Tuesday, 1 February 2022

 

साइकिल की सैर

सुरेश का स्कूल उसके घर से कोई तीन किलोमीटर दूर था. वह साइकिल पर स्कूल आया-जाया करता था. हर दिन शाम के समय वह अपने छोटे भाई चिन्नी को साइकिल पर घुमाने भी ले जाता था.

चिन्नी छह साल का था. वह बहुत ही नटखट लड़का था पर माँ का लाड़ला भी था. अगर किसी दिन सुरेश उसे साइकिल पर घुमाने न ले जाता तो वह खूब हो-हल्ला करता, भाई को परेशान करता. अगर सुरेश उसे डांटता तो वह माँ से शिकायत करता. परन्तु साइकिल की सैर किये बिना वह कभी शांत न होता.

एक दिन वह दोनों साइकिल कई सैर करने के लिए घर से निकल रहे थे कि उनके चाचा ने कहा, “सुरेश, ज़रा होशियार रहना. मैंने सुना है कि बदमाशों का एक गिरोह यहाँ आया हुआ है. राह चलते लोगों से वह उनका सामान लूट लेते हैं.”

“चाचा जी, हमारे पास ऐसा है ही क्या जो वह हम से लूट लेंगे? न जेब में पैसे हैं, न कलाई पर घड़ी,” सुरेश ने कहा और खिलखिला कर हँस पडा.

सुरेश धीरे-धीरे साइकिल चला रहा था. चिन्नी पीछे कैरियर पर बैठा था. उसने अपने दोनों हाथ हवा में फैला रखे थे. उसने कहा, ‘भाई देखो, मैं हवाई जहाज़ में बैठा हूँ और तुम मेरे हवाई जहाज़ के ड्राईवर.”

“अरे बुद्धू, हवाई जहाज़ चलाने वाले को पायलट कहते हैं, ड्राईवर तो मोटर और गाड़ी चलाते हैं,” सुरेश ने हँसते हुए कहा.

दोनों बातें करने में मग्न थे. दोनों ने देखा ही नहीं कि एक जगह रास्ते के आर-पार रस्सी बिछी थी. जैसे ही वह पास आये रस्सी हवा में उछल पड़ी. साइकिल का अगला पहिया रस्सी में फंस गई. साइकिल उलट गई. जब तक सुरेश सँभलता दो आदमी भाग कर आये. एक ने चिन्नी को उठा लिया, दूसरे ने सुरेश के सर पर डंडे से वार किया.

चोट लगने से सुरेश को चक्कर आ गये. बदमाश चिन्नी को लेकर भाग गये. सुरेश ने अपने-आप को सँभाला. चोट की परवाह किये बिना वह बदमाशों का पीछा करने लगा.

सुरेश मन ही मन सोच रहा था कि अकेले वह बदमाशों का सामना न कर सकता था. उसने मन ही मन कहा, “मुझे कोई तरकीब सोचनी पड़ेगी, नहीं तो चिन्नी किसी मुसीबत में फंस जाएगा.”

उसके सिर में दर्द हो रहा था पर वह साहस के साथ बदमाशों का पीछा करता रहा. बदमाशों को पता न चला कि सुरेश उनका पीछा कर रहा था.

बदमाश एक पुरानी हवेली के अंदर चले गये. हवेली एक सुनसान जगह पर थी और दूर-दूर तक कोई घर नहीं था. सुरेश हवेली के पास आया. उसे एक खिड़की दिखाई दी जो टूटी हुई थी. उसने चुपके से भीतर झाँका. बदमाश चिन्नी के हाथ-पाँव बाँध रहा था. तभी एक बदमाश ने कहा, “कल इसके बाप के पास संदेस भेजना. एक लाख रूपये देकर अपने बेटे को ले जाए.”

“सिर्फ एक लाख?” दूसरे बदमाश ने कहा.

“अरे, उसके पास इतने भी नहीं होंगे,” पहले बदमाश ने कहा.

सुरेश समझ गया कि इन लोगों ने उसके भाई का अपहरण किया था. वह जानता था कि उसके पिता एक लाख रुपये नहीं दे पायेंगे.

“उनके पास तो दस हज़ार भी शायद न हों. मुझे ही कुछ करना होगा और चिन्नी को बचाना होगा,” उसने तय किया कि वह तुरंत पुलिस चौकी जाकर पुलिस को बुला लाएगा. फिर उसके मन में आया, “पुलिस चौकी जाने में पन्द्रह-बीस मिनट लग जायेंगे, फिर वहाँ कितना समय लग जाए पता नहीं. एक घंटे से पहले पुलिस यहाँ नहीं पहुँच सकती. क्या करूँ?”

