खरगोश मिले क्या?
एक दिन की बात है. एक सियार और एक भेड़िया एक पेड़ के नीचे
बैठे सुस्ता रहे थे. तभी एक कौवा आकर पेड़ पर बैठ गया. उसकी चोंच में पनीर का एक
बड़ा सा टुकड़ा था.
पनीर देख कर भेड़िये और सियार के मुँह में पानी आ गया.
सियार ने भेड़िये के कान में फुसफुसा कर कुछ कहा. उसकी बात सुन कर भेड़िये
मुस्कराया. फिर उसने गरज कर कहा, “अरे, कौवे यह क्या कर रहे हो?”
कौवे को उसकी बात समझ ना आई. उसने पनीर का टुकड़ा अपने
पंजों से दबा कर पकड़ लिया और बोला, “क्या कर रहा हूँ मैं?”
“इस पेड़ पर क्यों बैठे हो?”
“क्यों, क्या इस पेड़ पर बैठना मना है?”
“बिलकुल मना है. यह एक सुरक्षित पेड़ है,” भेड़िये ने गरज
कर कहा.
“सुरक्षित पेड़? वह क्या होता है?”
“सुरक्षित पेड़ वह पेड़ होता है जिसकी सुरक्षा करना वन के हर
पशु-पक्षी का कर्तव्य है. जो कोई भी इस पेड़ को क्षति पहुँचायेगा उसे दंड दिया
जाएगा. ऐसा वनराज का आदेश है.”
“पर मैंने तो इस पेड़ को कोई क्षति नहीं पहुँचाई,” कौवा
थोड़ा डर गया.
“अरे, तुम आकर इस पर बैठ गये. वह क्या है?” भेड़िये के मन
में जो आया वह बोल दिया.
“तुम भी तो पेड़ के नीचे बैठे हो?” कौवे ने घबरा कर कहा.
“अरे मूर्ख, हम इसकी रक्षा करने के लिए यहाँ बैठे हैं.अब
हमें तुम्हारी शिकायत करनी होगी,” इस बार सियार बोला.
“हाँ, तुम्हारे बोझ से पेड़ कितने कष्ट में है. हम महसूस
कर सकते हैं पेड़ दर्द से कांप रहा है. तुम्हें अवश्य दंड मिलेगा.”
कौवा घबरा गया. बोला, “मुझे तो इस आदेश का पता न था.
पहली बार भूल हुई है. इस बार क्षमा कर दो. मेरी शिकायत न करना. अब मैं कभी भी इस
पेड़ पर नहीं बैठूँगा.”
“नहीं, नहीं. हम ऐसा नहीं कर सकते. वनराज नाराज़ हो
जायेंगे.”
तब सियार ने कहा, “अरे भईया, इस बार क्षमा कर दो. बेचारा
बहुत घबराया हुआ है.” फिर उसने कौवे से कहा, “ऐसा करो यह पनीर का टुकड़ा इसे दे दो.
मैं इसे समझा दूंगा. यह तुम्हारी शिकायत नहीं करेगा.”
“नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता. अगर किसी ने मेरी शिकायत
कर दी कि मैं अपना काम ठीक से नहीं कर रहा तो मुझे दंड मिलेगा,” भेड़िये ने कहा.
“किसी को पता न चलेगा. न यह खुद किसी को बतायेगा न मैं
बताऊँगा. देखो अब यह पनीर का टुकड़ा भी तुम्हें दे रहा है. इसे क्षमा कर दो.” इतना
कह कर उसने कौवे को संकेत किया कि पनीर उसे दे दे.
कौवे ने बड़ी मेहनत कर के वह पनीर का टुकड़ा पाया था. उसे
भूख भी बहुत लगी थी. इसलिए वह पनीर का टुकड़ा देना न चाहता था. पर भेड़िये की बातें
सुन कर भयभीत हो गया था. उसने पनीर का टुकड़ा नीचे गिरा दिया और उड़ कर पेड़ से चला
गया.
सियार और भेड़िया पनीर का टुकड़ा पा कर उछल पड़े. एक दिन से
उन्हें खाने को कुछ न मिला था. दोनों एक साथ बोले, “मज़ा आ गया, कितना स्वादिष्ट था
पनीर और कितना मूर्ख था कौवा.”
कौवा बहुत दुःखी था वह अपने मित्र चतुर बंदर से मिला और
उसे सारी बात बताई.
