Wednesday, 29 October 2014

चूहे का सपना
इक चूहे ने देखा सपना
देखा उसका घर है अपना
घर क्या था अजब का खेल
उसका था न कोई मेल
फ़र्श बना था बर्फ़ी का
मीठा-मीठा महक रहा था
छत पर बिस्कुट लगे हुए थे
वह भी खूब धमक रहे थे
कुछ दीवारें थीं चाकलेट की
कुछ दीवारें थीं मिसरी की   
देख सब चूहा चकराया
मुंह में उसके पानी भर आया
दौड़ इधर से उधर गया वो
छत को थोड़ा कुतर गया वो
चट कर डाली इक दीवार
फर्श भी थोड़ा गटक गया वो  
भरा पेट तब लगा कूदने
घर उसका तब लगा टूटने
पर घर टूटा तो आया रोना
टूट गया तब उसका सपना

© आई बी अरोड़ा















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