Thursday, 26 May 2016

जंगल में थे सारे सोये
जंगल में थे सारे सोये
मीठे सपनों में थे खोये
कोई सोया घास में छिपकर
कोई सोया पेड़ के ऊपर     
कोई सोया माँद के भीतर
और कोई किसी झाड़ पे चढ़कर   
किसी ने ओढ़ी डालों की चादर
किसी के ऊपर फैला अंबर  
कोई सोया ले पत्तों की ओट
बंद किये अपने प्यारे होंठ  
तभी अचानक हुआ धमाका
हर कोई सोया नींद से जागा   
डर कर हर इक उठ कर बैठा
जान बचाने को हर कोई भागा
सब पर आफत आन पड़ी
धमाकों की थी लगी झड़ी    
भालू ने ही साहस दिखलाया
छड़ी लिए वह घर से आया
सब के सब थे हुए हैरान
वन में आया कैसा तूफ़ान  
‘भालू ही अब कुछ कर पाये
कैसे भी कर संकट से बचाये’
भालू पर था थोड़ा सहमा
साथ न था कोई अपना
अँधेरे से उसे लगता था डर
कुछ तो करना होगा पर   
‘सब के सब हैं बैठे छिपकर
कोई तो आता घर से बाहर’
पर अब न था कोई उपाये 
मन चाहे क्यों न घबराए
छड़ी थामे चला उस ओर
धमाके हो रहे थे जिस ओर
देखी वहां इक बात निराली
मुहं से निकल गयी इक गाली
इक पेड़ के नीचे था हाथी
जिसका था न कोई साथी
हाथी बैठा था पकड़े माथा
लगातार वह छींक रहा था
‘भाई, रखो तुम मुझ से दूरी
बिगड़ गई है हालत मेरी
कई बार कहा था नानी ने  
न जाना ठन्डे पानी में
मुझे लगा है आज ज़ुकाम
अब छींकें आ रहीं बिना विराम’
भालू हंसी रोक न पाया
लौट कर उसने सबको बतलाया
हाथी पर सबको गुस्सा आया
पर रातभर कोई सो न पाया.

© आइ बी अरोड़ा 

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