वन की सैर
इक वन में था रहता
इक नन्हा हाथी.
झुण्ड में थे उसके
कई नन्हें साथी.
उसको था अच्छा लगता पर
घूमना यहाँ-वहां.
हर एक से था वो पूछता
‘तुम घूमे हो
कहाँ-कहाँ.’
इक दिन चुपचाप चला वो
करने वन की सैर.
उसको लगते थे सब
अपने
कोई न लगता था गैर.
वन में उसने देखे
कई ऊंचे-ऊंचे
पेड़,
एक बड़ा
तालाब,
नटखट
हिरणों का एक झुण्ड,
एक
भालू और
उसके
दो शरारती बच्चे,
सात शेर
सोये थे जो
एक पेड़
के नीचे,
एक
कछुआ चल रहा था
जो टुकुर-टुकुर,
एक
खरगोश जो भाग रहा था
इधर-उधर,
और पाँच
सफेद पक्षी
जो
बैठे थे गैंडे की पीठ पर.
पर तभी नन्हे हाथी
को
लगी खूब प्यास.
सोचा थोड़ा पी लूँ
पानी
पर पानी नहीं था आस-पास.
जिससे से भी उसने
पूछा
उसने कर दी बात अनसुनी.
अब नन्हें हाथी को आई
याद
अपनी माँ और बूढ़ी
नानी.
पर भूल गया था वो
रास्ता अपने घर का.
आँख से आंसूं बहने लगे
जब समझ न आया कि करूं
क्या.
बूढ़ा कछुआ जो चल रहा
था
टुकुर-टुकुर,
प्यार से वह बोला थोड़ा
रुककर.
‘क्या हुआ? क्यों रो
रहे हो, पुतर?’
आंसू रुके नहीं
नन्हें हाथी के
बस इतना ही वह बोला,
‘नानी.....
पानी.....’
उसे देख कछुए का
मन थोड़ा घबराया.
नन्हें हाथी को घर
पहुंचा दूँ
विचार यह मन में आया.
उसको लिए अपने साथ
कछुआ चला उस ओर.
विशाल हाथियों के झुण्ड
रहते थे जिस ओर.
‘पुतर, कोशिश करो
और अपनी नानी और माँ
की
आवाज़ सुनो.
वह ढूँढने निकली होंगीं और
पुकारती होंगी तुम्हें.....सुनो.’
नन्हा हाथी रुका और
भूल गया वो अपनी
प्यास.
माँ से मिलने की
अब जागी मन में आस.
नानी पर थी उसकी
गुस्सा
डांट रही थी माँ को.
‘अगर नन्हें को कुछ
हो गया
तो मुहं दिखाओगी किसको.’
माँ बेचारी क्या
कहती
बस भागी इधर-उधर.
नन्हा मिल जाएगा
उसका
इतना विश्वास था उसे
मगर.
खूब जोर से माँ ने
नन्हें को आवाज़ लगाई.
यह आवाज़ थी इतनी
ऊंची
नन्हें हाथी को दे
गयी सुनाई.
झटपट दौड़ा वो उस ओर
जहां थीं माँ और
नानी.
बूढ़ा कछुआ पीछे दौड़ा
तो याद आ गयी उसे भी
नानी.
माँ बेटे का मिलन
हुआ
सब के चेहरे पर आई
मुस्कान.
पर नानी तो थी
गुस्से में
खींचे उसने नन्हें हाथी
के कान.
‘ऐसी मूर्खता नन्हें
हाथी
फिर कभी न करना.
जब तक हो तुम छोटे बच्चे
अकेले कहीं न जाना.’
वन में रहता है
एक नन्हा हाथी.
झुण्ड में हैं उसके
कई नन्हें साथी.
घूमने जाते हैं सब
बच्चे
जब बूढ़ी नानी के साथ.
नानी रखती सदा पकड़
के
नन्हें हाथी का नन्हा
हाथ.
©आइ बी अरोड़ा
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