Saturday, 2 July 2016

एक रोमांचक यात्रा


दादा जी जैसे ही सोने के लिए अपने बिस्तर पर लेटते थे हम तीनों बच्चे उन्हें घेर लेते थे. मैं उनके पाँव दबाने लगता था, मेरा भाई उनके कंधे दबाता और बहन उनके हाथ दबाती. कभी-कभी वो पेट के बल लेट जाते थे और किसी एक को कहते थे, ‘ज़रा धीरे-धीरे मेरी पीठ पर चलो, आज कमर कुछ अकड़ सी गयी है. पर बिलकुल हौले-हौले.’
तभी वह कोई कहानी सुनाना शुरू करते थे.
‘दादा जी, आज वह कहानी सुनाइये जब आप अपने अँगरेज़ अफसर के साथ उसकी नाव पर गए थे, आपने कहा था कि वह यात्रा बड़ी रोमांचक थी.’
‘अरे नाव नहीं थी. नाव तो मछुआरे चलाते हैं, बड़े लोग तो यॉट में घूमते हैं, वह तो एक यॉट थी. तुमने कभी यॉट देखी भी है?’
‘दादा जी कहानी....’ बहन ने कहा.
‘मेरा अंग्रेज़ अफसर बहुत ताकतवर था एक येती जैसा.........’
‘येती? येती क्या होता है?’ भाई ने पूछा. उसके प्रश्न कभी खत्म ही न होते थे.
‘येती हिममानव होते हैं, वह हिमालय के पर्वतों में रहते हैं. जब मैं तिब्बत गया था तो वहां एक दिन मुझे एक आदमी मिला था..............’
‘दादा जी, यॉट की यात्रा की कहानी........’ बहन ने दादा जी की टोका. उसे अच्छा न लगता था जब दादा जी बीच में कोई दूसरी कहानी शुरू कर देते थे.
‘हाँ, हम लोग मज़े से यात्रा कर रहे थे. यॉट धीमे-धीमे चल रही थी. सुहावना मौसम था. दूर-दूर तक कोई नाव या जहाज़ दिखाई न दे रहा था. बड़ा अच्छा लग रहा था. तभी अचानक कहीं से एक जहाज़ हमारी और आने लगा. वह जहाज़ अचानक सागर में प्रकट हो गया था.
‘जहाज़ पर खड़ा एक आदमी चिल्ला रहा था. हमें कुछ समझ न आया कि वह क्या कह रहा था. जहाज़ निकट आया तो सुना, वह चिल्ला रहा था, “मेरी सहायता करो. भूतों ने मेरे जहाज़ पर कब्ज़ा का लिया है, बचाओ.........”
‘अचानक उस आदमी के पीछे कोई दिखाई दिया. वह एक भूत था. उसने उस आदमी को खींच कर नीचे धकेल दिया.....’
‘आपको कैसे पता लगा कि वह भूत था? वह कैसा था? दिखता कैसा था?’ भाई अपने को रोक न पाया.
‘वह पतला, लम्बा था. दस फुट लम्बा होगा. उसका चेहरा पीला था और आँखें बड़ी-बड़ी गहरे हरे रंग कीं, वह बहुत भयानक, डरावना....’
‘भूत का.....’ भाई बोला पर मैंने उसे रोक कर कहा, ‘चुप रहो और कहानी सुनने दो.’
‘ऐसे नहीं कहते,’ दादा जी ने मुझे डांट दिया, ‘वह अभी छोटा बच्चा है. छोटे बच्चों के मन में कई प्रश्न होते हैं. उन्हें इस तरह रोकना नहीं चाहिए.’
इतना कह दादा जी कहानी सुनाने लगे, ‘मेरा अंग्रेज़ अफसर था तो येती समान तगड़ा पर था बहुत डरपोक. सत्य कहूँ तो वह बेचारा दुःखी मानव था. वह अपने घर लौटना चाहता था, इंग्लैंड जाना चाहता था. पर कंपनी उसे जाने ही न दे रही थी. वह एक बहुत ही योग्य इंजिनियर था, बाँध बनाने में कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता था. उन दिनों हम थुंगा नदी पर बाँध बना रहत थे. बहुत कठीन काम था. थुंगा नदी बहुत ही विशाल है और बरसात...........’
‘दादा जी, जहाज़ पर क्या हुआ?’ बहन ने थोड़ा तीखी आवाज़ में कह. सिर्फ वह ही ऐसे बात कर सकती थी. दादा जी कभी बुरा नहीं मानते थे. हम भाई तो ऐसे बात करने का सोच भी न सकते थी.