“अरे, वह दोनों तो बहुत धूर्त हैं. तुम्हें मूर्ख बना कर
उन्होंने तुम्हारा पनीर का टुकड़ा हड़प लिया.”
कौवे को गुस्सा आ गया, बोला, “उनको सबक सिखाना होगा.”
कुछ सोच कर चतुर बन्दर ने कहा, “कल तुम उन पर नज़र रखना.
जहाँ वह अपना अड्डा लगायें वहीं निकट किसी पेड़ पर बैठ कर मेरी प्रतीक्षा करना.
मेरे आने पर मुझ से पूछना कि मैं कहाँ से आ रहा हूँ.”
अगले दिन कौवा उन धूर्तों का पीछा करता रहा. दोनों नदी
किनारे एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गये. कौवा भी उसी पेड़ पर बैठ गया.
थोड़ी देर बाद चतुर बन्दर भी वहाँ आ गया.
तब कौवे ने ज़रा ऊँची आवाज़ में उससे पूछा, “अरे चतुर भाई,
कहाँ से आ रहे हो?”
“मिकी
खरगोश के दो मित्र आज सुबह आ गये. मिकी खरगोश तो यहाँ है नहीं. इसलिए मुझे ही उनके
रहने का प्रबंध करना पड़ा. उन्हें एक सुरक्षित जगह पर ठहरा कर आ रहा हूँ.”
“कहाँ ठहराया है उनको?”
“उधर जो बूढ़ा आम का पेड़ दिखाई दे रहा. उसके तने के अंदर
एक खोखली जगह है जो भीतर से बहुत बड़ी है. जब तक मिकी वापस नहीं आता वह दोनों वहीं रहेंगे. लेकिन यह बात किसी को न बताना. अगर
भेड़िये और सियार को उनके रहने की जगह का पता लग गया तो वह उन्हें खा जायेंगे.”
“नहीं,नहीं. मैं किसी को क्यों बताने लगा?” इतना कह कर
कौवा उड़ गया. बन्दर भी वहाँ से चला गया.
सियार ने धीरे से भेड़िये से कहा, “इससे अच्छा अवसर कहाँ
मिलेगा.”
“अरे, मेरे मुँह में तो अभी से पानी आ रहा है.”
दोनों भागे-भागे बूढ़े आम के पास आये और खरगोशों के रहने
की जगह ढूँढने लगे. सियार ने कहा, “ऊपर वह जो सुराख दिखाई दे रहा है, उसके अंदर
होंगे.’
“हाँ, वही है. और तो कोई जगह दिखाई दे नहीं रही. पर वह
सुराख बहुत ऊपर है.” भेड़िये ने कहा.
“ऐसा करो तुम पेड़ को पकड़ कर खड़े हो जाओ. मैं तुम्हारे
कन्धों पर खड़ा हो जाऊँगा और दोनों खरगोशों को खींच कर बाहर निकल लूंगा.” सियार ने
कहा.
“तुम नीचे खड़े हो जाओ, मैं तुम्हारे कंधों पर चढूँगा,”
भेड़िये ने आँखें दिखाते हुए कहा.
सियार पेड़ पकड़ कर खड़ा हो गया. भेड़िया उसके कन्धों पर चढ़ गया.
जैसे ही उसने उस कोटर में हाथ डाला दोनों
एक साथ चिल्लाए, “अरे मर गये!”
पेड़ के ऊपर मधुमक्खियों का एक बड़ा सा छत्ता था. खरगोशों
को पकड़ने के लिए दोनों इतने उतावले थे कि उन्होंने छत्ता देखा ही नहीं. जैसे ही भेड़िया
सियार के कंधों पर खड़ा हुआ उसका सिर छत्ते से टकरा गया था. मधुमक्खियाँ गुस्से से
पागल हो गईं. सैंकड़ों मधुमक्खियों ने दोनों पर हमला कर दिया था.
दोनों रोते-चिल्लाते वहाँ से भागे. तभी उन्हें किसी की
हँसने की आवाज़ सुनाई दी. कौवा और बन्दर उनकी दुर्दशा पर हँस रहे थे. फिर कौवे ने
चिल्ला कर पूछा, “खरगोश मिले या नहीं?”
“अरे, मूर्खो, खरगोश क्या पेड़ों के अंदर रहते हैं?” बन्दर
ने भी हँसते हुए कहा.
दोनों कुछ बोल न पाए, मधुमक्खियों ने ढंक मार-मार कर
उनकी बुरी हालत जो कर दी थी.
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© आइ बी अरोड़ा
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