लालची बंदर
एक नदी के किनारे एक मंदिर था. मंदिर के निकट ही एक विशाल पेड़ थे जिस
पर बंदरों की एक टोली रहती थी. मोती उस टोली का सरदार था.
हर मंगलवार के दिन मंदिर में खूब भीड़ होती थी. उस दिन पास के गाँव के
सभी लोग भगवान के दर्शन करने आते थे. कई लोग मंदिर में प्रसाद भी चढ़ाते थे. कोई
बर्फ़ी लाता था तो कोई लड्डू. कुछ लोग फल लाते थे.
उस दिन सब बंदर मंदिर के अंदर आ जाते. मंदिर से लौटते समय लोग
थोड़ा-थोड़ा प्रसाद उन बंदरों को भी खाने के लिए दे देते. गाँव वालों को बंदर अच्छे
लगते थे क्योंकि बंदर न तो किसी को डराते थे और न ही किसी से कोई चीज़ छीनते थे.
छुटकू बंदर बहुत लालची था. थोड़ी सी मिठाई या थोड़े से फलों से उसका मन
न भरता था. वह तो पेट भर कर मिठाई और फल खाना चाहता था.
एक मंगलवार एक छोटा बच्चा अपने माता-पिता के साथ मंदिर आया था. बच्चे
ने हाथ में बर्फी से भरा एक लिफ़ाफ़ा पकड़ रखा था. छुटकू बंदर ने इधर-उधर देखा.
किसी का ध्यान उसकी ओर न था. बिना आवाज़ किये वह बच्चे के पीछे चलने लगा. अचानक
उसने झपटा मार कर लिफ़ाफ़ा छीन लिया और कूद कर पास के एक पेड़ पर चढ़ बैठा.
लड़का चिल्लाया. उसके माता-पिता भौचक्के हो गये. फिर वह ज़ोर से चिल्लाये.
कुछ लोग वहाँ इकट्ठे हो गये. लड़कों ने बंदर को पत्थर मारे. पर छुटकू भी कम नहीं
था. उछलता-कूदता वह एक पेड़ से दूसरे और फिर तीसरे पेड़ पर चला गया.
मंदिर की छत पर बैठा मोती यह सब देख रहा था. उसने मन ही मन कहा, ‘यह
मूर्ख बंदर सब के लिए मुसीबत खड़ी कर देगा.’ उसने पुकार कर सब बंदरों से कहा, “वापस
चलो.”
सब बंदर अपने पेड़ पर लौट आये. मोती ने कहा, “आज छुटकू ने बहुत बड़ी
गलती की है. उसने एक बच्चे के हाथ से मिठाई छीन ली. आजतक लोग अपनी इच्छा से हमें कुछ
न कुछ देते आये हैं. न कोई हम से डरता है न हमें मंदिर से भगाता है. लेकिन अब लोग
हम से डरने लगेंगे. इसलिए मेरी बात ध्यान से सुनो, कभी किसी से कोई चीज़ न छीनना.
जो कुछ लोग स्वयं दे दें उसी से संतोष करना.”
छुटकू ने मोती की बात एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी. इतना ही
नहीं उसने कुछ बंदरों को उकसाया, “मोती की बातों की ओर ध्यान न दो. वह तो डरपोक
है. हम वही करेंगे जो हमें अच्छा लगता है. हम तो लोगों से छीन कर पेट भर मिठाई और
फल खायेंगे.”
कुछ बंदर उसकी बातों में आ गये. अगले मंगलवार को सब बंदर मंदिर आ
गये. सब को मोती की चेतावनी याद थी. परन्तु छुटकू और उसके साथियों के मन में तो
कुछ और ही था. वह लोगों के हाथों से चीज़ें छीनने लगे.
मंदिर में अफरा-तफरी मच गई. कुछ लोग लाठियाँ लेकर बंदरों के पीछे
दौड़े. डर कर बंदर यहाँ-वहाँ भाग गए. मोती का गुस्सा भड़क उठा. उसने छुटकू और उसके
साथियों को खूब डांटा. वह सहम गए उन्होंने मोती से क्षमा मांगी. उन्होंने वचन दिया
कि वह अब उसकी बात मानेंगे और किसी से कोई चीज़ न छीनेंगे.
