कामचोर
एक कौआ था. नाम था
उसका पिंछू. वो कामचोर था. उसकी माँ जब भी कोई काम उसे करने को कहती तो वो कोई न
कोई बहाना बना कर टाल देता. माँ उसे अगर कुछ समझाती तो भी वो सुनी अनसुनी कर देता.
गुस्से में आकर माँ एक दिन उस पर खूब चिल्लाई, “तुम पूरे आलसी और कामचोर हो. घर का
थोड़ा सा काम भी तुम नहीं करते. बस सारा दिन या तो आराम करते रहते हो या खाते रहते
हो.”
पिंछू ने तुनक कर
कहा, “ मैं भी हर दिन की इस चिकचिक से तंग आ चुका हूँ. देखना मैं एक दिन हिमालय
पर्वत की ओर चला जाऊंगा”
उसकी बात सुन कर
उसके सारे भाई बहन हंसने लगे. एक भाई ने कहा, “हाँ भई, हिमालय की ठंडी हवा के क्या
कहने. यहाँ की गर्मी में तो कोई ठीक से आराम भी नहीं कर सकता.”
भाई की बात सुन
पिंछू चिढ़ गया. वो उसी समय हिमालय की ओर चल दिया. उसके माता-पिता भाई-बहन सब देखते रहे.
किसी ने उसे रोका नहीं. उसे थोड़ी निराशा हुई. वो सोच रहा था की माँ उसे ऐसे जाने न
देगी. पर ऐसा हुआ नहीं.
हिमालय पर्वत बहुत
दूर था. पिंछू दिन भर उड़ता. रात में किसी पेड़ की शाखा पर बैठ आराम करता और सो
जाता. बीस दिन की लम्बी यात्रा के बाद वो हिमालय पहुंचा. वो बहुत थक चुका था पर
प्रसन्न था. देवदार पेड़ की एक ऊंची शाखा पर बैठ कर वो पहाड़ों की ठंडी हवा का आनंद
लेने लगा.
उसी पेड़ पर कुछ
पहाड़ी कौवे भी बैठे थे. पिंछू ने देखा कि वो सब थोड़े अलग से थे. वो सब पूरी तरह
काले थे. उसने मन ही मन कहा, “मैं इनसे दूर ही रहूँगा.”
एक पहाड़ी कौवे ने
पास आकर कहा, “अरे दोस्त, कहाँ से आ रहे हो? कहाँ जा रहे हो? क्या रास्ता भटक गये
हो? मुझे बताओ मैं तुम्हारी सहायता करुंगा. मेरा नाम काटू है.”
पिंछू ने काटू की
बात अनसुनी कर दी. उसने मन ही मन कहा, “कितना बातूनी कौवा है.”
पहाड़ी कौवों को उसका
व्यवहार अच्छा न लगा और कोई भी उसका दोस्त न बना.
पिंछू को हिमालय की
ठंडी हवा इतनी अच्छी लगी कि वो ज़ोर-ज़ोर से गाने लगा, “वाह-वाह क्या हवा, वाह-वाह
क्या हवा.”
कई दिन और सप्ताह
बीत गये. सर्दी की दिन निकट आ गये. अब सब पहाड़ी कौवे दिन भर व्यस्त रहते. यहाँ वहां जाकर वो सब
खाने का सामान इकट्ठा करते रहते. इसी खाने के सामान के सहारे वो सर्दी के दिन बिताने वाले थे. बस एक
पिंछू ही था जो कुछ भी इकट्ठा न कर रहा था. वो तो बस सारा दिन अपना गीत गाता रहता
था.
एक दिन काटू ने उससे
कहा, “कुछ ही दिनों में सर्दी शुरू हो जाएगी. खूब बर्फ गिरेगी. फिर खाने को कुछ न
मिलेगा. अभी से कुछ प्रबंध कर लो. नहीं तो सर्दी में भूखे रहना पड़ेगा. और एक बात
समझ लो, सर्दी में भूख भी खूब लगती है. एक दिन खाना न मिले तो जान पर आ पड़ती है.”
पिंछू ने काटू की
बात तक न सुनी और मुंह फेर कर गाने लगा, “वाह-वाह क्या हवा,
वाह-वाह क्या हवा.”
एक सुबह पिंछू सो कर
उठा तो देखा कि हर चीज़ सफ़ेद हो गई है. ऐसा रात भर बर्फ गिरने से हुआ था. धरती पर,
पेड़ों पर, यहाँ तक कि उसकी पीठ पर भी बर्फ की एक परत जमा हो गई थी. उसने अपने पंख
फड़फड़ाये और अपने शरीर पर जमा हुई बर्फ हटाई. उसने मन ही मन कहा, “ ऐसा सुंदर दृश्य
विचित्र वन में तो कभी नहीं देखा. अच्छा किया जो मैं यहाँ आ गया. कितना मज़ा आ रहा
है.”
परन्तु जब उसे भूख
लगी तो वो थोड़ा घबराया. उसे ऐसा कुछ भी दिखाई न दी रहा था जिसे खा कर वो अपनी भूख
मिटाता. वो पेड़ से नीचे आया. हर तरफ बर्फ ही बर्फ थी. घास का एक तिनका भी दिखाई न
दी रहा था. बहुत खोजने के बाद उस एक जगह बर्फ के नीचे कुछ दिखाई दिया. वो किसी गाय
या भैंस का गोबर था. पर पिंछू ने समझा कि खाने की कोई चीज़ बर्फ के नीचे दबी है.
उसने उस चीज़ को खाने के लिए बर्फ में चोंच मारी. उसकी चोंच गोबर में फंस गई. वो
थोड़ा डर गया. उसने पूरी ताकत लगा कर चोंच को बाहर खींचा. चोंच बाहर आई तो उस पर
गोबर चिपका हुआ था. उसकी हालत देख कर आसपास के पेड़ों पर बैठे पहाड़ी कौवे खिलखिला
कर हंस दिये और सब एक साथ गाने लगे, “वाह-वाह क्या हुआ, वाह-वाह क्या हुआ.”
पिंछू की आँखों से
आंसू निकल आये. उसे अपनी माँ की याद आई. तभी काटू ने पास आकर कहा, “माँ की याद आ
रही है? माँ ने कई बार कहा होगा की आलसी और कामचोर मत बनो. परन्तु तुम्हें उनकी
बात अच्छी न लगी होगी. तुम घर छोड़ कर यहाँ आ गये.”
“हाँ,” पिंछू ने
धीमे से कहा.
“अभी तो मैं
तुम्हारी सहायता कर देता हूँ. पर तुम्हें अपने व्यवहार के बारे में थोड़ा सोचना
पड़ेगा.” काटू ने उसे अपने भंडार से थोड़ा सा खाना दिया.
पिंछू को अपनी भूल
का अहसास हो रहा था. जैसे ही बादल छंटे वो वापस अपने विचित्र वन की ओर चल दिया. घर
पहुंचा तो किसी ने भी उसका स्वागत न किया. पर जल्दी ही सब जान गये की वो बदल चुका
था. अब न वो आलसी था न ही कामचोर. सब उससे प्यार करने लगे.
© आई बी अरोड़ा
सुन्दर शब्दों में लिखी प्रेरणा देती कहानी
ReplyDeletethanx for appreciation
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