साइकिल की सैर
सुरेश का स्कूल उसके घर से कोई तीन किलोमीटर दूर था. वह साइकिल पर
स्कूल आया-जाया करता था. हर दिन शाम के समय वह अपने छोटे भाई चिन्नी को साइकिल पर
घुमाने भी ले जाता था.
चिन्नी छह साल का था. वह बहुत ही नटखट लड़का था पर माँ का लाड़ला भी
था. अगर किसी दिन सुरेश उसे साइकिल पर घुमाने न ले जाता तो वह खूब हो-हल्ला करता,
भाई को परेशान करता. अगर सुरेश उसे डांटता तो वह माँ से शिकायत करता. परन्तु
साइकिल की सैर किये बिना वह कभी शांत न होता.
एक दिन वह दोनों साइकिल कई सैर करने के लिए घर से निकल रहे थे कि
उनके चाचा ने कहा, “सुरेश, ज़रा होशियार रहना. मैंने सुना है कि बदमाशों का एक
गिरोह यहाँ आया हुआ है. राह चलते लोगों से वह उनका सामान लूट लेते हैं.”
“चाचा जी, हमारे पास ऐसा है ही क्या जो वह हम से लूट लेंगे? न जेब में
पैसे हैं, न कलाई पर घड़ी,” सुरेश ने कहा और खिलखिला कर हँस पडा.
सुरेश धीरे-धीरे साइकिल चला रहा था. चिन्नी पीछे कैरियर पर बैठा था.
उसने अपने दोनों हाथ हवा में फैला रखे थे. उसने कहा, ‘भाई देखो, मैं हवाई जहाज़ में
बैठा हूँ और तुम मेरे हवाई जहाज़ के ड्राईवर.”
“अरे बुद्धू, हवाई जहाज़ चलाने वाले को पायलट कहते हैं, ड्राईवर तो
मोटर और गाड़ी चलाते हैं,” सुरेश ने हँसते हुए कहा.
दोनों बातें करने में मग्न थे. दोनों ने देखा ही नहीं कि एक जगह
रास्ते के आर-पार रस्सी बिछी थी. जैसे ही वह पास आये रस्सी हवा में उछल पड़ी.
साइकिल का अगला पहिया रस्सी में फंस गई. साइकिल उलट गई. जब तक सुरेश सँभलता दो
आदमी भाग कर आये. एक ने चिन्नी को उठा लिया, दूसरे ने सुरेश के सर पर डंडे से वार
किया.
चोट लगने से सुरेश को चक्कर आ गये. बदमाश चिन्नी को लेकर भाग गये.
सुरेश ने अपने-आप को सँभाला. चोट की परवाह किये बिना वह बदमाशों का पीछा करने लगा.
सुरेश मन ही मन सोच रहा था कि अकेले वह बदमाशों का सामना न कर सकता
था. उसने मन ही मन कहा, “मुझे कोई तरकीब सोचनी पड़ेगी, नहीं तो चिन्नी किसी मुसीबत
में फंस जाएगा.”
उसके सिर में दर्द हो रहा था पर वह साहस के साथ बदमाशों का पीछा करता
रहा. बदमाशों को पता न चला कि सुरेश उनका पीछा कर रहा था.
बदमाश एक पुरानी हवेली के अंदर चले गये. हवेली एक सुनसान जगह पर थी
और दूर-दूर तक कोई घर नहीं था. सुरेश हवेली के पास आया. उसे एक खिड़की दिखाई दी जो
टूटी हुई थी. उसने चुपके से भीतर झाँका. बदमाश चिन्नी के हाथ-पाँव बाँध रहा था.
तभी एक बदमाश ने कहा, “कल इसके बाप के पास संदेस भेजना. एक लाख रूपये देकर अपने
बेटे को ले जाए.”
“सिर्फ एक लाख?” दूसरे बदमाश ने कहा.
“अरे, उसके पास इतने भी नहीं होंगे,” पहले बदमाश ने कहा.
सुरेश समझ गया कि इन लोगों ने उसके भाई का अपहरण किया था. वह जानता
था कि उसके पिता एक लाख रुपये नहीं दे पायेंगे.
“उनके पास तो दस हज़ार भी शायद न हों. मुझे ही कुछ करना होगा और
चिन्नी को बचाना होगा,” उसने तय किया कि वह तुरंत पुलिस चौकी जाकर पुलिस को बुला लाएगा.
फिर उसके मन में आया, “पुलिस चौकी जाने में पन्द्रह-बीस मिनट लग जायेंगे, फिर वहाँ
कितना समय लग जाए पता नहीं. एक घंटे से पहले पुलिस यहाँ नहीं पहुँच सकती. क्या
करूँ?”
तभी उसने एक बदमाश को कहते सुना, “अरे बिज्जू, हमने बड़ी गड़बड़ कर दी.”
“क्या हो गया?” बिज्जू ने पूछा.