परन्तु वह सुधरने वाले न थे. अगले मंगल के दिन भी उन्होंने वैसा ही
किया. कई लोगों को डराया. कई लोगों से उनकी चीजें छीन ली. छुटकू ने तो एक लड़के को
घायल भी कर दिया.
बंदरों के उत्पात से गाँव वाले परेशान हो गए और उनसे झुटकारा पाने का
रास्ता ढूँढने लगे. मोती बंदर भी चिंतित था. वह जानता था कि छुटकू के कारण सब
मुसीबत आ सकती थी. कुछ सोच कर उसने बंदरों से कहा, “अब हम कभी मंदिर नहीं जायेंगे.
नदी किनारे जो कुछ भी मिलेगा उसे ही खाकर अपना पेट भरेंगे.”
“क्यों?” एक बंदर ने पूछा.
“गाँव वाले बहुत गुस्से में हैं. हमें रोकने के लिए वह कुछ न कुछ
करेंगे. अब मंदिर जाने में खतरा है.”
सब बंदरों को मोती की बात सही लगी, लेकिन छुटकू और उसके साथी कुछ
सुनने को तैयार नहीं थे. उन्होंने तय किया कि अगले मंगल के दिन भी वह मन्दिर
जायेंगे और खूब मौज-मस्ती करेंगे.
मंगलवार के दिन छुटकू और उसके साथी सुबह-सुबह ही मंदिर आ गये. छुटकू
ने कहा, “अगर ढेर सारी मिठाई खाने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए.”
थोड़ी देर बाद एक बंदर ने छुटकू से कहा, “वह देखो, एक लड़का बड़ा सा
थैला लिए आ रहा है.
“थैला मिठाई या फलों से भरा लगता है,” छुटकू ने कहा. सारे बंदर उस
लड़के की ओर दौड़े. इतने बंदरों को एक साथ अपनी ओर आते देख कर लड़का डर गया और अपना थैला
वहीं फेंक कर भाग गया. थैला लड्डुओं से भरा था. सब बंदर चीखते-चिल्लाते लड्डू खाने
लगे. कोई भी गाँव वाला उनके निकट न आया.
“देखा, सब हमसे डरने लगे हैं,” छुटकू ने अकड़ते हुए कहा.
लड्डू खाते ही बंदरों को चक्कर आने लगे और एक-एक कर सब मूर्छित हो
गए. तब गाँव वालों ने उन्हें उठा कर बड़े-बड़े थैलों में डाल दिया.
“हमारी तरकीब काम कर गई,” एक गाँव वाले ने कहा.
“इसके पहले की लड्डुओं में मिली बेहोश करने वाली दवा का प्रभाव
समाप्त हो जाए, इन्हें जल्दी-जल्दी नदी पार छोड़ आते हैं,” दूसरे गाँव वाले ने कहा.
“नदी को पार करना इनके लिए आसान न होगा. हमें इन दुष्टों से अब
छुटकारा मिल जाएगा,” तीसरे गाँव वाले ने कहा.
और गाँव वालों ने वैसा ही किया.
छुटकू और उसके साथी जब होश में आये तो उनकी सिट्टी-पिट्टी गम हो गई.
वह नदी के पार घने जंगल में थे. वह सब डर गए.
एक बंदर बोला, “तुम्हारे बहकावे में आकर हमने बड़ी भूल कर दी. अब हम
कभी दल में वापस नहीं जा पायेंगे.”
“अरे, घबराओ मत. हम तैर कर उधर चले जायेंगे. आओ मेरे साथ. अब मैं दल
का मुखिया हूँ. तुम्हारी रक्षा करना मेरा काम है,” छुटकू ने अकड़ कर कहा.
वह सब नदी किनारे आये पर वहाँ पहुँच कर उनके होश उड़ गये. नदी किनारे
बहुत सारे मगरमच्छ बैठे थे. नदी के अंदर भी कई मगरमच्छ थे.
“अब बताओ क्या करें?” छुटकू के साथी एक साथ बोले. पर वह क्या कहता
उसकी तो बोलती बंद हो गई थी.
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