Wednesday, 14 September 2016


भालू की मजबूरी

भालू की थी यह मजबूरी

नाक थी उसकी भूरी-भूरी

आँखें थी कुछ पीली-पीली

साँसें थीं कुछ गीली-गीली

बारिश में था भीगा-भीगा

मन था उसका खीजा-खीजा

करना चाहता था वो आराम

उसे लग गया था ज़ुकाम

©आइ बी अरोड़ा



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