तभी उसने एक बदमाश को कहते सुना, “अरे बिज्जू, हमने बड़ी गड़बड़ कर दी.”

“क्या हो गया?” बिज्जू ने पूछा.

“आज हमें लालगंज पहुँचना था, सरदार का हुक्म था. आज वहाँ धनीराम के घर डाका डालना है.”

“अरे, डाका मंगलवार के दिन डालना है, आज नहीं.” बिज्जू ने कहा.

“आज मंगलवार ही तो है.” पहले बदमाश ने कहा.

“मर गए, यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई. सरदार तो गुस्से से पागल हो जाएगा, हमारी जान ले लेगा,” बिज्जू ने कहा.

“ऐसा करते हैं, अभी चलते. पर इस बच्चे का क्या करें?”

“इसे साथ ले चलते हैं, सरदार देखेगा तो खुश होगा, शाबाशी देगा,” बिज्जू बोला.

“हाँ, ऐसा ही करते हैं. थोड़ी देर प्रतीक्षा करते हैं. जैसे ही अँधेरा हो जाएगा हम यहाँ से चल देंगे,” पहले बदमाश ने कहा.

सुरेश उनकी बातें सुन रहा था, वह सोचने लगा, “अब अगर पुलिस के पास गया तो देर हो जायेगी. अगर पुलिस के साथ जल्दी न लौट पाया तो यह लोग हाथ से निकल जायेंगे. और चिन्नी को साथ ले जायेंगे. चिन्नी को बचाने के लिए तुरंत ही कुछ करना होगा. मुझे ही करना होगा. पर क्या?”

तभी उसे सगुना का ध्यान आया और उसे एक तरकीब सुझाई दी.

अपनी साइकिल को हवा की गति से चलाता हुआ सगुना के घर आया. कुछ ही मिनटों में वह सगुना को साथ ले वह हवेली की ओर चल दिया. सगुना भी उसके पीछे-पीछे अपनी साइकिल पर आ रहा था. हवेली के निकट आकर दोनों अपनी साइकिलों से उतर गए. फिर सुरेश ने सगुना के कान में धीमे से कहा, “तुम उस खिड़की की ओर जाओ, मैं हवेली के दरवाज़े की ओर जाता हूँ. जैसे ही बदमाश बाहर भागेंगे, मैं चिन्नी को लेकर घर की ओर भागूँगा. कल सुबह घर आकर तुम पैसे ले लेना.”

सुरेश हवेली के दरवाज़े के पास आकर छिप गया. सगुना खिड़की के पास आकर नीचे बैठ गए. उसके पास एक पोटली थी उसने पोटली से कुछ निकाला और खिड़की से अंदर कमरे में रख दिया.

अंदर दोनों बदमाश धीरे-धीरे बातें कर रहे थे.

“अब चलना चाहिए.”

“अभी अँधेरा पूरी तरह नहीं हुआ, थोड़ी देर और प्रतीक्षा कर लेते हैं.”

“देर से पहुँचे तो सरदार नाराज़ हो जाएगा.”

“तुम्हें पता ही मैं कैसे गाड़ी चलाता हूँ. हम समय से पहले ही पहुँच जायेंगे.”

तभी एक बदमाश चिल्लाया, “साँप ! साँप!”

दोनों बदमाश एक साथ उछल कर खड़े हो गये. तीन साँप रेंगते हुए उनकी ओर आ रहे थे. साँपों को देखकर बदमाशों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई. एक साँप सिर उठा कर फुफकारने लगा. डर कर दोनों बदमाश बाहर भाग गये.

उनके जाते ही सगुना खिड़की के रास्ते भीतर आया. उसने तीनों साँपों को उठा कर अपनी पिटारी में बंद कर लिया. यह साँप सगुना के थे. वह एक सपेरा था. सुरेश के कहने पर वह उसकी मदद करने आया था.

बदमाशों के बाहर जाते ही सुरेश झट से अंदर गया. चिन्नी बहुत डरा हुआ था. इसके पहले कि वह कुछ कहता सुरेश ने इशारा किया कि वह चुप रहे. उसने झटपट भाई के हाथ-पाँव खोले और उसे साथ लेकर बाहर आ गया. उसने चिन्नी को साइकिल पर बिठाया और पूरी ताकत लगा कर साइकिल चलाने लगा.

कुछ देर बाद बदमाश बिना शोर किये हवेली के अंदर आये. वहाँ उन्हें न साँप दिखाई दिए और न ही चिन्नी. उन्हें समझ ही न आया कि क्या हुआ था.

घर पहुँच कर सुरेश ने पिता को सारी बात बताई और फटाफट साइकिल पर पुलिस चौकी की ओर चल दिया. पुलिस ने तुरंत कार्यवाही की और बदमाशों को पकड़ लिया. वह तो कब के वहाँ से खिसक गये होते पर उनकी गाड़ी ने उनका साथ न दिया था. वह खराब हो गई थी.

