Friday, 5 December 2014

अंत भले का भला
भीमा भालू का स्वभाव ऐसा था कि बिना सोचे-समझे ही वह हर किसी की सहायता कर दिया करता था.
एक दिन भेड़िया आया और बोला, “भइया, सियार बहुत बीमार है. उसका इलाज कराने ले लिए पैसे भी नहीं हैं. अगर थोड़ी सहायता कर दो तो बड़ी मेहरबानी होगी.”
“पिछले माह तुमने अपने इलाज के लिए दो सौ रूपए लिए थे. वह रूपए तुमने अभी तक नहीं लौटाये.”
“भइया, मैं सारे पैसे लौटा दूंगा. बस आज मदद कर दो. इलाज न हुआ तो सियार मर जाएगा,”
भीमा का मन पसीज गया. उसने भेड़िये को सौ रूपए दी दिए.
कुछ दिन बाद भालू ने सियार को अपने घर के बाहर गिरा पाया. वह भाग कर आया और सियार से पूछा, “क्या हुआ?”
“दो दिन से कुछ नहीं खाया. घर में अनाज का एक दाना भी नहीं है. भूख से जान निकल रही है.”
भीमा सहारा दी कर सियार को अपने घर ले आया और उसे पेट भर खाना खिलाया.
चतुरलाल बंदर भीमा के स्वभाव से परिचित था. उसने भीमा से कहा, “भीमा, सोच-समझ कर किसी की सहायता किया करो. भेड़िया और सियार बार-बार तुम्हें बुद्धू बनाते हैं. झूठी कहानियां सुना कर तुम्हें ठगते हैं.”
“मैं क्या करूं, जब भी कोई मुझसे सहायता माँगता है मैं न नहीं कह पाता,” भीमा ने धीमे से कहा.
“ऐसे तो कभी न कभी तुम मुसीबत में फंस जाओगे,” बंदर ने समझाया.
एक शाम भीमा भालू घर पर था. किसी ने उसके घर का दरवाज़ा खटखटाया. भीमा ने दरवाज़ा खोला. बाहर भेड़िया और सियार थे. दोनों घबराये हुए थे. सियार बोला, “भइया, हमारी सहायता करो. पुलिस हमें ढूंढ रह है.”
“क्या हुआ? पुलिस तुम्हें क्यों ढूंढ रही है?” भीमा ने आश्चर्य से पूछा.
“इंस्पेक्टर होशियार सिंह समझता है कि हमनें बैंक लूटा है. पर हम निर्दोष हैं,” भेड़िये ने सुबकते हुए कहा.
“हम सच कह रहे हैं. हम ने कुछ नहीं किया. पर इंस्पेक्टर हमारी बात का विश्वास नहीं करेगा और हमें जेल में बंद कर देगा,” सियार ने कहा.
भीमा भालू उनकी बातों में आ गया. उसने दोनों को अपने घर में छिपा लिया. कुछ ही देर में इंस्पेक्टर वहां आ पहुंचा.
“सियार और भेड़िया इधर तो नहीं आये?” इंस्पेक्टर ने सवाल किया.
“बात क्या है?” भालू ने सीधा जवाब न दिया.
“बैंक में डाका पड़ा है. हमें संदेह है कि यह काम सियार और भेड़िये का है. हम उन्हें गिरफ्तार करने गये तो दोनों भागने में सफल हो गये. थोड़ा सतर्क रहना. अगर वह दिखाई दें तो तुरंत मुझे फोन करना,” इतना कह इंस्पेक्टर चल दिया.
भीमा भीतर आया तो उसने भेड़िये को फोन पर किसी से बात करते सुन लिया. भेड़िया कह रहा था, “आज कुछ न करेंगे. आज पुलिस बहुत चौकस है. तुम चिंता न करो, रूपए ऐसी जगह संभाल कर रख दिए हैं कि कोई सोच भी नहीं सकता. कल रात भीमा के घर के पीछे मिलना.”
