राजकुमार लघुनाक
महाराज समर सेन की नाक बहुत ही विशाल थी. इसलिए उन्हें अपनी नाक पर बहुत गर्व था. उनके राज्य में हर व्यक्ति की नाक बड़ी थी. जिस आदमी की नाक जितनी बड़ी होती थी वह उतना ही आकर्षक और प्रभावशाली माना जाता था.
लेकिन राजकुमार सूर्य सेन की नाक छोटी थी. उसकी नाक किसी चुहिया की नाक समान छोटी थी.
हर कोई राजकुमार की नाक का मजाक उड़ाता था. यहाँ तक कि महाराज समर सेन स्वयं भी उसका परिहास करते थे. उसे राजकुमार लघुनाक कह कर बुलाते.
जब भी कोई उसकी नाक की ओर संकेत करता या उसका मज़ाक उड़ाता तो राजकुमार को बहुत बुरा लगता था. वह बहुत अपमानित महसूस करता था.
तब वह चुपचाप महल से निकल कर सुंदर वन के अंदर चला जाता. वहाँ के पशु-पक्षियों से वह प्यार करता था. उसे वह वन बहुत अच्छा लगता था. वन के ऊपर फैला नीला आकाश और वन में बहते निर्मल पानी के झरने अच्छे लगते थे. उस वन की तितलियाँ उसे सब से अधिक प्रिय थीं.
वन में कोई भी उसकी छोटी नाक का मज़ाक न उड़ाता था. इसलिए वह वन के अंदर आकर सदा प्रसन्नचित्त रहता था.
एक दिन नन्हा राजकुमार वन में तितलियों के देख रहा था. अचानक उसे एक सुंदर तितली दिखाई दी. उस तितली के पंख लाल, पीले और नीले रंग के थे. वह एक अद्भुत तितली थी. तभी उसने देखा कि उस तितली के ऊपर एक परी बैठी हुई थी. परी बहुत छोटी थी, राजकुमार के हाथ की छोटी अंगुली से भी बहुत छोटी. उस अनोखी तितली पर बैठ कर परी हवा में मज़े से उड़ रही थी.
राजकुमार हैरान हो गया. उसने परियों के बारे में कई कहानियाँ सुन रखी थीं. लेकिन उसने कोई परी आज तक देखी न थी.
अचानक राजकुमार को लगा कि तितली और उस पर बैठी परी एक मकड़ी के जाल में फंसने वाली थीं. मकड़ी बहुत बड़ी और भयंकर थी और अपने जाल में फंसे हुए बड़े-बड़े कीटों को सरलता से खा सकती थी.
राजकुमार ने चिल्ला कर परी को सावधान किया. “नन्हीं परी, सावधान! देखो उधर मकड़ी का जाल है. तुम उस जाल में फँस जाओगी!”
परी ने उसकी बात सुनी और तितली को संकेत किया. तितली ने झट से अपने उड़ने की दिशा बदल ली और राजकुमार की ओर आ गई.
“चेतावनी देने के लिए धन्यवाद. मेरी तितली कभी ऐसी भूल नहीं करती. लेकिन आज अगर एक पल की भी देरी होती तो हम इस मकड़ी की जाल में अवश्य फँस जाते. अपनी जादू की छड़ी भी मैं आज साथ लाना भूल गयी थी. अगर हम इस जाल में फंस जाते तो मुसीबत हो जाती. तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद,”
परी ने राजकुमार के निकट आकर उससे कहा.
“तुम कौन हो?”
राजकुमार ने पूछा.
“मैं एक परी हूँ. मैं कभी-कभी यहाँ आती हूँ. मुझे यह वन बहुत अच्छा लगता है. मुझे यहाँ के पशु-पक्षियों से प्यार है. मुझे आकाश और निर्मल पानी के झरने भी अच्छे लगते हैं. यह अद्भुत वन है.”