पुलिस इंस्पेक्टर ने सुरेश के साहस और सूझबूझ की खूब प्रशंसा की. सुरेश के माता-पिता और भाई ख़ुशी से फूले न समाये.

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Wednesday, 26 January 2022

 

लालची बंदर

एक नदी के किनारे एक मंदिर था. मंदिर के निकट ही एक विशाल पेड़ थे जिस पर बंदरों की एक टोली रहती थी. मोती उस टोली का सरदार था.

हर मंगलवार के दिन मंदिर में खूब भीड़ होती थी. उस दिन पास के गाँव के सभी लोग भगवान के दर्शन करने आते थे. कई लोग मंदिर में प्रसाद भी चढ़ाते थे. कोई बर्फ़ी लाता था तो कोई लड्डू. कुछ लोग फल लाते थे.

उस दिन सब बंदर मंदिर के अंदर आ जाते. मंदिर से लौटते समय लोग थोड़ा-थोड़ा प्रसाद उन बंदरों को भी खाने के लिए दे देते. गाँव वालों को बंदर अच्छे लगते थे क्योंकि बंदर न तो किसी को डराते थे और न ही किसी से कोई चीज़ छीनते थे.

छुटकू बंदर बहुत लालची था. थोड़ी सी मिठाई या थोड़े से फलों से उसका मन न भरता था. वह तो पेट भर कर मिठाई और फल खाना चाहता था.

एक मंगलवार एक छोटा बच्चा अपने माता-पिता के साथ मंदिर आया था. बच्चे ने हाथ में बर्फी से भरा एक लिफ़ाफ़ा पकड़ रखा था. छुटकू बंदर ने इधर-उधर देखा. किसी का ध्यान उसकी ओर न था. बिना आवाज़ किये वह बच्चे के पीछे चलने लगा. अचानक उसने झपटा मार कर लिफ़ाफ़ा छीन लिया और कूद कर पास के एक पेड़ पर चढ़ बैठा.

लड़का चिल्लाया. उसके माता-पिता भौचक्के हो गये. फिर वह ज़ोर से चिल्लाये. कुछ लोग वहाँ इकट्ठे हो गये. लड़कों ने बंदर को पत्थर मारे. पर छुटकू भी कम नहीं था. उछलता-कूदता वह एक पेड़ से दूसरे और फिर तीसरे पेड़ पर चला गया.

मंदिर की छत पर बैठा मोती यह सब देख रहा था. उसने मन ही मन कहा, ‘यह मूर्ख बंदर सब के लिए मुसीबत खड़ी कर देगा.’ उसने पुकार कर सब बंदरों से कहा, “वापस चलो.”

सब बंदर अपने पेड़ पर लौट आये. मोती ने कहा, “आज छुटकू ने बहुत बड़ी गलती की है. उसने एक बच्चे के हाथ से मिठाई छीन ली. आजतक लोग अपनी इच्छा से हमें कुछ न कुछ देते आये हैं. न कोई हम से डरता है न हमें मंदिर से भगाता है. लेकिन अब लोग हम से डरने लगेंगे. इसलिए मेरी बात ध्यान से सुनो, कभी किसी से कोई चीज़ न छीनना. जो कुछ लोग स्वयं दे दें उसी से संतोष करना.”

छुटकू ने मोती की बात एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी. इतना ही नहीं उसने कुछ बंदरों को उकसाया, “मोती की बातों की ओर ध्यान न दो. वह तो डरपोक है. हम वही करेंगे जो हमें अच्छा लगता है. हम तो लोगों से छीन कर पेट भर मिठाई और फल खायेंगे.”

कुछ बंदर उसकी बातों में आ गये. अगले मंगलवार को सब बंदर मंदिर आ गये. सब को मोती की चेतावनी याद थी. परन्तु छुटकू और उसके साथियों के मन में तो कुछ और ही था. वह लोगों के हाथों से चीज़ें छीनने लगे.

मंदिर में अफरा-तफरी मच गई. कुछ लोग लाठियाँ लेकर बंदरों के पीछे दौड़े. डर कर बंदर यहाँ-वहाँ भाग गए. मोती का गुस्सा भड़क उठा. उसने छुटकू और उसके साथियों को खूब डांटा. वह सहम गए उन्होंने मोती से क्षमा मांगी. उन्होंने वचन दिया कि वह अब उसकी बात मानेंगे और किसी से कोई चीज़ न छीनेंगे.