“आज हमें लालगंज पहुँचना था, सरदार का हुक्म था. आज वहाँ धनीराम के
घर डाका डालना है.”
“अरे, डाका मंगलवार के दिन डालना है, आज नहीं.” बिज्जू ने कहा.
“आज मंगलवार ही तो है.” पहले बदमाश ने कहा.
“मर गए, यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई. सरदार तो गुस्से से पागल हो जाएगा,
हमारी जान ले लेगा,” बिज्जू ने कहा.
“ऐसा करते हैं, अभी चलते. पर इस बच्चे का क्या करें?”
“इसे साथ ले चलते हैं, सरदार देखेगा तो खुश होगा, शाबाशी देगा,”
बिज्जू बोला.
“हाँ, ऐसा ही करते हैं. थोड़ी देर प्रतीक्षा करते हैं. जैसे ही अँधेरा
हो जाएगा हम यहाँ से चल देंगे,” पहले बदमाश ने कहा.
सुरेश उनकी बातें सुन रहा था, वह सोचने लगा, “अब अगर पुलिस के पास गया
तो देर हो जायेगी. अगर पुलिस के साथ जल्दी न लौट पाया तो यह लोग हाथ से निकल
जायेंगे. और चिन्नी को साथ ले जायेंगे. चिन्नी को बचाने के लिए तुरंत ही कुछ करना
होगा. मुझे ही करना होगा. पर क्या?”
तभी उसे सगुना का ध्यान आया और उसे एक तरकीब सुझाई दी.
अपनी साइकिल को हवा की गति से चलाता हुआ सगुना के घर आया. कुछ ही
मिनटों में वह सगुना को साथ ले वह हवेली की ओर चल दिया. सगुना भी उसके पीछे-पीछे
अपनी साइकिल पर आ रहा था. हवेली के निकट आकर दोनों अपनी साइकिलों से उतर गए. फिर
सुरेश ने सगुना के कान में धीमे से कहा, “तुम उस खिड़की की ओर जाओ, मैं हवेली के
दरवाज़े की ओर जाता हूँ. जैसे ही बदमाश बाहर भागेंगे, मैं चिन्नी को लेकर घर की ओर
भागूँगा. कल सुबह घर आकर तुम पैसे ले लेना.”
सुरेश हवेली के दरवाज़े के पास आकर छिप गया. सगुना खिड़की के पास आकर
नीचे बैठ गए. उसके पास एक पोटली थी उसने पोटली से कुछ निकाला और खिड़की से अंदर कमरे
में रख दिया.
अंदर दोनों बदमाश धीरे-धीरे बातें कर रहे थे.
“अब चलना चाहिए.”
“अभी अँधेरा पूरी तरह नहीं हुआ, थोड़ी देर और प्रतीक्षा कर लेते हैं.”
“देर से पहुँचे तो सरदार नाराज़ हो जाएगा.”
“तुम्हें पता ही मैं कैसे गाड़ी चलाता हूँ. हम समय से पहले ही पहुँच
जायेंगे.”
तभी एक बदमाश चिल्लाया, “साँप ! साँप!”
दोनों बदमाश एक साथ उछल कर खड़े हो गये. तीन साँप रेंगते हुए उनकी ओर
आ रहे थे. साँपों को देखकर बदमाशों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई. एक साँप सिर उठा
कर फुफकारने लगा. डर कर दोनों बदमाश बाहर भाग गये.
उनके जाते ही सगुना खिड़की के रास्ते भीतर आया. उसने तीनों साँपों को
उठा कर अपनी पिटारी में बंद कर लिया. यह साँप सगुना के थे. वह एक सपेरा था. सुरेश
के कहने पर वह उसकी मदद करने आया था.
बदमाशों के बाहर जाते ही सुरेश झट से अंदर गया. चिन्नी बहुत डरा हुआ
था. इसके पहले कि वह कुछ कहता सुरेश ने इशारा किया कि वह चुप रहे. उसने झटपट भाई
के हाथ-पाँव खोले और उसे साथ लेकर बाहर आ गया. उसने चिन्नी को साइकिल पर बिठाया और
पूरी ताकत लगा कर साइकिल चलाने लगा.
कुछ देर बाद बदमाश बिना शोर किये हवेली के अंदर आये. वहाँ उन्हें न
साँप दिखाई दिए और न ही चिन्नी. उन्हें समझ ही न आया कि क्या हुआ था.
घर पहुँच कर सुरेश ने पिता को सारी बात बताई और फटाफट साइकिल पर
पुलिस चौकी की ओर चल दिया. पुलिस ने तुरंत कार्यवाही की और बदमाशों को पकड़ लिया.
वह तो कब के वहाँ से खिसक गये होते पर उनकी गाड़ी ने उनका साथ न दिया था. वह खराब
हो गई थी.
पुलिस इंस्पेक्टर ने सुरेश के साहस और सूझबूझ की खूब प्रशंसा की.
सुरेश के माता-पिता और भाई ख़ुशी से फूले न समाये.
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