“अरे, तुम तो बिलकुल मेरे जैसी हो. मैं राजकुमार सूर्य सेन हूँ. मुझे भी यह वन बहुत प्रिय है. पर तुम कितनी छोटी हो?”
परी उसकी बात सुनकर खिलखिला कर हँस दी.
“अच्छा, एक बात बताओ. क्या अन्य परियाँ तुम्हारा मज़ाक नहीं उड़ातीं? तुम इतनी छोटी जो हो?”
“मैं दूसरी परियों की तरह ही खूब लंबी हूँ. मैंने जादू से अपने को छोटा बना लिया है. मुझे इस नन्हीं सुंदर तितली पर सवारी करने में बड़ा मज़ा आता है. लेकिन अपने को छोटा बनाये बिना मैं इस पर नहीं बैठ सकती. परी लोक लौट कर मैं फिर से लंबी हो जाऊँगी.”
“यह तो बड़ी आश्चर्यजनक बात है.”
“इस सुंदर तितली पर बैठ कर इस अद्भुत वन में घूमने में मुझे बड़ा आनंद मिलता है.”
“क्या तुम्हारी जादू की छड़ी मेरी नन्ही नाक को बड़ा बना सकती है?”
राजकुमार ने झिझकते हुए परी से पूछा.
“तुम्हारी नाक तो सुंदर है. सुंदर ही नहीं, बहुत सुंदर है. अगर जादू से मैंने इसे बड़ा बना दिया तो यह भद्दी लगेगी. तुम अपनी नाक को बिगाड़ना क्यों चाहते हो?”
“हमारे देश में हर व्यक्ति की नाक बहुत विशाल है. बस मेरी नाक बिलकुल छोटी है. इसलिये हर कोई मेरी छोटी नाक का मजाक उड़ाता है. महाराज भी मेरा मज़ाक उड़ाते हैं. मुझे बहुत बुरा लगता है. कभी-कभी मेरे आंसू भी निकल आते हैं. इसलिए मैं राजमहल से भाग आकर यहाँ इस वन में आकर छिप जाता हूँ,”
राजकुमार ने धीमे से कहा.
“इस बात की कभी चिंता न करो कि लोग तुम्हारे बारे में क्या कहते है. एक बात अच्छे से समझ लो, इस संसार में तुम्हारा जैसा कोई और नहीं है. तुम अनमोल हो, तुम अद्वितीय हो. लोग तुम्हारा सम्मान तभी करेंगे जब तुम स्वयं अपना सम्मान करोगे,” परी ने प्यार से समझाया.
“मैं तो हर समय अपनी छोटी नाक के विषय में ही सोचता रहता हूँ. मेरी नाक के बारे में लोग जो कुछ कहते हैं, उसी को लेकर दुःखी रहता हूँ. मुझे अपने आप से शर्म आती है. मैं अपने को कोसता रहता हूँ.”
“क्या तुम जानते ही कि तुम में एक अद्भुत गुण है?” परी ने कहा.
“कैसा गुण?”
“तुम आने वाले संकट को औरों से पहले जान जाते हो.”
“सच में?”
राजकुमार ने आश्चर्य से पूछा.
“हाँ. अभी-अभी क्या हुआ था? मुझे तो पता न चला था कि हम मकड़ी के जाल में फंसने वाले थे. यह तितली बहुत चतुर है, लेकिन यह भी देख न पाई की हम विनाश की ओर जा रहे थे. पर तुम्हें आभास हो गया था और तुम ने सही समय पर हमें सावधान कर दिया था,” परी ने कहा.
“शायद तुम सही कह रही हो पर मैंने कभी इस बात की ओर ध्यान ही नहीं दिया. मैं तो हमेशा अपनी नाक के बारे में सोचता रहता हूँ.”
“आत्मविश्वासी बनो और अपने आप पर गर्व करो.”
राजकुमार प्रसन्नता से मुस्कराने लगा. अपनी छोटी नाक को लेकर अब वह दुःखी न था. परी को धन्यवाद कहा वह राजमहल लौट आया.