परन्तु वह सुधरने वाले न थे. अगले मंगल के दिन भी उन्होंने वैसा ही किया. कई लोगों को डराया. कई लोगों से उनकी चीजें छीन ली. छुटकू ने तो एक लड़के को घायल भी कर दिया.

बंदरों के उत्पात से गाँव वाले परेशान हो गए और उनसे झुटकारा पाने का रास्ता ढूँढने लगे. मोती बंदर भी चिंतित था. वह जानता था कि छुटकू के कारण सब मुसीबत आ सकती थी. कुछ सोच कर उसने बंदरों से कहा, “अब हम कभी मंदिर नहीं जायेंगे. नदी किनारे जो कुछ भी मिलेगा उसे ही खाकर अपना पेट भरेंगे.”

“क्यों?” एक बंदर ने पूछा.

“गाँव वाले बहुत गुस्से में हैं. हमें रोकने के लिए वह कुछ न कुछ करेंगे. अब मंदिर जाने में खतरा है.”

सब बंदरों को मोती की बात सही लगी, लेकिन छुटकू और उसके साथी कुछ सुनने को तैयार नहीं थे. उन्होंने तय किया कि अगले मंगल के दिन भी वह मन्दिर जायेंगे और खूब मौज-मस्ती करेंगे.

मंगलवार के दिन छुटकू और उसके साथी सुबह-सुबह ही मंदिर आ गये. छुटकू ने कहा, “अगर ढेर सारी मिठाई खाने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए.”

थोड़ी देर बाद एक बंदर ने छुटकू से कहा, “वह देखो, एक लड़का बड़ा सा थैला लिए आ रहा है.

“थैला मिठाई या फलों से भरा लगता है,” छुटकू ने कहा. सारे बंदर उस लड़के की ओर दौड़े. इतने बंदरों को एक साथ अपनी ओर आते देख कर लड़का डर गया और अपना थैला वहीं फेंक कर भाग गया. थैला लड्डुओं से भरा था. सब बंदर चीखते-चिल्लाते लड्डू खाने लगे. कोई भी गाँव वाला उनके निकट न आया.

“देखा, सब हमसे डरने लगे हैं,” छुटकू ने अकड़ते हुए कहा.

लड्डू खाते ही बंदरों को चक्कर आने लगे और एक-एक कर सब मूर्छित हो गए. तब गाँव वालों ने उन्हें उठा कर बड़े-बड़े थैलों में डाल दिया.

“हमारी तरकीब काम कर गई,” एक गाँव वाले ने कहा.

“इसके पहले की लड्डुओं में मिली बेहोश करने वाली दवा का प्रभाव समाप्त हो जाए, इन्हें जल्दी-जल्दी नदी पार छोड़ आते हैं,” दूसरे गाँव वाले ने कहा.

“नदी को पार करना इनके लिए आसान न होगा. हमें इन दुष्टों से अब छुटकारा मिल जाएगा,” तीसरे गाँव वाले ने कहा.

और गाँव वालों ने वैसा ही किया.

छुटकू और उसके साथी जब होश में आये तो उनकी सिट्टी-पिट्टी गम हो गई. वह नदी के पार घने जंगल में थे. वह सब डर गए.

एक बंदर बोला, “तुम्हारे बहकावे में आकर हमने बड़ी भूल कर दी. अब हम कभी दल में वापस नहीं जा पायेंगे.”

“अरे, घबराओ मत. हम तैर कर उधर चले जायेंगे. आओ मेरे साथ. अब मैं दल का मुखिया हूँ. तुम्हारी रक्षा करना मेरा काम है,” छुटकू ने अकड़ कर कहा.

वह सब नदी किनारे आये पर वहाँ पहुँच कर उनके होश उड़ गये. नदी किनारे बहुत सारे मगरमच्छ बैठे थे. नदी के अंदर भी कई मगरमच्छ थे.

“अब बताओ क्या करें?” छुटकू के साथी एक साथ बोले. पर वह क्या कहता उसकी तो बोलती बंद हो गई थी.

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Thursday, 20 January 2022

 अब आएगा मज़ा 

                                     (बच्चों के लिए कहानी)

अचरज वन में कई महीनों से वर्षा न हुई थी. लगभग सभी तालाब और पोखर सूख गये थे. पानी की कमी हो गई थी. जंगल का राजा शेर सिंह चिंतित था. उसने शंकर हाथी से चर्चा की. शंकर बहुत बुद्धिमान था. उसने कहा, “सब को मिलकर इस समस्या को सुलझाना होगा. आप पशुओं की एक सभा बुलाओ.”

शेर सिंह को शंकर का सुझाव ठीक लगा. उसने चिम्पू बन्दर को आदेश दिया,  “बड़े पीपल पर एक नोटिस लगा दो. कल शाम चार बजे सब सभा में उपस्थित रहें.”

