पानी का डर
नन्हें हाथी को लगता
था
पानी से थोड़ा डर
फिर भी हर दिन नदी
में
उसको जाना पड़ता था
पर.
माँ थी उसकी ज़रा
कठोर
गुस्सा आता उसको नन्हें
हाथी पर
अगर नहाने में वो नन्हा
हाथी
करता कभी किन्तु-अगर-मगर.
नन्हें हाथी ने इक
दिन देखी
नदी में जाती इक नाव
नाव देख उसके मुंह
से निकला
‘वाओ वाओ वाओ.
ऐसी निराली चीज़ तो
मैंने
न देखी थी कहीं अब तक
मुझे भी चाहिये ऐसी
नाव
लेकर रहूँगा मैं अपना
हक़.’
झटपट आकर माँ से
बोला
कही उससे मन की बात
फ़रमाईश सुन माँ
झुंझलाई
और सिर पर मारा अपना हाथ.
तभी नदी में बहती
देखी माँ ने
कागज़ की इक सुंदर नाव
माँ बोली, ‘नदी
में जल्दी से जाओ
और पकड़ लो वह बहती
नाव.’
नन्हा हाथी दौड़ा
झटपट
और भूल गया पानी का
डर
बड़ी फुर्ती से लगा
तैरने
नाव वो पकड़ न पाया
पर.
लौट कर वो माँ से
बोला,
‘नाव तो खो गई पानी में’
‘तुम ऐसे तैर पाओगे बेटा
सोचा भी न था सपने में.
तुम्हें आज तो पानी
से
लगा न बिलकुल भी डर
मैं तो सदा ही कहती थी
तुम हो सबसे अधिक
निडर.’
नन्हा हाथी उछल पड़ा
सुनकर अपनी
प्रशंसा
खूब अकड़ कर वह बोला
‘माँ, मैं तो हूँ ही
ऐसा.’
©आइ बी अरोड़ा
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