Wednesday, 27 July 2016

ठंडा पानी

नन्हा हाथी इक दिन
गुमसुम सा बैठा था
मन ही मन नानी को
वो कोस रहा था.
नानी को करता था
वो बहुत ही प्यार
नानी से पड़ी न थी
कभी भी डांट-फटकार.
पर आज डांट दिया था
गुस्से में नानी ने
भिगो दिया था पक्षी को
उसने ठंडे पानी में.
नन्हें पक्षी की माँ
जब गई चुगने दाना
नन्हें पक्षी ने शुरू किया
घोंसले में कूदना उछलना.
एक बार वो ऐसा कूदा
कि आ गिरा सीधा नीचे
नन्हा हाथी बैठा था
निकट ही पेड़ के पीछे.
वहीँ पेड़ के आसपास
था कीचड़ फैला
पक्षी गिरा कीचड़ में
हो गया वो पूरा मैला.
मैले पक्षी को देख
हाथी का मन तरसाया
‘नदी में इसको नहला दूँ’
उसके मन में ऐसा आया.
नन्हें पक्षी को पकड़ कर
पानी में खूब भिगोया
और उसके नन्हें पंखों को
रगड़-रगड़ कर धोया.
पर ठंडा बहुत था
उस दिन नदी का पानी
नन्हें हाथी ने पर
यह बात नहीं थी जानी.
ठंड से नन्हें पक्षी की
चोंच लगी किटकिटाने
और उसकी आँखें लगीं
नन्हें-नन्हें आसूँ बहाने.
अब घबराया नन्हा हाथी
झटपट भागा नानी के पास
नानी गुस्सा होंगी उस पर
ऐसी न थी उसको आस.
पर गुस्से से आग-बबूला
हो गयी उसकी नानी
‘अरे मूर्ख’ वह चिल्लाई
‘क्या कर दी यह नादानी.
जानते नहीं नदी का पानी
है आज बहुत ही ठंडा
कुछ दिन पहले ही यह पक्षी
बाहर आया है तोड़ कर अंडा.
यह बेचारा नन्हा पक्षी
तो आज ही जाता मर
कुछ देर तुम और डुबोते
इसको ठन्डे पानी में अगर’.
नानी ने नन्हें पक्षी को
तब बड़े प्यार से सहलाया
और अपनी मीठी बातों से
उसका मन बहलाया.
नन्हें पक्षी को लगी प्यारी
नन्हें हाथी की नानी
भूल गया नानी की बातों में
ठंडा कितना था नदी का पानी.
पर अपनी नानी की बातों पर
आया नन्हें हाथी को गुस्सा
नानी से है वो अब नाराज़
बैठा है चुपचाप गुमसुम सा.

©आइ बी अरोड़ा 

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