चिम्पू बन्दर ने एक नोटिस तैयार किया, पर लिखते-लिखते उस नटखट को एक शरारत सूझी. उसने सभा का समय सुबह चार बजे का लिख दिया. पीपल पर नोटिस लगाने के बाद उसने मन ही मन कहा, “अब आएगा मज़ा. सब सुबह चार बजे इकट्ठे हो जायेंगे और वनराज से डांट खायेंगे.”

चिम्पू बन्दर अपनी चतुराई पर इतरा रहा था पर उसे पता न था कि अपनी छोटी सी गलती के कारण वह स्वयं फंसने वाला था.

उधर जंगल में जिस ने भी नोटिस पढ़ा वह बहुत हैरान हुआ.

“यह तो मुसीबत है, सुबह चार बजे उठाना पड़ेगा,” भोला भालू ने कहा.

“नहीं भाई, तीन बजे उठेंगे तो ही तैयार होकर चार बजे सभा में उपस्थित हो पायेंगे,” सियार ने कहा.

“मैं तो छह बजे से पहले उठ ही नहीं पाता,” खरगोश बोला.

“मैं तो सभा मैं नहीं जाऊँगा,’’ लोमड़ बोला. नोटिस पढ़ कर वह बौखला गया था.

हर कोई गुस्से में था पर सभा में न जाने का साहस किसी में न था. इसलिए सब चार बजे वनराज की गुफा के बाहर इकट्ठे हो गये. सब अपने राजा की प्रतीक्षा करने लगे. आधा घंटा बीत गया पर शेर गुफा से बाहर ही ना आया.

भालू से न रहा गया. वह ऊंची आवाज़ में बोला, “यह तो अन्याय है. हम चार बजे से यहाँ प्रतीक्षा कर रहे हैं और लगता है हमारे राजा अभी गहरी नींद सो रहे हैं”.

“ज़रा धीरे बोलो, महाराज ने सुन लिया तो नाराज़ हो जायेंगे,” सियार ने कहा.

“मैं किसी से डरता नहीं हूँ. अगर वह पाँच मिनट में बाहर न आये तो मैं ही भीतर जा कर शिकायत करूंगा,” भालू ने कहा.

शेर सिंह मज़े से सो रहा था. अचानक उसकी नींद खुल गई.

“बाहर इतना शोर क्यों है? लगता है कुछ गड़बड़ है,” शेर ने अपने आप से कहा. बाहर आकर देखा कि वन के सब पशु इकट्ठा हो रखे थे. उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. गुस्सा भी आया.

“क्या तमाशा लगा रखा है? यहाँ क्यों इकट्ठे हो रखे हो?”

“हम यहाँ चार बजे से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं. आप स्वयं देर से आये हैं और हम पर ही गुस्सा हो रहे हैं,” भालू ने भी ऊंची आवाज़ में कहा.

“पर तुम सब इस समय क्यों आये हो?”

“आप ने ही तो पशुओं की सभा बुलाई है,” सियार ने दबी आवाज़ में कहा.

“सभा तो शाम चार बजे बुलाई है, अभी आकर मेरी नींद क्यों खराब की?” शेर ने आँखें तरेरते हुए कहा.

“पर महाराज, नोटिस में तो सुबह चार बजे का समय लिखा था,” भेड़िये ने कहा.

“अरे, तुम सब से भूल हो गई है. शाम चार बजे का समय लिखा था,” शेर सिंह ने थोड़ा नरमी से कहा.

“अब समझ आया, यह सब उस शरारती बन्दर की करामात है,” भोला ने कहा.

“कहाँ है चिम्पू बन्दर?” वनराज ने पूछा.

सब इधर-उधर देखने लगे. चिम्पू तो वहाँ था ही नहीं. वह तो अपने घर में सो रहा था.

“उसे पकड़ कर अभी यहाँ लाओ,” राजा ने आदेश दिया.

भेड़िया और सियार दौड़े और चिम्पू को तुरंत ही पकड़ कर वनराज के सामने ले आये.

“तुमने नोटिस में सभा का क्या समय लिखा था?” शेर सिंह ने गरज कर पूछा.

“महाराज, वही जो आपने कहा था,” बन्दर बोला.

“क्या मैंने सुबह चार बजे का समय कहा था?” शेर सिंह गरजा.

“महाराज, क्या सुबह चार बजे भी सभा बुलाई जाती है?  आपने शाम चार बजे का समय कहा था, वही समय मैंने नोटिस में लिखा था,” बन्दर ने बड़े भोलेपन से कहा.

“यह झूठ बोल रहा है,” सारे पशु एक साथ बोले.

“महाराज, आप स्वयं चल कर देख लें, नोटिस अभी भी पेड़ पर लगा है,’ बन्दर ने अकड़ कर कहा.

