Friday, 15 October 2021

 

नटखट खरगोश-बच्चों के लिए एक कहानी

एक जंगल में एक नदी के निकट एक खरगोश रहता था. वह थोड़ा डरपोक था, परन्तु बहुत शरारती था. नदी में रहने वाले मगरमच्छों को सताने में उसे बड़ा मज़ा आता था. सब मगरमच्छ उससे बहुत चिढ़ते थे. हर कोई उसे चबा कर खा जाना चाहता था. लेकिन खरगोश इतना फुर्तीला था कि चाह कर भी मगरमच्छ उसे पकड़ ही न पाते थे.

लेकिन एक दिन नटखट खरगोश ने शेर को तंग करने की भूल कर दी. जिस तरह वह किसी मगरमच्छ का मज़ाक उड़ाया करता था वैसे ही उसने शेर का मज़ाक उड़ाया. शेर आग बबूला हो गया. इसके पहले कि खरगोश वहाँ से भाग पाता, शेर ने झपट कर उसको पकड़ लिया. लेकिन खरगोश चालाक था, वह घबराया नहीं और शेर से छूटने की तरकीब सोचने लगा.

“श्रीमान, आपका अपमान करना मेरी भूल थी. मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ.  आप मुझे एक बार क्षमा कर दें. मैं वचन देता हूँ कि मैं ऐसी भूल फिर कभी न करूंगा और अगर कभी आप किसी मुसीबत में फंस गए तो मैं अवश्य आपकी सहायता करूंगा.”

खरगोश का दुस्साहस देख कर शेर आश्चर्यचकित हो गया. उसे हँसी भी आ रही थी.

“तुम्हें लगता है कि तुम जैसा पिद्दी जानवर मेरी कोई सहायता कर सकता है? तुम्हें लगता है कि मुझ जैसा शक्तिशाली प्राणी कभी मुसीबत में पड़ सकता है?” शेर ने उत्सुकता से पूछा.

“श्रीमान, आप निश्चय ही बहुत शक्तिशाली हैं, बहुत बुद्धिमान हैं. पर यह भी सत्य है कि कोई भी मुसीबत में पड़ सकता है, यह संसार ऐसा ही है.”

“और अगर मैं मुसीबत में पड़ गया तो तुम मेरी सहायता कैसे करोगे? यह बताने की कृपा करो,” शेर ने आँखें तरेरते हुए कहा.

“मैं स्थिति का विश्लेषण करूंगा और मुसीबत से निपटने का उचित उपाय ढूँढने का प्रयास करूंगा,” खरगोश ने बड़े उत्साह से कहा.

शेर ज़ोर से हँसा, “तुम बहुत ही चतुर हो. मैं तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार करता हूँ. लेकिन अगर मैं कभी मुसीबत में फंसा और तब तुमने मेरी सहायता न की तो मैं तुम्हें खा जाऊँगा. तब तुम्हें क्षमा न करूंगा.” 

इतना कह कर शेर ने खरगोश को छोड़ दिया.

अब ऐसा हुआ की इस घटना के ठीक एक सप्ताह बाद जंगली भैंसों का एक विशाल झुंड उस वन से गुज़रा. खाने की खोज में भैंसों का झुंड उत्तर में स्थित हरे-भरे घास के मैदानों की ओर जा रहा था.

भैंसों ने शेर को देखा जो एक पेड़ की छाया में बैठा आराम कर रहा था. शेर ने भी भैंसों को देखा. भैंसों को डराने के लिए शेर दहाड़ा. लेकिन उसकी दहाड़ ने भैंसों को उत्तेजित कर दिया. उन्हें लगा कि शेर उनका अपमान कर रहा था. जब भी कोई शेर उन्हें देख कर दहाड़ता था तो उन्हें अच्छा न लगता था.

“इस घमंडी शेर को थोड़ा सबक सिखाना होगा. यह हम पर क्यों दहाड़ा?” सबसे ताकतवर और विशाल भैंस ने कहा.

“हाँ, इस घमंडी शेर को सबक सिखाना ही होगा,” अन्य  भैंसों ने एक साथ कहा.

भैंसें गुस्से से शेर की ओर दौड़ने लगीं. शेर को समझते देर न लगी कि उसने मुसीबत मोल ले ली थी. झुंड से बचने के लिए वह सिर्फ नदी की ओर भाग सकता था. लेकिन नदी के किनारे पर कई मगरमच्छ लेटे धूप-स्नान कर रहे थे. नदी के अंदर भी कई मगरमच्छ तैर रहे थे. भैंसों के समान मगरमच्छ भी भयंकर ताकतवर थे. शेर फंस गया था. अब भैंसों के साथ लड़ने के अतिरिक्त कोई उपाय न था.   

