Friday, 14 January 2022

 

अपना भी नाम होगा

(बच्चों के लिए कहानी)

लंबू और छोटू चोर थे. परन्तु आजतक उन्होंने छोटी-मोटी चोरियाँ  ही की थीं. इस कारण अन्य चोर उनका मज़ाक उड़ाते थे.

एक दिन छोटू ने लंबू से कहा, “भाई, नाम और दाम कमाने का सुनहरा अवसर मिल रहा है.”

“कैसे?”

“मुझे पता लगा है कि ‘अपना बैंक’ का चौकीदार छुट्टी पर चला गया है. बैंक ने उसकी जगह गैन्दाराम को काम पर रख लिया है.”

“इससे हमें क्या लाभ?”

“भाई, बैंक वाले नहीं जानते कि गैन्दाराम को शराब बहुत अच्छी लगती है. शराब देखते ही उसके मुँह से लार टपकने लगती है. हम उसकी इस कमज़ोरी का लाभ उठा सकते हैं.”

“वाह छोटू, वाह! क्या चाल सोची है! आज रात को ही काम पर लग जाते हैं.”

रात दस बजे दोनों शराब की एक बोतल हाथ में लिए बैंक के निकट आये. गैन्दाराम बैंक के गेट के पास बैठा था. उनके निकट आते देख वह चौकन्ना हो गया.

“भाई, तुम्हारे पास माचिस की डिबिया है?” लंबू ने गैन्दाराम से पूछा.

“नहीं,” गैन्दाराम ने कड़क आवाज़ में कहा.

“क्या तुम सिगरेट नहीं पीते?” लंबू ने पूछा.

“काम के समय मैं सिगरेट नहीं पीता,” गैन्दाराम ने अकड़ कर कहा.

“बहुत अच्छे चौकीदार ही, खूब उन्नति करोगे,” छोटू ने कहा. दोनों चोर वहाँ से चले गये.

अगली रात भी दोनों चोर शराब की बोतल पकड़े उधर आये और कोई बहाना बना कर गैन्दाराम से बातचीत करने लगे. तीसरी रात भी वैसा ही किया. अब गैन्दाराम उन से खुल कर बातें करने लगा.

“क्या तुम दोनों हर दिन शराब पीते हो?” शराब देखकर गैन्दाराम का मन ललचा रहा था.

“भाई, अपना तो नियम है. जब तक मित्रों के साथ बैठ कर थोड़ी शराब न पी लें तब तक नींद नहीं आती,” लंबू ने कहा.

चौथी रात लंबू अकेला ही आया. वह थोड़ा उदास लग रहा था.

“क्या बात है? आज थोड़ा बुझे-बुझे से लग रहे हो?” गैन्दाराम ने पूछा.

“अरे यार, आज इतनी बढ़िया शराब लेकर आया तो पता लगा मेरा मित्र गाँव चला गया है. उसकी माँ बीमार है. उसने मुझे बताया भी नहीं.”

शराब देख कर गैन्दाराम अपने को रोक न पाया. इतनी महंगी शराब उसने आजतक न पी थी. बोला, “अरे, मैं भी तो अब तुम्हारा मित्र हूँ. मैं तुम्हारा साथ दूँगा.”

लंबू यही तो चाहता था. पर वह चालाक था, बोला, “अरे तुम ड्यूटी पर हो. इस समय शराब पीना उचित न होगा.”

गैन्दाराम अपने को रोक न पा रहा था. बोला, “मैं तो बस तुम्हारा साथ दूँगा, बिलकुल थोड़ी सी पीयूँगा.”

“हाँ, बिलकुल थोड़ी सी पीना.”

दोनों बैंक के दरवाज़े के निकट बैठ कर शराब पीने लगे. लंबू ने उसको बातों में उलझाए रखा. स्वयं शराब न पी और धीरे-धीरे गैन्दाराम को सारी बोतल शराब पिला दी. जब वह नशे से चूर हो गया तो छोटू भी वहाँ आ गया. दोनों ने उसके हाथ-पाँव बाँध दिए.

फिर उन्होंने बैंक का ताला तोड़ा और भीतर आ गये. तिजौरी काटने के लिए वह सारे औज़ार साथ लाये थे. उन्होंने तिजौरी काटी और उसके अंदर रखे पचास लाख रूपये निकाल लिए.

“कहीं कोई सुराग न छोड़ना,” लंबू ने छोटू से कहा.

“चिंता न करो, पुलिस को एक भी सुराग न मिलेगा. पर इस गैन्दाराम का क्या करें?”

“इसके हाथ पाँव खोल देते हैं. इसने हमें चोरी करते नहीं देखा, पुलिस को कुछ न बता पायेगा.”

दोनों वहाँ से भाग गये. रात का एक बज रहा था, सब रास्ते सुनसान थे, किसी ने उन्हें वहाँ से जाते न देखा.

छोटू बहुत खुश था. बोला, “भाई अब अपना भी नाम होगा.”

सुबह हुई. गैन्दाराम का नशा कम हुआ. वह उठ बैठा और अपने आप से बोला, “आज तो खूब मज़े की नींद आई.” तभी उसे झटका लगा. बैंक का दरवाज़ा खुला था. वह भीतर आया. तिजौरी भी खुली थी.

“बैंक में डाका पड़ा है. क्या मैनेजर साहब को फोन करुँ? पुलिस को फोन करूँ? पुलिस अगर जान गई कि मैंने रात में शराब पी थी तो पुलिस मुझे ही पकड़ लेगी. समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं,” घबराया हुआ गैन्दाराम इस तरह बड़बड़ करने लगा.

