नन्हा हाथी और नन्हा
पक्षी
नदी किनारे नन्हा
हाथी
इक दिन टहल रहा था
देखा वहां इक नन्हा
पक्षी
वो माँ से बिछुड़ गया
था.
नन्हा पक्षी था थोडा
सहमा
आंसू थे आँखों से
बहते
नन्हा हाथी घबराया देख
उसे
पर रुक गया कुछ
कहते-कहते.
वहीँ निकट इक काला
सांप
बैठा था घास में छिपकर
नन्हें पक्षी को घूर
रहा था
और उसे खा जाने को
था तत्पर.
सांप देख कर नन्हें
हाथी को
याद आई नानी की बात
‘अगर कहीं दिखे कोई
सांप
तो तुरंत वहां से
जाना भाग’.
पर सांप देख कर भी
नन्हा हाथी भाग न
पाया
नन्हें पक्षी के
आंसु देख
उस का मन था भर आया.
देखी वहां नन्हें
हाथी ने
पेड़ की सूखी इक डाल
उसे उठा लगा वह चलने
वो
अपनी नानी जैसी चाल.
कान थे उसके दोनों
फैले
झूम रही थी डाली
मन में था बस यही
विचार
‘मेरा वार न जाए
खाली.’
दौड़ा वो उस सांप की
ओर
और डाल से उसको मारा
सांप था भूखा कई
दिनों का
डर के भागा वो
बेचारा.
नन्हें हाथी ने नन्हें
पक्षी को
उठा लिया सूंड में अपनी
उसे ले चल दिया वहां
जहां थी उसकी माँ और
नानी.
माँ और बूढ़ी नानी को
नन्हें पक्षी पर आया
प्यार
उसे साथ रखने को वह
दोनों
हो गए पल भर में तैयार.
नन्हा हाथी और नन्हा
पक्षी
अब दोनों रहते हैं
इक साथ
दोनों मित्र बने पर
कैसे
जान न कोई पाया यह
बात.
©आइ बी अरोड़ा
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