Saturday, 30 October 2021

 

पत्थर का योद्धाभाग १

(बच्चों के लिए लंबी कहानी)

लगभग नौ सौ वर्ष पुरानी बात है. तलाविया में एक बच्चे का जन्म हुआ. जन्म के समय ही वह शिशु बहुत बड़ा और भारी था, उस भीमकाय शिशु को देख कर उसकी दादी ख़ुशी से चिल्लाई. उसने प्रसन्नता से कहा, ‘अरे देखो, यह लड़का कितना बड़ा है. मेरी बात समझ लो, बड़ा हो कर यह संसार का सबसे शक्तिशाली आदमी होगा. यह उतना ही शक्तिशाली होगा जितने शक्तिशाली ज़ारान देव थे.  क्यों न हम इसका नाम ज़ोरान रखें?”

बच्चे के पिता न कहा, “तुम ने ठीक कहा माँ, मेरे बेटे पर अवश्य ही महान ज़ोरान की कृपा है. इसका नाम तो ज़ोरान ही होना चाहिये, ज़ोरान अर्थात ज़ारान जैसा. बहुत अच्छा नाम है.

ज़ारान का जन्म तलाविया में दो हज़ार वर्ष पहले हुआ था. वह एक महान योद्धा था. उसने कई दैत्यों और दानवों से लड़ाई कर उन्हें पराजित किया था. ज़ारान ने कई बार अपने देश को शत्रुओं के आक्रमण से बचाया था. तलाविया के लोग उसे देवता सामान पूजते थे. तलाविया का हर युवक ज़ारान के समान बहादुर और शक्तिशाली बनने का सपना देखता था. हर पिता चाहता था कि उसका पुत्र ज़ारान जैसा निडर और ताकतवर हो.

नन्हा ज़ोरान बड़ा हुआ. वह ताकतवर लड़का था. अभी वह चौदह वर्ष का भी न हुआ था और वह सात फुट से अधिक लम्बा हो गया था. वह एक बैल समान मज़बूत और तगड़ा था. कुल्हाड़ी के एक वार से वह एक बड़ा पेड़ काट सकता था. निहत्थे ही वह एक भारी-भरकम भालू से लड़ सकता था.

ज़ोरान का पिता एक सीधा-साधा चरवाहा था. उसकी इच्छा थी ज़ोरान भी उसकी भांति चरवाहा बने और भेड़-बकरियों की देखभाल करे. परन्तु ज़ोरान सिपाही बनना चाहता था. वह सेना का सिपाही बन, देश के शत्रुओं से लड़ना चाहता था. वह दैत्यों से लड़ना चाहता था.  अपने देश, तलाविया, की रक्षा करना चाहता था और ज़ारान देव की तरह एक महान योद्धा बनना चाहता था.

अपने बीसवें जन्मदिन के बाद एक दिन, अपने पिता को बताये बिना, वह तलाविया के राजा के सामने उपस्थित हो गया. राजा उसे देख कर बहुत प्रसन्न हुए और बोले, ‘मेरे बच्चे, तुम्हें तो हमारी सेना का सिपाही होना चाहिये. हमारी सेना को तुम जैसे बहादुर और शक्तिशाली युवकों की आवयश्कता है.’

महाराज, मेरे पिता की इच्छा है कि मैं उनकी भेड़-बकरियों की देखभाल करूं. मैं अपने पिता की आज्ञा का पालन ही करूंगा, मैं उन्हें दुःखी नहीं कर सकता,’ ज़ोरान ने कहा.

हम तुम्हारे पिता से बात करेंगे. हमें विश्वास है कि वह हमारा अनुरोध स्वीकार कर लेंगे और तुम्हें सिपाही बनने की अनुमति दे देंगे.’ राजा ने कहा.

ज़ोरान के पिता राजा का कहा न टाल सके और उन्होंने अपने बेटे को सिपाही बनने की अनुमति दे दी. ज़ोरान की खुशी का ठिकाना न था. वह तलाविया के सेना का एक सिपाही बन रहा था.