महल में प्रवेश करते ही उसे महाराज समर सेन दिखाई दिए. महाराज अकेले न थे. कुछ मंत्री और कई सैनिक उनके साथ थे. वह सब शिकार करने जा रहे थे. कोई और दिन होता तो इतने सारे लोगों को एक साथ देख कर राजकुमार सहम जाता. यह सोच कर कि वह लोग उसकी नाक का मज़ाक उड़ायेंगे, वह भयभीत हो जाता. लेकिन आज ऐसा न हुआ. वह बिलकुल न घबराया.
महाराज समर सेन ने मुस्करा कर उसकी नाक को धीमे से दबाया. राजकुमार को बुरा न लगा. उसने अपमानित महसूस न किया. वह तो मुस्करा दिया. उसकी मुस्कान बहुत ही मधुर और मनमोहक थी.
उसका बदला हुआ रुप देख कर राजा प्रभावित हुए, उन्हें अच्छा लगा.
“राजकुमार, हमारे साथ चलो. हम विचित्र वन जा रहे हैं. वहाँ एक बाघ गाँव के लोगों को मारने लगा है. वह नरभक्षी बन गया है. हम उसे पकड़ने जा रहे हैं.”
राजकुमार कभी भी राजा के साथ शिकार करने न गया था. राजा का निमंत्रण पा कर वह प्रफुलित हुआ.
“महाराज, क्या एक नरभक्षी बाघ को पकड़ना संभव है?”
राजकुमार ने बड़े विश्वास के साथ पूछा.
“हम प्रयास करेंगे. अगर उसे जीवित न पकड़ पाए तो उसे मार डालेंगे.”
दुपहर बाद सब लोग विचित्र वन पहुंच गये. बाघ को पकड़ने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई. हर कोई पूरी तरह चौकस था.
राजकुमार भी सतर्क था. अचानक उसे आभास हुआ कि बाघ उनका पीछा कर रहा था. बड़ी सावधानी के साथ, बिना शोर किये, उसने पीछे घूम कर देखा. उसे बाघ दिखाई दे गया. बाघ झाड़ियों में छिपा था और उन पर हमला करने को तैयार था. बाघ का शिकार करने आये लोग इस बात से अंजान थे कि बाघ उनके पीछे ही था और कभी भी उन पर हमला कर सकता था.
“महाराज, बाघ हमारे पीछे झाड़ियों में है.”
उसने बहुत धीमी आवाज़ में कहा. “वह हम पर हमला करने वाला है.”
महाराज समर सेन स्तब्ध हो गये. वह समझ गये कि अब बाघ को जीवित पकड़ना सम्भव न था. ‘इसके पहले कि यह हमला कर दे, इसे मारना ही होगा,’ उन्होंने मन ही मन कहा.
राजा ने तुरंत अपने सबसे कुशल शिकारी को संकेत हाथ से किया. उस शिकारी ने निशाना साधा और अगले ही पल, शिकारी का तीर लगने से, बाघ ढेर हो गया. राजा ने राहत की साँस ली. गर्व से उन्होंने राजकुमार की पीठ थपथपाई.
“अगर राजकुमार पूरी तरह सतर्क न होते तो अवश्य ही बाघ हम पर हमला कर देता. हम में से कोई न कोई अवश्य घायल हो जाता या मारा जाता. हमें अपने राजकुमार पर बहुत गर्व है.”
“जी, महाराज. हम सब को अपने राजकुमार पर गर्व है.”
सब ने तालियाँ बजा कर राजकुमार का अभिनंदन किया.
राजकुमार प्रसन्नता से फूला न समा रहा था.
फिर किसी ने उसकी छोटी नाक का मज़ाक न उड़ाया.
एक रोचक व प्रेरणादायक लघु कथा।
ReplyDeletethanks and keep visiting my blog
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