इक बन्दर को आई रुलाई
इक बन्दर पेड़ से कूदा
उसको था पर नहीं पता
नन्हा हाथी था बैठा नीचे
शेर पड़े थे उसके पीछे
शेरों से था छिप कर बैठा
एक पाँव था उसका ऐंठा
‘उठ कर मैं चलूं यहाँ से’
ऐसा उसने सोचा मन में
‘दिखते नहीं अब शेर यहाँ
पर जाने वो गए कहाँ
पाँव भी मेरा अकड़ गया है
सिर भी थोड़ा जकड़ गया है
भूल हुई जो इधर मैं आया
अच्छा सबक है मैंने पाया’
इससे पहले कि वो उठ पाता
उठ कर अपने घर जा पाता
बन्दर उसके सिर चढ़ आया
नन्हा हाथी कुछ समझ न पाया
उसे लगा उस पर कूदा शेर
डर से बेचारा हुआ वहीं ढेर
पर आ गई तब उसकी नानी
नन्हें को देख हुई हैरानी
इक बन्दर बैठा था सिर पर
बेचारा बैठा था आँख मूंद कर
नानी करती थी उसको प्यार
उसकी रक्षा करने को तैयार
नानी ने बन्दर को चपत लगाई
बन्दर को आ गयी रुलाई.
© आइ बी अरोड़ा
hahha..you very written short story! keep it up :)
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