दो वर्षों तक उसने कड़ी मेहनत की. तलवार चलाना सीखा, तीर चलाने सीखे, भाले और गदा से युद्ध करना सीखा. घुड़सवारी करना, रथ चलाना, बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के लड़ाई करना, दिन में लड़ना, रात के अँधेरे में लड़ना, सब कुछ उसने पूरी लगन और मेहनत से सीखा.

दो वर्षों के कड़े प्रशिक्षण के बाद वह हर अस्त्र, हर शस्त्र के साथ लड़ने में पूरी तरह सक्षम हो गया. वह एक भयंकर योद्धा बन गया था. तलाविया के सैनिक उसका सम्मान करने लगे थे. कई तो उससे ईर्षा भी करते थे.

राजा भी उसे देख कर बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उसे अपना अंगरक्षक बना लिया. राजा का अंगरक्षक बनना एक सैनिक के लिए सम्मान की बात थी. परन्तु ज़ोरान प्रसन्न न हुआ. वह अंगरक्षक बनने के बजाये देश की सीमा पर जा कर शत्रुओं का सामना करना चाहता था.

प्रशिक्षण की समाप्ति पर वह अपने परिवार से मिलने अपने गाँव गया. उसके पिता उसे देख कर प्रसन्न हुए और बोले, ‘अब मुझे लगता है कि सैनिक बनने का तुम्हारा निर्णय सही था. चरवाहा बन कर तुम अपना जीवन व्यर्थ ही गवां देते. मैं जानता हूँ कि प्रशिक्ष्ण के समय तुमने कड़ी मेहनत की थी. अब एक अच्छा सिपाही बनना. शत्रु के साथ सिंह समान लड़ना, कभी हार न मानना. देखना, महान ज़ारान की कृपा से, एक दिन सब तुम्हारी शक्ति से डरेंगे और तुम्हारी बहादुरी का सम्मान करेंगे.’

ज़ोरान राजा के अंगरक्षक के रूप में काम करने लगा. दिन बीते, सप्ताह बीते, माह बीते. सब ओर शान्ति थी. परन्तु एक दिन  ब्राशिया की सेना ने तलाविया पर अचानक आक्रमण कर दिया.

तलाविया और ब्राशिया के बीच सौ वर्षों से कोई लड़ाई नहीं हुई थी. अतः सीमा पर तलाविया का प्रबंध थोड़ा ढीला हो गया था. ब्राशिया का नया राजा यंगहार्ज़  महत्वाकांक्षी था. गुप्तचरों ने उसे बताया था कि पूर्वी सीमा पर तलाविया की सेन्य शक्ति कमज़ोर थी. तलाविया की लापरवाही से उत्साहित हो कर राजा यंगहार्ज़   ने हमला कर दिया.

तलाविया के सैनिक युद्ध के लिया तैयार न थे, परन्तु वह सब बहुत बहादुरी से लड़े. हार निश्चित लग रही थी. लड़ाई शुरू होते ही, टुकड़ी के नायक ने एक सैनिक राजमहल की ओर दौड़ा दिया था. उस संदेशवाहक ने राजा को आक्रमण की सूचना दी और निवेदन किया कि तुरंत कुछ सैनिक सीमा की सुरक्षा के लिए भेजे जाएँ, अगर कुमक भेजने में ज़रा भी देर हुई तो ब्राशिया की सेना जीत जायेगी और राजधानी की ओर बढ़ने लगेगी.

Thursday, 21 October 2021

  हठ का परिणाम

एक वन में एक पेड़ था. वन के अन्य पेड़ों से वह बहुत छोटा था. यह बात उस पेड़ को बहुत खटकती थी. हर समय वह मन ही मन सोचा करता, “अगर मैं वन का सबसे ऊँचा पेड़ होता तो कितना अच्छा होता. वन के सब पेड़ मुझ से ईर्षा करते.”

उस पेड़ की एक पक्षी से गहरी मित्रता थी. पेड़ को लगता था कि उसका मित्र संसार का सबसे सुंदर पक्षी है. उसने एक दिन अपने मित्र से कहा, “मित्र, तुम निश्चय ही संसार के सबसे सुंदर पक्षी हो. क्या सब पक्षी तुम से ईर्षा करते हैं?”

