उलट फेर
इक वन में हुआ उलट फेर
वहां न था एक भी शेर
रंगा सियार शेर सा बोला
उसको सुन सब का मन डोला
“ मैंने नवेला रूप है पाया
यह जंगल है मेरे मन भाया
मैं ही हूँ शेर, यह तुम जानो
मुझको अब अपना राजा मानो”
हर एक का दिल काँप गया
सब ने झुक कर प्रणाम किया
लेकिन हाथी बहुत चतुर था
सियार की चालाकी भांप गया था
बहुत ज़ोर हाथी चिल्लाया
“भागो-भागो, शेर है आया”
डर से सियार की बंद गई घिग्घी
दुम दबा कर तब भागा पाजी
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पोल खुल गयी ! बढ़िया बाल कविता
ReplyDeleteधन्यवाद योगी
DeleteHa ha, Bahut Khub Arora sir :)
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक
DeleteReminds me of my childhood. What fun!
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