चाँदनी महल
का
रहस्य
(दूसरा भाग)
भिखारी
रजत
को
चाँदनी
महल
के
अंदर
कोई
व्यक्ति
दिखाई
नहीं
दिया.
वह
टहलते-टहलते
उस
मकान की
पिछली
तरफ
आ
गया.
चाँदनी
महल
और उसका आस-पास की जगह का
निरीक्षण
करने
में
वह
इतना
मग्न
था
कि
उसने
देखा
ही
नहीं
कि
कोई
उसके
पीछे
आ
रहा
था.
अचानक
किसी
ने
पीछे
से
आकर
उसे
पकड़
लिया.
उस
आदमी
ने
उसके
मुँह
को
अपने
हाथ
से
कस
कर
दबा
दिया.
रजत
ने
पूरी
ताकत
लगा
कर
अपना
सिर
घुमाया.
जिसने
उसे
पकड़
रखा
था
वह
वही
भिखारी
था
जो
बाहर
सड़क
पर
भीख
मांग
रहा
था.
उसे देख कर रजत स्तब्ध हो गया.
भिखारी
ने
धमकाते
हुए
पूछा,
“तुम
कौन
हो?
यहाँ
क्या
करने
आये
हो?”
रजत
ने
संकेत
किया
कि
उसके
मुँह
से
हाथ
हटाये.
भिखारी
ने
हाथ
हटाया
तो
रजत
बोला,
“मैं
तो
यह
पत्र
देने
आया
था.” वह
थोड़ा
घबरा
गया
था.
उसने
पोस्ट-कार्ड
भिखारी
को
दिखाया.
भिखारी
ने
झट
से
पोस्ट-कार्ड
छीन
लिया.
उसे
उलट-पलट
कर
देखने
लगा.
नाम,
पता
पढ़
कर
उसे
अपनी
मुट्ठी
में
दबा
लिया.
“यह
पत्र
तुम्हें
किसने
दिया,”
उसने
पूछा.
“यह
मुझे
रास्ते
में
पड़ा
मिला
था,
अपने
स्कूल
से
लौटते समय.”
“तुम
इसे
यहाँ
क्यों
लेकर
आये
हो?” रजत को भिखारी का चेहरा बहुत डरावना लग रहा था.
“मुझे
लगा
कि
डाकिये
ने
इसे
गलती
से
इसे
रास्ते
में
गिरा
दिया
होगा.
मैंने
सोच
कि
मैं
स्वयं
इसे
दे
आऊँ.”
“झूठ
नहीं
बोलो.
बताओ,
किसने
तुम्हें
यहाँ
भेजा
है?
यहाँ
क्यों आए हो?”
उसने
रजत
की
बाँह
ज़ोर
से
मोड़ते
हुए
कहा.
“मैं
सच
कह
रहा
हूँ.
मुझे
किसी ने नहीं भेजा. यह
पत्र
मुझे
रास्ते
में
पड़ा
मिला
था.
मैं
यही
देने
आया
हूँ.” भिखारी
कुछ
देर
तक
उसे
घूर
कर
देखता
रहा,
फिर
उसने
रजत
को
छोड़
दिया.
“तुरंत
भाग
जाओ
यहाँ
से.
इधर
कभी
न
आना.
अगर
आये
तो
मैं
तुम्हें
गोली
मार
दूंगा.” भिखारी
ने
अचानक
पिस्तौल
निकाल
ली.
रजत
ने सोचा भी न था कि भिखारी के पास पिस्तौल होगी. वह सहम गया.
रजत
तुरंत
भाग
खड़ा
हुआ.
उसे
भागता
देख
कर
अपनी
दुकान
में
बैठ
पान
वाला
थोड़ा
हैरान
हुआ.
परन्तु
पान
वाले
का
ध्यान
इस
ओर
न
गया
था
कि
चाँदनी
महल
के
सामने
बैठा
भिखारी
अपनी
जगह से गायब हो
गया था.
उधर
रजत
ने
घर
पहुँच
कर
ही
राहत
की
साँस
ली.
वह
आश्चर्यचकित
भी
था.
उसे
यह
समझ
न
आ
रहा
था
कि
अगर
चाँदनी
महल
में
कोई
रहता
नहीं
था
तो
वह
पत्र
उस
पते
पर
क्यों
भेजा
गया
था?
वह
भिखारी
कौन
था?
उसने
पोस्ट-कार्ड
क्यों
छीन
लिया
था?
उसके
पास पिस्तौल क्यों थी? क्या वह सच में एक भिखारी था? या कोई पुलिसवाला? गुप्तचर? चाँदनी
महल
का
रहस्य
क्या
था?
कई
प्रश्न एक साथ उसके मन में उठ रहे थे. और वह इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए बहुत
उत्सुक
था.
रजत
शर्लक
होम्स
की
कहानियाँ
बड़े
चाव
से
पढ़ता
था.
शर्लक
होम्स
की
सूझबूझ
से
और
उसके
कारनामों
से
बहुत
प्रभावित
था.
वास्तव
में
बड़े
होकर
वह
एक
गुप्तचर
बनना
चाहता
था.
एक
बार
उसने
अपने
पापा
से
यह
बात
कही
भी
थी.
उसके
पिता
खिलखिला
कर
हँस
दिए
थे.
उन्होंने
उसका
मज़ाक
भी
उड़ाया
था.
पर
रजत
ने
पापा
की
बात
का
बुरा
न
माना
था.
शर्लक
होम्स
तो
उसका
हीरो
था.
रजत
को
लगा
कि
अपनी
योग्यता
दिखाने
का
यह
अच्छा
अवसर
था.
उसने
मन
ही
मन
कहा
कि
अपनी
सूझबूझ
और
साहस
से
इस
रहस्य
को
सुलझा
कर
ही
रहेगा.
उसने
निश्चय
किया
कि
वह
एक
बार
फिर
चाँदनी
महल
जाएगा
और
थोड़ी
खोजबीन
करेगा.
उस
भिखारी
की
चेतावनी
को
उसने
बिलकुल भुला दिया.
अगले
दिन
जब
वह
स्कूल
से
लौट
रहा
था
तो
उसने
रास्ते
में
एक
जगह
एक
बूढ़े
व्यक्ति
को
देखा.
वह
एक
देहाती
जैसा
लग
रहा
था.
उसके
हाथ
में
एक
कागज़
था.
और
वह
इधर-उधर
देख
रहा
था.
रजत
के
निकट
आने
पर
उसने
कहा,
“बेटा,
यह
पता
बताओगे
कहाँ
है?
मैं
एक
घंटे
से
यहाँ-वहाँ
भटक
रहा
हूँ.
कोई
कुछ
बताता
ही
नहीं.
यहाँ
तो कोई बात करने को भी तैयार नहीं है. पता
नहीं
कैसे
हैं
लोग
यहाँ
के?”
रजत
को
वृद्ध
पर
तरस
आया.
उसने
आगे
बढ़
कर
कागज़
उसके
हाथ
से
लिया
और
पढ़ने
लगा.
कागज़
पर
जो
कुछ
लिखा
था
उसे
पढ़ते
ही
रजत
चौंक
गया.
वह थोड़ा भयभीत भी हो गया.
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©आइ बी
अरोड़ा
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