‘अच्छा उस जहाज़ की बात सुना रहा था जिस पर भूतों ने कब्जा कर लिया था. अब अंग्रेज़ बहादुर तो डर गए. मुझे ही कुछ करना था. हमारे पास कोई हथियार न था. मैंने नाव में हर जगह देखा, बस एक पुरानी यार्ड-स्टिक मिली. यार्ड-स्टिक समझते हो? इससे कपड़े की लम्बाई नापते हैं. आज कल तो मीटर का इस्तेमाल होता है. सोचा इसे तलवार की तरह इस्तेमाल कर सकता हूँ. जब मैं स्कूल में पढ़ता था तब मैंने कई बार स्कूल के बदमाश लड़कों के साथ अपने फुटे से लड़ाई की थी. फुटे को तलवार की तरह चला कर मैं बड़े-बड़े लड़कों को भी पछाड़ देता था.
‘जहाज़ हमारी यॉट के पास आ चुका था. जहाज़ पर खड़ा भूत मुझे घूर कर देख रहा था. उन दिनों मैं बहुत दुःसहासी हुआ करता था. बिना सोचे समझे मैं उस जहाज़ पर कूद कर चला गया. मैं चिल्लाया और हाथ में पकड़ी यार्ड-स्टिक को तलवार सामान घुमाने लगा. पर वह भूत बिलकुल भी न डरा. अचानक पाँच-सात भूत वहां प्रकट हो गए सब ने मुझ को घेर लिया.’
‘वो भूत कैसे थे?’ भाई ने पूछा.
‘सब डरावने थे, किसी का चेहरा लाल तो किसी का काला. किसी के चार हाथ तो किसी के चार सिर. मैंने उन्हें ललकारा तो वह सब एक साथ मुझ पर हमला करने को तैयार हो गए. मुझे लगा कि अब न बच पाउँगा. पर अगले ही पल सब घुटनों पर झुक कर मुझ से दया की भीख मांगने लगे...’
‘वह कैसे हुआ? आपने ऐसा क्या किया वह सब डर गये?’ बहन ने पूछा.
‘मैं तो बस बहादुरी का नाटक कर रहा था, पर सत्य तो यह है कि मैं बहुत घबराया हुआ था. समझ गया था कि अब जान बचाना मुश्किल था. मैं मन ही मन अपने गुरु से प्रार्थना कर रहा था, उनसे सहायता मांग रहा था.’
‘आपके गुरु भी हैं? आपने कभी बताया नहीं?’ यह प्रश्न मैंने किया था.
‘क्या मैंने कभी अपने गुरु की कहानी नहीं सुनाई? ऐसा हो ही नहीं सकता? तो सुनो, जिस वर्ष तुम्हारे पिता का जन्म हुआ था उस वर्ष मैं हिमालय गया था, योग सीखने के लिए. वहां एक योगी मिले. वह योगी..........’
‘दादा जी, भूत आपसे दया की भीख क्यों मांगने लगे?’ बहन ने पूछा.
‘उन योगी महाराज की कहानी किसी और दिन सुनाऊंगा. तो उस दिन जब मैंने गुरु से सहायता मांगी तो वह उसी पल जहाज़ पर प्रकट हो गए. मुझे पता ही न चला था, मैं घबराया हुआ था. मुझे तो अपना अंत दिखाई पड़ रहा था. पर भूतों ने उन्हें देख लिया और डर कर मुझे से दया की भीख मांगने लगे.’
‘गुरु ने उन्हें डरा दिया था, पर कैसे?’ भाई ने पूछा.
‘यह एक राज़ की बात है. गुरु की अनुमति के बिना उनकी शक्तियों के बारे में मैं किसी को कुछ नहीं बता सकता.’
‘फिर क्या हुआ?’
‘मुझे भी अपने गुरु के आने का पता लग गया था. बस, मेरा डर उड़न-छू हो गया. मैंने अकड़ कर भूतों से कहा, “अभी वापस लौट जाओ, जहां से आये हो वहीं चले जाओ, अभी नहीं तो मैं तुम सब को भस्म कर दूंगा,” और......उसी पल सारे भूत गायब हो गये.
‘मेरे अफसर ने समझा कि मैंने......अपनी शक्ति और बहादुरी से भूतों को भगा दिया था, वो गुरु को देख न....सकता था. बस...बहुत खुश....हुआ....प्रसन्न.....हो कर....उसने सरकार से........सिफारिश.......की.....मुझे........’
मेरे भाई और बहन एक साथ बोले.
‘किस बात की सिफारिश की? किसी पुरूस्कार के लिए? बताओ न दादा जी,’ बहन ने उत्सुकता से पूछा.
‘अंग्रेज़ अफसर आपके गुरु जी को क्यों नहीं देख सकता था?’ भाई ने पूछा.
पर दादा जी ने कोई उत्तर न दिया. सिर्फ उनके खर्राटे सुनाई दिये. दादा जी तो गहरी नींद में थे. 

©आइ बी अरोड़ा 

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