“सब ने इतना समझाया था कि शराब पीना बुरी बात है, पर मैंने किसी की बात न मानी. इस शराब के कारण इस मुसीबत में फंस गया, क्या करुँ?” गैन्दाराम ने वहाँ से भाग जाना ही उचित समझा.

बैंक मैनेजर को जब किसी का फोन आया तो उसके भी होश उड़ गये. उसने पुलिस को सूचित किया. इंस्पेक्टर होशियार सिंह ने तुरंत आकर जाँच की, पर उसे कोई सुराग न मिला. उसने मैनेजर से कहा, “रात में चौकीदारी कौन करता है? वह कहाँ? उसे बुलाओ.”

“गैन्दाराम को काम पर रखा है. वह रात में ड्यूटी पर आया तो था पर अब यहाँ नहीं है.”

“उसे काम पर रखने से पहले कोई छानबीन करवाई थी क्या?”

 “नहीं.”

“यही तो गलती करते हैं आप लोग. घर हो या दफ्तर, किसी को भी काम पर रखने से पहले उसकी पुलिस से छानबीन करा लेनी चाहिए.”

तभी एक सिपाही आया. “साहब, एक खाली बोतल मिली है. गेट के पास ही पड़ी थी.”

बोतल देख कर इंस्पेक्टर ने पूछा, “इतनी महंगी शराब कौन पीता है?”

“नहीं, नहीं.बैंक में कोई शराब नहीं पीता. कोई आता-जाता इसे बाहर फेंक गया होगा,” मैनेजर ने उत्तर दिया.

इंस्पेक्टर कुछ सोच में पड़ गया. उसने सिपाही को कहा की बोतल को ले जाकर तुरंत जाँच करवाए कि उस पर किसी की उंगलियों के निशान हैं या नहीं.

उधर शाम चार बजे चलने वाली रेलगाड़ी में बैठे, लंबू और छोटू बैठ बेताबी से गाड़ी चलने की प्रतीक्षा कर रहे थे. दोनों भाग कर झुमरीतलिया जा रहे थे.

“इस बार ऐसा हाथ मारा है कि वर्षों तक काम करने की ज़रूरत न रहेगी,” छोटू ने धीमे से कहा.

“पर यह गाड़ी क्यों नहीं चल रही, चार तो कब के बज चुके,” लंबू बोला.

तभी इंस्पेक्टर होशियार सिंह डिब्बे में आ चढ़ा. “यह किसे ढूँढ़ रहा है?” लंबू ने कहा, वह थोड़ा सहम गया था.

“ढूँढ़ रहा होगा किसी टुच्चे चोर को. हम जैसे चालाक चोरों को पकड़ना इसके बस की बात नहीं, हमने एक भी सुराग न छोड़ा था.”

इंस्पेक्टर दोनों के पास आया, “अरे, यह शराब की बोतल तुम छोड़ आये थे, उसे ही देने आया हूँ. यह तो अभी आधी भरी है.”

“नहीं, हम ने तो पूरी खाली कर दी थी,” घबरा कर लंबू बोला.

“मुझे भी यही जानना था. शराब बेचने वाले ने मुझे बता दिया था कि कल ही तुम ने यह शराब खरीदी थी. इस बोतल पर तुम्हारी उँगलियों के निशान भी हैं.”

दोनों को सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई. “तुम ने सारा काम बड़ी चतुराई के साथ किया था, बस थोड़ी सी चूक हो गई. खाली बोतल बैंक के गेट के पास छोड़ आये.”

“यह तुम्हारी गलती है,” लंबू ने छोटू से गुर्रा कर कहा.

“नहीं तुम्हारी गलती है. तुम गैन्दाराम के साथ शराब पी रहे थे,” छोटू गुर्राया.

“बस सारे राज़ यहीं खोल दोगे? चलो अब बताओ लूट का माल कहाँ है?” इंस्पेक्टर ने पूछा.

छोटू ने आँख से सीट के नीचे रखे एक बैग की ओर संकेत किया.

“साहब आपको कैसे पता चला कि हम ट्रेन से भाग रहे थे?” छोटू से न रहा गया.

“तुम्हारे घर गया था. तुम तो मिले नहीं, तुम्हारा पड़ोसी चंपक लाल मिल गया. उसने तुम्हें जाते हुए देखा था और उसने लंबू को यह कहते हुए भी सुना कि चार बजे की गाड़ी छूटनी नहीं चाहिए. बस मेरे लिए इतनी जानकारी बहुत थी.”

“अगर गाड़ी समय पर छूट जाती तो कभी न पकड़े जाते,” छोटू बोला.

“समय पर कैसे छूटती, मैंने फोन कर स्टेशन मास्टर को कह दिया था कि गाड़ी रुकवा ली जाए.”

“हमारा भाग्य ही खराब है. हमारा कभी नाम न होगा,” छोटू ने निराश होकर कहा.

“अरे, इतना घबराते क्यों हो? अभी तुम्हारा मुँह काला करके तुम्हें सारे नगर में घुमायेंगे. बस तुम्हारा खूब नाम हो जाएगा,’ इतना कह इंस्पेक्टर ने ज़ोर का ठहाका लगाया.

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©आइ बी अरोड़ा     

2 comments:

  1. रोचक व सुंदर। बच्चों को खूब अच्छी लगेगी।

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