जंगल का राजा तेजी से बड़े पीपल की ओर चल दिया. सारे पशु पीछे-पीछे भागे आये. पीपल पर नोटिस लगा था. शेर सिंह ने नोटिस घ्यान से पढ़ा.

“क्या तुम सब अनपढ़ हो? इस में लिखा है कि सभा शाम चार बजे बुलाई गई है,” शेर सिंह ने चिल्ला कर कहा.

कई पशु एक साथ आगे आये और नोटिस को पढ़ने लगे. सब की सिट्टी-पिट्टी गम हो गई. सभा का समय शाम चार बजे ही लिखा था. सब एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे. सब घबराए हुए थे. वह जानते थे कि गुस्से मैं वनराज अपना आपा खो बैठते थे और उन्हें कोई भी दंड दे सकते थे. सिर्फ चिम्पू बन्दर प्रसन्न था.

तभी खरगोश आगे आया और बोला, “महाराज, मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूँ.”

सब उत्सुकता से उसकी ओर देखने लगे. खरगोश ने शेर सिंह के सामने कागज़ के चार टुकड़े रखे. उसने कहा, “महाराज, ज़रा चिम्पू से पूछें कि यह क्या है.”

वनराज के संकेत पर चिम्पू आगे आया. कागज़ के टुकड़े देख कर उसके होश उड़ गये.

“यह क्या है?” शेर सिंह ने पूछा.

बन्दर की बोलती बंद हो गई थी. तब खरगोश ने कहा, “महाराज, यह उस नोटिस के टुकड़े हैं जो चिम्पू ने कल लगाया था और जिसे सब ने पढ़ा था. इसमें  सभा का समय सुबह चार का लिखा है. रात में इसने यह नोटिस हटा कर दूसरा नोटिस लगा दिया, जो अभी भी पेड़ पर लगा है. इस ने यह जानबूझ कर किया. हम सब मूर्ख बन गये और सुबह चार बजे सभा के लिए इकट्ठे हो गये. यह शरारती बन्दर बस एक छोटी भूल कर बैठा. पुराने नोटिस को फाड़ कर उसके टुकड़े मेरे घर के निकट फेंक दिए. आज सभा के लिए आते समय मेरी नज़र इन पर पड़ी तो मैंने इन्हें संभाल कर अपने साथ ले आया.”

“क्या यह सच है?” वनराज ने कड़क आवाज़ में चिम्पू से पूछा. पर वह क्या कहता उसकी पोल तो खुल चुकी थी.

वनराज को इतना गुस्सा आया कि उसको पूंछ से पकड़ कर उल्टा लटका दिया. चिम्पू डर से चिल्लाने लगा.

“महाराज, इसे क्षमा कर दें. बेचारा मर जाएगा,” शंकर हाथी ने कहा.

“आज तो मैं इसे माफ़ कर रहा हूँ, लेकिन अगर इसने दुबारा ऐसी शरारत की तो मार-मार कर मैं इसके दो कानों की बीच एक सिर कर दूँगा.”

वनराज की बात सुन सब ज़ोर से हँस दिए. तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी. अचानक बादल गिर आये और वर्षा होने लगी. सब नाच उठे.

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©आइ बी अरोड़ा  

Friday, 14 January 2022

 

अपना भी नाम होगा

(बच्चों के लिए कहानी)

लंबू और छोटू चोर थे. परन्तु आजतक उन्होंने छोटी-मोटी चोरियाँ  ही की थीं. इस कारण अन्य चोर उनका मज़ाक उड़ाते थे.

एक दिन छोटू ने लंबू से कहा, “भाई, नाम और दाम कमाने का सुनहरा अवसर मिल रहा है.”

“कैसे?”

“मुझे पता लगा है कि ‘अपना बैंक’ का चौकीदार छुट्टी पर चला गया है. बैंक ने उसकी जगह गैन्दाराम को काम पर रख लिया है.”

“इससे हमें क्या लाभ?”

“भाई, बैंक वाले नहीं जानते कि गैन्दाराम को शराब बहुत अच्छी लगती है. शराब देखते ही उसके मुँह से लार टपकने लगती है. हम उसकी इस कमज़ोरी का लाभ उठा सकते हैं.”

“वाह छोटू, वाह! क्या चाल सोची है! आज रात को ही काम पर लग जाते हैं.”

रात दस बजे दोनों शराब की एक बोतल हाथ में लिए बैंक के निकट आये. गैन्दाराम बैंक के गेट के पास बैठा था. उनके निकट आते देख वह चौकन्ना हो गया.

“भाई, तुम्हारे पास माचिस की डिबिया है?” लंबू ने गैन्दाराम से पूछा.

