Friday, 21 November 2014


हाथी दाँत
(भाग २, पहले भाग के लिए २०nov की पोस्ट देखें)

“मेरा एक ही दाँत ख़राब है. इतनी देर से क्या देख रहे हो?” हाथी ने थोड़ा गुस्से से कहा.
“ मेरे विचार में तो आपके सब दाँत ठीक हैं. आपके गले में शायद कुछ फंसा हुआ है. शायद कोई काँटा सा चुबा हुआ है. आपका दाँत दर्द नहीं कर रहा, आपका गला दर्द कर रहा है.”
“क्या तुम मुझे मूर्ख समझते हो? मेरा दाँत दर्द कर रहा है. मैं जानता हूँ. और तुम कह रहे हो कि मेरा गला दर्द कर रहा है.” हाथी ने झुंझला कर कहा.
“आपको लग रहा है कि दाँत में दर्द है. पर दर्द दाँत में नहीं है गले में है. मैंने अच्छी तरह जांच कर ली है,” डॉक्टर ने फिर कहा.
“तुम्हें क्या कम दिखाई देता है जो ऐसी बात कह रहे हो?” हाथी ने चिल्ला कर कहा. दर्द से उसका गुस्सा भड़क रहा था.
हाथी की बात सुन डॉक्टर को ध्यान आया कि उसने चश्मा तो पहन न रखा था. बिना कुछ बोले वह भीतर भागा और अपना चश्मा ले कर आया. चश्मा पहन कर वह फिर से दांतों की जांच करने लगा.
लेकिन अब हाथी नाराज़ हो गया. बोला, “मैं तुम से अपना इलाज नहीं कराऊंगा. तुम निरे मूर्ख हो. पीछे हटो और मुझे जाने दो.”
“नहीं, नहीं, मैं बहुत अच्छा डॉक्टर हूँ और इस वन के कई पशु मुझ से अपने दांतों का इलाज करवाते हैं,” डॉक्टर ने अकड़ कर कहा. “मैं ही आपके दांतों का इलाज करूंगा. अब मैं आपको ऐसे  न जाने दूंगा. आपका एक दाँत ख़राब है उसे निकालना होगा.”
“नहीं...”
परन्तु डॉक्टर ने हाथी को कुछ कहने का अवसर ही न दिया और झट से उसे बेहोश करने वाला इंजेक्शन लगा दिया. हाथी बेहोश हो गया. 
डॉक्टर अब हाथी का दाँत निकालने लगा. उसने एक बड़ा सा फोरसेप हाथ में लिया, उस फोरसेप से हाथी का एक दाँत पकड़ा और लगा उस दाँत को खींचने. पर दाँत था कि हिल्ला ही नहीं. डॉक्टर ने दाँत को खींचा, घुमाया, हिल्लाया-डुल्लाया , आगे से पकड़ा, पीछे से पकड़ा, इधर से खींचा, उधर से खींचा. पर दाँत था के निकला ही नहीं. डॉक्टर के पसीने छूटने लगे.
इतना ही नहीं, हाथी बेहोश था पर बेहोशी में भी अपनी सूंड दायें-बायें पटक रहा था. एक-दो बार उसकी सूंड डॉक्टर से टकरा गई थी. डॉक्टर को ऐसे लगा कि हंटर से उसे मारा हो.
डॉक्टर दाँत निकालने की पूरी कोशिश कर रहा था और हाथी की सूंड से बचने की कोशिश भी कर रहा था. पर न वह दाँत निकाल पा रहा था और न ही उसकी सूंड से बच पा रहा था.
तभी बाघ और भालू वहां आ पहुंचे. वह दोनों हाथी का हाल-चाल पूछने आये थे.  परन्तु वहां का दृश्य देख कर वह दोनों अपनी हंसी न रोक पाये.
“अरे, इस तरह हंस क्यों रहे हो, मेरी मदद करो. भालू भाई, तुम इस सूंड को पकड़ लो और मुझे इसकी मार से बचाओ. बाघ भाई, तुम मुझे पकड़ लो.”
“तुम्हें क्यों पकड़ लूं?” बाघ ने आश्चर्य से पूछा.
“दाँत निकालते-निकालते मैं तीन बार गिर चुका हूँ. दाँत तो निकला नहीं, मेरी पीठ दुखने लगी है. तुम मुझे पकड़ लो और मुझे गिरने से बचाओ,” डॉक्टर ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा.
तीनों ने खूब परिश्रम किया और हाथी का दाँत निकाल ही दिया.
“देखा, मुझ सा योग्य डॉक्टर सारे वन में नहीं होगा. कैसा भी दाँत क्यों न हो मैं निकाल कर ही दम लेता हूँ,” डॉक्टर दाँतसाज़ ने बड़े अभिमान के साथ कहा.
दाँत देख कर भालू ने कहा, “ आपने सही दाँत ही निकाला है न? कोई गड़बड़ तो नहीं कर दी?”
“क्या मैं मूर्ख हूँ जो सही दाँत निकालूँगा? मैंने ख़राब दाँत निकाला है,” डॉक्टर ने बनते हुए कहा.
“अरे डॉक्टर, सही दाँत का मतलब वह दाँत जो ख़राब था, जिस दाँत में दर्द हो रहा था?”
डॉक्टर कुछ कहने ही वाला था कि हाथी होश में आ गया. होश में आते ही वह चिल्लाया, “अरे मर गया, मेरे दाँत में बहुत दर्द हो रहा है.”
“दाँत में दर्द कैसे हो सकता है? जिस दाँत में दर्द हो रहा था वह तो मैंने निकाल दिया है.” डॉक्टर ने हाथी को निकाला हुआ दाँत दिखाया.
“यह क्या कर दिया तुमने? डॉक्टर, यह खाने वाला दाँत नहीं था, यह तो दिखाने वाला दाँत था, इसे क्यों निकाल दिया. दर्द खाने वाले दाँत में हो रहा है. दिखाने वाला दाँत तो बिल्कुल सही था.” 
इतना कह, हाथी डॉक्टर के पीछे भागा. वह गुस्से से आग बबूला हो रहा था और डॉक्टर की खूब पिटाई करना चाहता था. जान बचाने के लिए डॉक्टर सरपट भाग खड़ा हुआ.

उस दिन के बाद डॉक्टर दाँतसाज़ उस वन में फिर दिखाई न दिया. पर बेचारा एक दाँत वाला हाथी बहुत दुःखी है. सब उसका मज़ाक जो उड़ाते हैं.

© आई बी अरोड़ा

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