मुर्ग़े ने बांग दी इधर मेरे दाँत में दर्द शुरू हो
गया. इतनी ज़ोर का दर्द हुआ की अपने-आप ही मुहं से चीख निकल आई. अपनी चीख सुन कर तो
मैं स्वयं ही डर गया था,” हाथी ने कहा और फिर चिल्ला कर बोला, “अरे मर गया, बहुत
दर्द हो रहा है.”
“दांतों के किसी
डॉक्टर को दिखलाओ, इस तरह रोने चिल्लाने से क्या होगा,” बाघ ने झिड़कते हुए कहा.
“इतनी सुबह कौन
डॉक्टर मिलेगा? दस बजे से पहले कोई भी डॉक्टर अपने क्लिनिक नहीं आता,” खरगोश ने
कहा. औरों के साथ वह भी आया था.
“एक डॉक्टर है जो
मरीज़ों को अपने घर पर भी इलाज करता है, तुम उसके घर जाकर अपना दाँत उसे दिखला सकते हो”
भालू ने कहा.
“मैं मरीज़ नहीं हूँ,
बस मेरे दाँत में दर्द है,” हाथी ने अकड़ कर कहा.
“किस डॉक्टर की बात
कर रहे हो?” बाघ ने पूछा.
“डॉक्टर दाँतसाज़,
दांतों का बड़ा अच्छा डॉक्टर है. हम सब उसके पास ही जाते हैं अपने दांतों का इलाज
कराने,” भालू ने कहा.
“चलो, मैं साथ चलता
हूँ,” बाघ ने हाथी से कहा.
“नहीं, मैं बच्चा
नहीं हूँ. मैं स्वयं चला जाऊंगा,” इतना कह हाथी डॉक्टर दाँतसाज़ के घर की ओर चल
दिया.
डॉक्टर दाँतसाज़ अभी
सो रहा था. हाथी ने बड़े ज़ोर से उसके घर का दरवाज़ा खटखटाया, इतनी ज़ोर से कि आवाज़
सुन डॉक्टर डर के मारे बिस्तर से नीचे आ गिरा. वह भागा-भागा अपने बैडरूम से बाहर
आया.
“कौन है? कौन मूर्ख
इस तरह दरवाज़ा पीट रहा है? दरवाज़ा तोड़ना है क्या?” डॉक्टर ने चिल्ला कर कहा और
दरवाज़ा खोला.
दरवाज़ा खोला तो बाहर
हाथी को देखा. हाथी दर्द से करहा रहा था.
“झटपट मेरा दाँत
देखो, बहुत दर्द हो रहा है,” हाथी ने कहा.
डॉक्टर हाथी के
दांतों की जांच करने लगा. परन्तु हड़बड़ाहट में वह अपना चश्मा पहनना भूल गया. उसे
ठीक से दिखाई न दी रहा था. उसने दांतों के खूब जांच की पर उसे पता ही न चला कि कौन
सा दाँत ख़राब. परन्तु वह कुछ बोला नहीं और जांच करता रहा.
(क्रमश)
© आई बी अरोड़ा
No comments:
Post a Comment