Friday, 28 November 2014

जान बची तो लाखों पाये
इक दिन चूहा जोश में आया
च्यवनप्राश था उसने खाया

चूहे ने हाथी को पुकारा
घर जाकर उसको ललकारा

सुन ललकार डर गया हाथी
लगा ढूँढने वह कोई साथी

उसको सिंह की आई याद
 ‘फोन पर करता हूँ उससे बात’

सिंह ने झटपट फोन उठाया
बात जान कर वह भी घबराया

उसने हाथी को समझाया
छुटकारे का राज़ बताया 

हाथी समझा सिंह की बात
 चूहे से उसने मिलाया हाथ

भेंट में दी इक लाख की थैली
चेहरे पर मुस्कान थी फैली

सिंह ने सुझाया था यही उपाये
‘भइया, जान बची तो लाखों पाये.’
                                              
                                                        © आई बी अरोड़ा

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