सदा की भांति खरगोश नदी किनारे मस्ती कर रहा था. उसने भी शेर की दहाड़ सुनी थी. उसने भैंसों को शेर की ओर आते हुए देख लिया था.

“श्रीमान, अब आप भयंकर मुसीबत में फंस गये हैं. अब आपको मेरी सहायता की ज़रूरत पड़ेगी,” खरगोश ने अपने आप से कहा.

खरगोश जानता था की उसे तुरंत कुछ करना होगा क्योंकि एक अकेला शेर भैंसों के झुंड का सामना न आकर सकता था, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो.

उसने धूप में लेटे हुए मगरमच्छों को देखा. उनकी आँखें बंद थीं और वह बड़े प्रसन्नचित लग रहे थे. अचानक उसे एक युक्ति सूझी.

“अरे मूर्ख, आलसी छिपकलियों, तुम सब यहाँ क्या कर रही हो? नदी किनारे धूप में लेट कर मैं थोड़ा विश्राम करना चाहता हूँ. उठो और अपनी पूँछें समेट कर भागो यहाँ से,” उसने चिल्ला कर मगरमच्छों से कहा.

अब वह मगरमच्छ ऐसे थे कि अगर कोई उनको मूर्ख, आलसी छिपकली कह कर बुलाता था तो उनका गुस्सा सातवें आसमान तक पहुँच जाता था. खरगोश की बात सुन गुस्से से वह थर-थर कांपने लगे.

“मित्रों, मुझे लगता है कि इस दुष्ट खरगोश को शिष्टाचार की सीख देने की घड़ी आ गई है. तुम सब का क्या विचार है?” सबसे बड़े मगरमच्छ ने कहा.

“इस बदमाश को सीख देने के बजाय हम इसे कच्चा चबाना चाहते हैं,” सारे मगरमच्छ एक साथ एक ही बात बोले.

सारे मगरमच्छ घेरा बना कर खरगोश की ओर दौड़ने लगे. खरगोश दौड़ पड़ा. पर वह उतनी तेज़ न दौड़ रहा था जितनी तेज़ वह दौड़ सकता था. मगरमच्छों को लगा कि वह खरगोश को पकड़ सकते थे.

खरगोश चालाकी से उस ओर दौड़ा जिधर भैंसों का झुंड था. गुस्से से भरे मगरमच्छ उसके पीछे आते रहे. उन्होंने भैंसों को देखा ही नहीं.

अचानक भैंसों को अपनी ओर आते हुए मगरमच्छ दिखाई दिए. मगरमच्छ गुस्से से फुफकारते हुए खरगोश का पीछा कर रहे थे. पर खरगोश तो कहीं गायब हो था. भैंसों को लगा कि मगरमच्छ उन पर हमला करने आ रहे थे.

भैंसें शेर पर हमला करना भूल गईं. वह  मगरमच्छ से अपना बचाव करने की युक्ति सोचने लगीं. वह रुक कर मगरमच्छों को गुस्से से देखने लगीं. मगरमच्छ भी रुक गये. वह भी भैंसों को गुस्से से देखने लगे. वह थोड़ा भयभीत थे, क्योंकि वह नदी से दूर आ गये थे. वह नदी के पास ही अपने को सुरक्षित पाते थे. लेकिन अपने डर को छिपा कर वह भैंसों पर गुर्राने लगे.

भैंसें मगरमच्छों के साथ लड़ना नहीं चाहती थीं. उन्हें तो किसी के साथ भी लड़ना पसंद न था. वह लौट गईं और चुपचाप अपने रास्ते चलने लगीं. मगरमच्छ भी झटपट नदी की ओर चल दिए.

शेर ने राहत की सांस ली. तभी उसकी नज़र खरगोश पर पड़ी जो निकट ही झाड़ियों में छिपा बैठा था.

“श्रीमान, मेरी योजना सफल हुई या नहीं?” खरगोश ने शेर से पूछा.

“बिलकुल सफल हुई,” शेर ने कहा.

“श्रीमान, क्या आपको लगता है कि मेरा जैसा छोटा पशु आपकी कोई सहायता कर सकता है?” खरगोश ने मुस्कराते हुए कहा.

“अब तो मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि इस संसार में सबसे शक्तिशाली प्राणी को भी मित्रों की आवश्यकता है. चलो हम मित्र बन जाते हैं,” शेर ने कहा.

और शेर और नटखट खरगोश मित्र बन गये.

© आइ बी अरोड़ा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

2 comments:

  1. आपने अच्छी कथा रची है। यह बालकों के निमित्त है किंतु वयस्कों हेतु भी इसकी उपयोगिता है।

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    1. धन्यवाद ब्लॉग पढ़ने के लिए

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