Friday, 20 February 2015


शाम का समय
(अंतिम भाग)

(कहानी का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं)


“डॉक्टर भालू, आपकी डिग्री हमारे पास है. यह डिग्री हमें स्टेशन के निकट मिली थी. डिग्री लौटाने के लिए हम आपसे कब मिल सकते हैं?”
“अपना पता बताओ, मैं अभी आकर डिग्री ले जाऊंगा. पुरस्कार की राशि भी तुम्हें दे दूंगा,” भालू ने कहा.
“नहीं आपको कष्ट करने की आवश्यकता नहीं है. आप अपना पता बता दें. हम ही आकर डिग्री दे जायेंगे,” सियार ने कहा. सियार और भेड़िया किसी को भी अपने अड्डे का पता बताना नहीं चाहते थे.
“ठीक है, तुम लोग कल दो बजे आ जाना. पर मेरी डिग्री संभाल कर रखना. अगर मेरी डिग्री को कुछ हो गया तो बड़ी मुसीबत हो जायेगी.” भालू ने अपना पता सियार को बता दिया.
अगले दिन दोनों डिग्री लेकर भालू के बताये पते पर पहुँच गये.
उन्हें देख कर भालू ने कहा, “ मेरी डिग्री तुम्हारे पास है? लाओ, मेरी डिग्री मुझे दे दो. डिग्री को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ. घबराहट के मारे दो रात से मैं सो भी नहीं पाया.”
“डिग्री हमारे पास है, अगर पुरस्कार की राशि हमें मिल जाती तो डिग्री भी आपको दे देंगे,” सियार ने कहा.
सियार की बात सुन डॉक्टर भालू ने कहा, “भीतर आ जाओ. मैंने पुरस्कार के रूपए पहले ही निकाल कर रखे हुए हैं. रूपए ले कर मेरी डिग्री मुझे दे दो.”
दोनों चोर घर के भीतर आ गये. उन्हें रुपयों का बंडल दिखाते हुए भालू ने पूछा, “मेरा सूटकेस भी तुम्हारे पास होगा?”
सियार और भेड़िये को झटका लगा. सियार ने भेड़िये को आँखों से संकेत किया कि वह कुछ न कहे.
“कौन सा सूटकेस? क्या कह रहे हो तुम?” सियार ने पूछा.
“हमारे पास कोई सूटकेस नहीं है,” भेड़िया चुप न रह सका.
तभी इंस्पेक्टर होशियार सिंह भी वहां आ पहुंचा. इंस्पेक्टर को देख सियार और भेड़िये की टांगें कांपने लगीं.
इंस्पेक्टर ने आते ही कहा, “अगर भालू की डिग्री तुम्हारे पास है तो उसका सूटकेस भी तुम्हारे होना चाहिये. और अगर सूटकेस तुम्हारे पास है तो उसमें रखे पचास हज़ार रुपये भी तुम लोगों के पास ही होने चाहिये.”
अब सियार का माथा ठनका. उसे तो भेड़िये पर पहले ही संदेह था. वह समझ गया कि भेड़िये ने उसके साथ धोखा किया था. उसने सूटकेस खोल कर उसमें रखे पचास हज़ार रूपए निकल कर अपने पास रख लिए थे. उसे गुस्सा आ गया और वह अपने को रोक न पाया. गुस्से हम हर किसी की मति भ्रष्ट हो जाती है. सियार की भी हो गयी और वह भारी भूल कर बैठा.
“तुम तो कह रहे थे की सूटकेस में कोई रूपये नहीं थे? और पचास हज़ार अपने   पास रख लिए. तुम ने मेरे साथ ही धोखा किया. क्यों?” सियार ने भड़क कर भेड़िये से कहा.
“यह सब झूठ है, सूटकेस में कोई रुपये नहीं थे. यह लोग हमें आपस में लड़वाना चाहते हैं. मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया. इनकी बातों में मत आओ,” भेड़िये ने कहा.
“श्रीमान सियार जी, आपका दोस्त ठीक कह रहा है. सूटकेस में कोई रूपए नहीं थे. यह झूठ तो मैंने सच जानने के लिए बोला था. आप दोनों मेरी चाल में फंस गये, आप दोनों ने स्वयं स्वीकार कर लिया है की सूटकेस आप के पास है.” इंस्पेक्टर ने कहा.
सियार और भेड़िये के हाथों के तोते उड़ गये. मूर्खों की भांति दोनों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे.
इंस्पेक्टर ने कहा, “डॉक्टर भालू अपने मित्र भोला से मिलने राज नगर गया था. वह कुछ दिन उसके घर में रहने वाला था. पर वहां पहुँच, गलती से अपना सूटकेस सड़क किनारे ही छोड़ आया.”
“बड़ी भूल हो गयी थी. मित्र को देख में इतना प्रसन्न हो गया कि बातों में मुझे ध्यान ही न रहा की मेरा सूटकेस तो भोला के घर के बाहर ही रह गया है. भोला भी मेरे साथ बातों में इतना मग्न हो गया कि उसे भी ध्यान न आया की मैं अपना सामान बाहर छोड़ आया हूँ.  और जब ध्यान आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सूटकेस गायब था. कोई उसे उठा कर ले गया था,” भालू ने कहा.
“भोला और भालू मेरे पास आये तो मैंने सोचा कि जिस चोर ने सूटकेस उठाया है उसे थोड़ा चालाकी से अपने जाल फांसना होगा. और देखो तुम दोनों मेरे जाल में फंस गये.” इतना कह इंस्पेक्टर खिलखिला कर हंस दिया.
सियार और भेड़िये के पास अब कोई उपाय न था. दोनों पकड़े गये. भालू को सूटकेस सहित अपना सारा सामान मिल गया.  

©आई बी अरोड़ा 

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