“नहीं,” गैन्दाराम ने कड़क आवाज़ में कहा.

“क्या तुम सिगरेट नहीं पीते?” लंबू ने पूछा.

“काम के समय मैं सिगरेट नहीं पीता,” गैन्दाराम ने अकड़ कर कहा.

“बहुत अच्छे चौकीदार ही, खूब उन्नति करोगे,” छोटू ने कहा. दोनों चोर वहाँ से चले गये.

अगली रात भी दोनों चोर शराब की बोतल पकड़े उधर आये और कोई बहाना बना कर गैन्दाराम से बातचीत करने लगे. तीसरी रात भी वैसा ही किया. अब गैन्दाराम उन से खुल कर बातें करने लगा.

“क्या तुम दोनों हर दिन शराब पीते हो?” शराब देखकर गैन्दाराम का मन ललचा रहा था.

“भाई, अपना तो नियम है. जब तक मित्रों के साथ बैठ कर थोड़ी शराब न पी लें तब तक नींद नहीं आती,” लंबू ने कहा.

चौथी रात लंबू अकेला ही आया. वह थोड़ा उदास लग रहा था.

“क्या बात है? आज थोड़ा बुझे-बुझे से लग रहे हो?” गैन्दाराम ने पूछा.

“अरे यार, आज इतनी बढ़िया शराब लेकर आया तो पता लगा मेरा मित्र गाँव चला गया है. उसकी माँ बीमार है. उसने मुझे बताया भी नहीं.”

शराब देख कर गैन्दाराम अपने को रोक न पाया. इतनी महंगी शराब उसने आजतक न पी थी. बोला, “अरे, मैं भी तो अब तुम्हारा मित्र हूँ. मैं तुम्हारा साथ दूँगा.”

लंबू यही तो चाहता था. पर वह चालाक था, बोला, “अरे तुम ड्यूटी पर हो. इस समय शराब पीना उचित न होगा.”

गैन्दाराम अपने को रोक न पा रहा था. बोला, “मैं तो बस तुम्हारा साथ दूँगा, बिलकुल थोड़ी सी पीयूँगा.”

“हाँ, बिलकुल थोड़ी सी पीना.”

दोनों बैंक के दरवाज़े के निकट बैठ कर शराब पीने लगे. लंबू ने उसको बातों में उलझाए रखा. स्वयं शराब न पी और धीरे-धीरे गैन्दाराम को सारी बोतल शराब पिला दी. जब वह नशे से चूर हो गया तो छोटू भी वहाँ आ गया. दोनों ने उसके हाथ-पाँव बाँध दिए.

फिर उन्होंने बैंक का ताला तोड़ा और भीतर आ गये. तिजौरी काटने के लिए वह सारे औज़ार साथ लाये थे. उन्होंने तिजौरी काटी और उसके अंदर रखे पचास लाख रूपये निकाल लिए.

“कहीं कोई सुराग न छोड़ना,” लंबू ने छोटू से कहा.

“चिंता न करो, पुलिस को एक भी सुराग न मिलेगा. पर इस गैन्दाराम का क्या करें?”

“इसके हाथ पाँव खोल देते हैं. इसने हमें चोरी करते नहीं देखा, पुलिस को कुछ न बता पायेगा.”

दोनों वहाँ से भाग गये. रात का एक बज रहा था, सब रास्ते सुनसान थे, किसी ने उन्हें वहाँ से जाते न देखा.

छोटू बहुत खुश था. बोला, “भाई अब अपना भी नाम होगा.”

सुबह हुई. गैन्दाराम का नशा कम हुआ. वह उठ बैठा और अपने आप से बोला, “आज तो खूब मज़े की नींद आई.” तभी उसे झटका लगा. बैंक का दरवाज़ा खुला था. वह भीतर आया. तिजौरी भी खुली थी.

“बैंक में डाका पड़ा है. क्या मैनेजर साहब को फोन करुँ? पुलिस को फोन करूँ? पुलिस अगर जान गई कि मैंने रात में शराब पी थी तो पुलिस मुझे ही पकड़ लेगी. समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं,” घबराया हुआ गैन्दाराम इस तरह बड़बड़ करने लगा.

“सब ने इतना समझाया था कि शराब पीना बुरी बात है, पर मैंने किसी की बात न मानी. इस शराब के कारण इस मुसीबत में फंस गया, क्या करुँ?” गैन्दाराम ने वहाँ से भाग जाना ही उचित समझा.

बैंक मैनेजर को जब किसी का फोन आया तो उसके भी होश उड़ गये. उसने पुलिस को सूचित किया. इंस्पेक्टर होशियार सिंह ने तुरंत आकर जाँच की, पर उसे कोई सुराग न मिला. उसने मैनेजर से कहा, “रात में चौकीदारी कौन करता है? वह कहाँ? उसे बुलाओ.”