मुझे नहीं पता कि मैं सबसे सुंदर पक्षी हूँ. और मुझे नहीं लगता कि कोई मुझ से ईर्षा करता है,” पक्षी ने भोलेपन से कहा.

मेरा मन चाहता है कि मैं संसार का सबसे ऊँचा वृक्ष बन जाऊं. सब मुझ से ईर्षा करें. क्या तुम जानते हो कि इस वन के सभी वृक्ष इतने ऊंचे कैसे हो गये?” पेड़ ने पूछा.

नहीं, मुझे तो ऐसी कोई जानकारी नहीं है.”

अरे, कोई तो जानता होगा?”

एक साधु बाबा कभी-कभी इस वन में आते हैं, वह जानते होंगे,” पक्षी ने कहा.

वह जब भी इस वन में आयें तो मुझे बताना. मैं स्वयं उनसे पूछूँगा,” पेड़ ने कहा.

अब पेड़ उत्सुकता से साधु बाबा की प्रतीक्षा करने लगा. एक दिन पक्षी ने आकर कहा,  “साधु बाबा आ रहे हैं.”

पेड़ ने देखा कि एक बहुत ही बूढ़ा व्यक्ति उस ओर आ रहा था. उसकी सफ़ेद दाड़ी उसके घुटनों को छू रही थी.

उसके पास आते ही पेड़ ने कहा, “बाबा, प्रणाम. बाबा, आपको मेरी सहायता करनी होगी.”

कहो, मैं क्या कर सकता हूँ तुम्हारे लिए?” साधु ने पूछा.

बाबा, मैं चाहता हूँ कि मैं वन का सबसे ऊँचा पेड़ बन जाऊं. आप मुझे बतायें कि मैं अपनी ऊँचाई कैसे बढ़ा सकता हूँ.”

अरे, ऊँचा होकर क्या होगा?”

वन के सब वृक्ष ऊंचे हैं. सिर्फ मैं ही छोटा हूँ. मुझे बहुत बुरा लगता है. मुझ पर कृपा करें. मुझे ऐसा उपाये बतायें जिससे मैं भी खूब ऊँचा हो जाऊं,” पेड़ ने कहा.

दूसरों की नकल करने से कभी किसी का हित नहीं हुआ,” साधु ने समझाया.

नहीं बाबा, मुझे भी औरों की भांति ऊँचा होना है,” पेड़ ज़िद करने लगा.

ठीक है, मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम अपनी जड़ों को धरती में जितना गहरा फैला दोगे उतने ही तुम ऊंचे होते जाओगे.”

बस इतनी से बात है,” पेड़ ने कहा.

हां, पर एक बात का ध्यान रखना. इतना भी ऊँचा मत हो जाना कि अपने को संभाल ही न पाओ और तुम्हारा पतन हो जाए,” बाबा ने समझाते हुए कहा.

पेड़ प्रसन्नता से झूमने, गाने लगा. उसने अपने मित्र से कहा, “देखना अब मैं सब पेड़ों से ऊँचा हो जाऊँगा. आकाश को छू लूंगा.”

तुमने सुना नहीं बाबा ने क्या चेतावनी दी थी?” पक्षी ने उसे चेताया.

अरे छोड़ो, अब तो मेरे मन में जो आयेगा मैं वही करूंगा,” पेड़ ने लापरवाही से कहा. उस पर तो बस ऊँचा होने की धुन सवार हो गई ठी.

पेड़ अपनी जड़ों को धरती में दूर तक फैलाने लगा. जैसे-जैसे उसकी जड़ें धरती में फैलती गईं वैसे-वैसे वह ऊपर उठता गया. एक सुबह जब वह नींद से जागा तो उसने देखा कि वह वन का सबसे ऊँचा पेड़ बन गया था. पल भर को उसे विश्वास न हुआ. वह ज़ोर से हंसा और उसने चिल्ला कर कहा, “अरे, सब इधर देखो. अब इस वन में मैं ही सबसे ऊँचा पेड़ हूँ. तुम सब पेड़ मुझ से छोटे हो.”