भीमा के कान खड़े हो गये. उसने मन ही मन कहा, “कुछ गड़बड़ तो है.”
उसने सियार और भेड़िये से कहा, “मैंने इंस्पेक्टर को समझा दिया है वह तुम को तंग न करेंगे. अब तुम अपने घर जाओ.”
उनके जाते ही भीमा अपने कमरे में टहलने लगा. खूब सोच विचार कर उसने इंस्पेक्टर को फोन किया, “कल रात आप मेरे घर आना, परन्तु सावधानी के साथ, किसी को पता न चल पाये मेरे घर के आसपास पुलिस है.”
“क्यों?” इंस्पेक्टर ने पूछा.
“आप को बैंक से लूटे रूपये और बैंक के लुटेरे दोनों मिल जायेंग.”
अगली रात इंस्पेक्टर चार सिपाहियों के साथ भीमा के घर आया. भीमा के कहने पर सब घर के पिछवाड़े आये और छिप कर प्रतीक्षा करने लगे. लगभग ग्यारह बजे सियार और भेड़िया आये. दोनों ने इधर उधर देखा. कोई दिखाई न दिया. दोनों भीमा के कार गैरज की ओर गये. सियार ने चाबी से गैरज का ताला खोला, भीतर गया और एक बैग लेकर बाहर आया.
तभी पुलिस ने उन दोनों को घेर लिया. उनके होश उड़ गये. इंस्पेक्टर ने बैग अपने कब्ज़े में ले लिया. बैग रुपयों से भरा था. इंस्पेक्टर ने दोनों को हथकड़ी लगा दी. दोनों को समझ ही न आया के यह सब कैसे हो गया. उन्होंने तो कहीं कोई सुराग छोड़ा ही न था.
इंस्पेक्टर ने भीमा से पूछा, “तुम्हें कैसे पता चला की रूपये तुम्हारे गैरज में छिपा कर रखे गये हैं?”
“पिछले सप्ताह यह दोनों मेरे पास आये थे. इन्होंने कहा था कि इनकी कार का टायर पंक्चर हो गया था. कार का टायर बदलना था पर जैक नहीं मिल रहा. मैंने गैरज से जैक निकाल कर दी दिया. तब सियार ने कहा कि टायर बदल कर वह स्वयं ही जैक गैरज के अंदर रख देंगे. मैंने गैरज की चाबी इन्हें दे दी थी.”
“पर इनके पास कार तो है नहीं?” इंस्पेक्टर ने टोक कर कहा.
“इस बात का ध्यान मुझे कल आया. कल मैंने आपसे झूठ बोला था. यह दोनों मेरे घर में ही छिपे थे. इनकी बातों में आकर मैंने इन्हें अपने घर में छिपने दिया था.  पर आपके जाने के बाद मुझे इनकी चाल समझ आ गयी थी. इन्होंने पिछले सप्ताह ही मेरे गैरज की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. बैंक लूट कर रूपये वहीं छिपा दिए थे. यह जानते थे कि किसी को यह संदेह न होगा की रुपये मेरे कार गैरज में रखे हैं.”
“तुमने यह सब मुझे पहले क्यों नहीं बताया?” इंस्पेक्टर ने पूछा.
“इन दोनों ने कई बार मुझे मूर्ख बनाया है. इसलिये मैंने सोच था की दोनों को एक बार ऐसी पटखनी दूंगा की इन्हें जीवन भर याद रहे.” भीमा अपने समझ पर इतराने लगा.
इतने में सियार और भेड़िये का तीसरा साथी लोमड़ भी आ पहुंचा. पुलिस ने उसे भी पकड़ लिया.
अगले दिन भालू ने चतुरलाल बंदर से कहा, “तुम्हारी बात न मान कर मैंने बड़ी भूल कर दी थी. मैं तो उन बदमाशों के अपराध का भागीदार बनने वाला था.”
“भइया, अंत भले का भला.” बंदर ने कहा 
© आई बी अरोड़ा 

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