“गैन्दाराम को काम पर रखा है. वह रात में ड्यूटी पर आया तो था पर अब यहाँ नहीं है.”

“उसे काम पर रखने से पहले कोई छानबीन करवाई थी क्या?”

 “नहीं.”

“यही तो गलती करते हैं आप लोग. घर हो या दफ्तर, किसी को भी काम पर रखने से पहले उसकी पुलिस से छानबीन करा लेनी चाहिए.”

तभी एक सिपाही आया. “साहब, एक खाली बोतल मिली है. गेट के पास ही पड़ी थी.”

बोतल देख कर इंस्पेक्टर ने पूछा, “इतनी महंगी शराब कौन पीता है?”

“नहीं, नहीं.बैंक में कोई शराब नहीं पीता. कोई आता-जाता इसे बाहर फेंक गया होगा,” मैनेजर ने उत्तर दिया.

इंस्पेक्टर कुछ सोच में पड़ गया. उसने सिपाही को कहा की बोतल को ले जाकर तुरंत जाँच करवाए कि उस पर किसी की उंगलियों के निशान हैं या नहीं.

उधर शाम चार बजे चलने वाली रेलगाड़ी में बैठे, लंबू और छोटू बैठ बेताबी से गाड़ी चलने की प्रतीक्षा कर रहे थे. दोनों भाग कर झुमरीतलिया जा रहे थे.

“इस बार ऐसा हाथ मारा है कि वर्षों तक काम करने की ज़रूरत न रहेगी,” छोटू ने धीमे से कहा.

“पर यह गाड़ी क्यों नहीं चल रही, चार तो कब के बज चुके,” लंबू बोला.

तभी इंस्पेक्टर होशियार सिंह डिब्बे में आ चढ़ा. “यह किसे ढूँढ़ रहा है?” लंबू ने कहा, वह थोड़ा सहम गया था.

“ढूँढ़ रहा होगा किसी टुच्चे चोर को. हम जैसे चालाक चोरों को पकड़ना इसके बस की बात नहीं, हमने एक भी सुराग न छोड़ा था.”

इंस्पेक्टर दोनों के पास आया, “अरे, यह शराब की बोतल तुम छोड़ आये थे, उसे ही देने आया हूँ. यह तो अभी आधी भरी है.”

“नहीं, हम ने तो पूरी खाली कर दी थी,” घबरा कर लंबू बोला.

“मुझे भी यही जानना था. शराब बेचने वाले ने मुझे बता दिया था कि कल ही तुम ने यह शराब खरीदी थी. इस बोतल पर तुम्हारी उँगलियों के निशान भी हैं.”

दोनों को सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई. “तुम ने सारा काम बड़ी चतुराई के साथ किया था, बस थोड़ी सी चूक हो गई. खाली बोतल बैंक के गेट के पास छोड़ आये.”

“यह तुम्हारी गलती है,” लंबू ने छोटू से गुर्रा कर कहा.

“नहीं तुम्हारी गलती है. तुम गैन्दाराम के साथ शराब पी रहे थे,” छोटू गुर्राया.

“बस सारे राज़ यहीं खोल दोगे? चलो अब बताओ लूट का माल कहाँ है?” इंस्पेक्टर ने पूछा.

छोटू ने आँख से सीट के नीचे रखे एक बैग की ओर संकेत किया.

“साहब आपको कैसे पता चला कि हम ट्रेन से भाग रहे थे?” छोटू से न रहा गया.

“तुम्हारे घर गया था. तुम तो मिले नहीं, तुम्हारा पड़ोसी चंपक लाल मिल गया. उसने तुम्हें जाते हुए देखा था और उसने लंबू को यह कहते हुए भी सुना कि चार बजे की गाड़ी छूटनी नहीं चाहिए. बस मेरे लिए इतनी जानकारी बहुत थी.”

“अगर गाड़ी समय पर छूट जाती तो कभी न पकड़े जाते,” छोटू बोला.

“समय पर कैसे छूटती, मैंने फोन कर स्टेशन मास्टर को कह दिया था कि गाड़ी रुकवा ली जाए.”

“हमारा भाग्य ही खराब है. हमारा कभी नाम न होगा,” छोटू ने निराश होकर कहा.

“अरे, इतना घबराते क्यों हो? अभी तुम्हारा मुँह काला करके तुम्हें सारे नगर में घुमायेंगे. बस तुम्हारा खूब नाम हो जाएगा,’ इतना कह इंस्पेक्टर ने ज़ोर का ठहाका लगाया.

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©आइ बी अरोड़ा