Tuesday, 24 May 2016

मेंडक ने जब कूद लगाई
मेंडक ने जब कूद लगाई
रोक न पाया बन्दर भाई
उसे आई खूब हंसीं
पेड़ में उसकी पूंछ फंसी
वो हंसता था मेंडक पर
बैठा था  इक पेड़ के ऊपर
नीचे मेंडक उछल रहा था
परवाह किसी की करता न था
उसने देखा था इक सपना
सपने में देखा था इक अपना
चाँद पर था जो मस्ती से लेटा
‘तुम भी आओ यहाँ पर बेटा’
उसने था यूँ मेंडक से कहा
मेंडक के मन तब जागी इच्छा
‘क्यों न मैं भी जाऊं चाँद पर
पर जाऊं कैसे मैं इतना ऊपर’
उसने क्या खूब सोच-विचार
मुहं में रखे आम अचार
‘दिन भर अब मैं करूं यही
लम्बी कूदें लगाऊं कई’
मेंडक ने फिर इक कूद लगाई
रोक न पाया बन्दर भाई
उसे आई खूब हंसी
पेड़ में उसकी पूंछ फंसी.


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