Sunday, 29 May 2016

नन्हा नटखट हाथी
इक नन्हा हाथी था
बहुत ही नटखट
दौड़ता-भागता रहता था
वो झटपट-झटपट
नानी को इक दिन
उस पर गुस्सा आया
पकड़ उसे
ज़ोर का चपत लगाया
फिर थोड़ा चीख कर
बोली नानी
‘मूर्ख, तुमने एक बात
अभी तक न जानी
जंगल में हरदम
रहना पड़ता है होशियार
शत्रु हमारे रहते हैं
खाने को हरदम तैयार
अपने भाई-बहनों को देखो
और कुछ सीखो
सदा रहो झुण्ड के पास
वरना जाओगे खो’
नन्हा हाथी खूब हंसा
नानी की बातों पर
दौड़ने लगा तेज़ी से
वो नटखट इधर-उधर  
फिर आँखें मिचकाईं
और कहा नानी से
‘नानी, आज तुम भी
कुछ सीख लो मुझसे
आ जाये अगर शत्रु सामने
तो इतना करना
नहीं देखना दायें-बाएं
बस सीधा चलना 
जो भागेगा तेज़
उसी के बचने की है आस
तेज़ भागने का मैं बस 
हरदम करता हूँ अभ्यास’

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©आइ बी अरोड़ा 

Thursday, 26 May 2016

जंगल में थे सारे सोये
जंगल में थे सारे सोये
मीठे सपनों में थे खोये
कोई सोया घास में छिपकर
कोई सोया पेड़ के ऊपर     
कोई सोया माँद के भीतर
और कोई किसी झाड़ पे चढ़कर   
किसी ने ओढ़ी डालों की चादर
किसी के ऊपर फैला अंबर  
कोई सोया ले पत्तों की ओट
बंद किये अपने प्यारे होंठ  
तभी अचानक हुआ धमाका
हर कोई सोया नींद से जागा   
डर कर हर इक उठ कर बैठा
जान बचाने को हर कोई भागा
सब पर आफत आन पड़ी
धमाकों की थी लगी झड़ी    
भालू ने ही साहस दिखलाया
छड़ी लिए वह घर से आया
सब के सब थे हुए हैरान
वन में आया कैसा तूफ़ान  
‘भालू ही अब कुछ कर पाये
कैसे भी कर संकट से बचाये’
भालू पर था थोड़ा सहमा
साथ न था कोई अपना
अँधेरे से उसे लगता था डर
कुछ तो करना होगा पर   
‘सब के सब हैं बैठे छिपकर
कोई तो आता घर से बाहर’
पर अब न था कोई उपाये 
मन चाहे क्यों न घबराए
छड़ी थामे चला उस ओर
धमाके हो रहे थे जिस ओर
देखी वहां इक बात निराली
मुहं से निकल गयी इक गाली
इक पेड़ के नीचे था हाथी
जिसका था न कोई साथी
हाथी बैठा था पकड़े माथा
लगातार वह छींक रहा था
‘भाई, रखो तुम मुझ से दूरी
बिगड़ गई है हालत मेरी
कई बार कहा था नानी ने  
न जाना ठन्डे पानी में
मुझे लगा है आज ज़ुकाम
अब छींकें आ रहीं बिना विराम’
भालू हंसी रोक न पाया
लौट कर उसने सबको बतलाया
हाथी पर सबको गुस्सा आया
पर रातभर कोई सो न पाया.

© आइ बी अरोड़ा 

Tuesday, 24 May 2016

मेंडक ने जब कूद लगाई
मेंडक ने जब कूद लगाई
रोक न पाया बन्दर भाई
उसे आई खूब हंसीं
पेड़ में उसकी पूंछ फंसी
वो हंसता था मेंडक पर
बैठा था  इक पेड़ के ऊपर
नीचे मेंडक उछल रहा था
परवाह किसी की करता न था
उसने देखा था इक सपना
सपने में देखा था इक अपना
चाँद पर था जो मस्ती से लेटा
‘तुम भी आओ यहाँ पर बेटा’
उसने था यूँ मेंडक से कहा
मेंडक के मन तब जागी इच्छा
‘क्यों न मैं भी जाऊं चाँद पर
पर जाऊं कैसे मैं इतना ऊपर’
उसने क्या खूब सोच-विचार
मुहं में रखे आम अचार
‘दिन भर अब मैं करूं यही
लम्बी कूदें लगाऊं कई’
मेंडक ने फिर इक कूद लगाई
रोक न पाया बन्दर भाई
उसे आई खूब हंसी
पेड़ में उसकी पूंछ फंसी.


Monday, 16 May 2016

Spots on the Moon
Have you heard of
King Jeorje West, the Fat
(Poor fellow was
actually thin and not fat)
He ruled when
two big continents were one
And moon up there
had dark spots but none
King Jeorje West, the Fat
was truly a great king
And what prosperity
in the country did he bring
But this king who wasn’t fat
had one little failing
It  would one day leave
his dear ones wailing
He was fond of
sorcery and magic
And for this
his end was to be tragic
King Jeorje etc wanted to be
the lord of all seas and land
And he disliked those
who dared to stand
He kept on waging
wars on all kings
He would often shout,
‘I will rule all earth and things’
But there was a king
who was weakling but clever
He wanted to rule
his country and for ever
He was scared of
King Jeorje West, the Fat
He always felt like a mouse
chased by a wild cat
But the clever king was friendly
with weird magic men
And they had helped him
now and then
They gave him some
magic potions and wands
He came to King Jeorje etc
and with  fancy bands
He bowed respectfully
as if he was full of deep devotion
And offered him all
magic wands and potions
‘My Lord,’ said he,
‘mercy, pray spare my crown
And accept these things
that are of magic renown’
King Jeorje West, the Fat
was fond of magic
Not knowing that
it could some day turn tragic
He took the magic wands
and potions warmly
He knew he would use them
all very calmly
He would turn
unconquered kings into rats
And eat them all
turning into a big wild cat
But the king who was
weakling and clever
And who wanted to rule
his country for ever
Had deviously tricked
King Jeorje West, the Fat
With treacherous potions
and wands and all that
King Jeorje etc
was but a fool
And he acted
just like a stupid mule
He tried some gifted magic
on a pleasant  night
When everyone was asleep
and the moon was bright
The magic worked truly
but what a shocker it was
He turned real fat
and without a pause
He was flying in the sky
like a bloated balloon
He  went up and up and 
straight to the moon
In twinkling of an eye
he landed there
Of course he didn’t know
he had landed where
That day onwards
people saw spots on the moon
It’s King Jeorje etc (unusually fat)
stuck up there like a buffoon.

© i b arora