उसका मित्र आया तो पेड़ को देख कर वह भी प्रसन्न हुआ.

मित्र, अब तो तुम इस वन के सबसे ऊंचे पेड़ हो. तुम्हारे मन की इच्छा पूरी हुई.”

अभी तुम ने देखा ही क्या है? कुछ दिनों के बाद देखना, वन के यह सारे पेड़ ऐसे लगेंगे जैसे कि छोटी-मोटी झाड़ियाँ हों,” पेड़ ने अकड़ कर कहा.

लगता है कि तुम साधु बाबा की चेतावनी भूल गये हो?” पक्षी ने कहा.

अरे, मैं इतना मज़बूत हो गया हूँ कि मेरा पतन हो ही नहीं सकता?” पेड़ ने थोड़ा झुंझला कर कहा.

तुम्हें बाबा की बात मान लेनी चाहिये. इसलिये हठ छोड़ दो,” पक्षी ने समझाया.

पेड़ तो जैसे गर्व से फूला न समा रहा था. उसने अपने मित्र की एक न सुनी. वह ऊँचा होता गया. धरती के भीतर अपनी जड़ों को उसने बहुत दूर तक फैला दिया. अब तो ऐसा लग रहा था कि वह आकाश को छू रहा था. एक दिन उसके मन में आया कि अगर वह थोड़ा और ऊँचा हो जाये तो चाँद को भी छू लेगा.

तभी आकाश में घने बादल घिर आये. सब बादल दक्षिण से उत्तर की ओर जा रहे थे. अचानक सब बादल रुक गये. अपने रास्ते में एक विशाल पेड़ को देख कर सारे बादल भौंच्चके रह गये, ऐसा तो आज तक न हुआ था. किसी पेड़ ने उनका रास्ता रोकने का साहस न किया था. सब बादल गुस्से से गरजने लगे.

ओ मूर्ख पेड़, हमारा रास्ता रोक कर क्यों खड़े हो?” एक बादल ने कहा. वह विशालकाय हाथी जैसा दिख रहा था.

भूल तुम्हारी है जो इतना नीचे उड़ रहे हो, तुम्हें तो आकाश में बहुत ऊपर उड़ना चाहिये. अपनी गलती के लिए मुझ पर क्यों चिल्ला रहे हो?,” पेड़ ने अकड़ कर कहा.

हमारे रास्ते से हट जाओ और हमें आगे जाने दो,” बादल  ने गरज कर कहा.

मैं संसार का सबसे ऊँचा पेड़ हूँ. मैं नहीं हट सकता. तुम सब थोड़ा ऊपर हो कर निकल जाओ,” पेड़ ने इतराते हुए कहा.

हम सब बहुत भारी हैं. अभी हमें कई जगह वर्षा करनी है. हम और ऊपर नहीं जा सकते,” कई बादल एक साथ बोले.

पेड़ ने उनकी बात की ओर ध्यान ही न दिया और अकड़ कर खड़ा रहा. बादल क्रोध में चीखने चिल्लाने लगे. सारा वन उनकी गर्जना सुन कर काँप उठा. लेकिन ऊंचे पेड़ पर तो जैसे कोई प्रभाव ही न पड़ा. वह अपनी मस्ती में झूमता रहा.

अचानक ज़ोर से बिजली चमकी और वन का सबसे ऊँचा पेड़ जलने लगा.  वन के अन्य पेड़ों ने जब यह दृश्य देखा तो वह सब थर-थर कांपने लगे.

ऊँचा पेड़ बहुत चिल्लाया, वह सबसे सहायता मांगने लगा, पर कोई भी उसकी सहायता न कर पाया. देखते ही देखते पेड़ पूरी तरह जल गया.

कुछ दिन बाद साधु बाबा उस वन में फिर आये. जले हुए पेड़ को देख कर उन्होंने मन ही मन कहा, “ जीवन में इतना हठी न होना चाहिये. हठी प्राणियों का अंत ऐसा ही होता है.”

© आइ बी अरोड़ा