मन की मानी
चार भाई थे नन्हें भालू के
प्यार करता था वह उन सबसे
नन्हा भालू था सबसे छोटा
पर था सब भाइयों से मोटा
दिन भर था बस खाता रहता
जो भी मिलता चट कर जाता
धीरे-धीरे वह गया बहुत मोटा
था वह सब भाइयों से छोटा
इक दिन माँ लायी रसगुल्ले
रसगुल्ले थे सारे रस में घुले
माँ बोली बच्चों से अपने
‘फ्रिज में रखे हैं रसगुल्ले मैंने
मुझको जाना है नानी के पास
तुम सब रहना यहीं आसपास
दिन भर तुम सब खूब खेलना
शाम को यह रसगुल्ले पेलना’
पर नन्हा भालू रुक न पाया
मुंह में उसके पानी भर आया
भाइयों से वह बोला कुछ ऐसे
‘पेट दर्द है बाहर जाऊं कैसे’
भाइयों को था उस पर विश्वास
पर कोई न रुका उसके पास
चल दिए सब खेलने कूदने
सही अवसर पाया नन्हें भालू ने
चट कर डाले उसने रसगुल्ले
रसगुल्ले थे सारे रस में घुले
पेट भरा तो नींद ने आ घेरा
नींद आये तो क्या सांझ-सवेरा
बैठे बैठे ही वह लगा ऊंघने
जा लेटा बिस्तर पर फिर अपने
शाम हुई तो लौटे सब भाई
सबने फ्रिज की ओर दौड़ लगाई
रसगुल्ले थे उनके मन भाये
पर फ्रिज में रसगुल्ले न पाए
अब उनको समझ में आया
नन्हें ने था सबको उल्लू बनाया
सब ने कर दी उसकी खूब धुनाई
नन्हें को अब माँ की सुध आई
पर माँ भी नन्हें पर ही चिल्लाई
और जोर से उसे चपत लगाई
‘मेरी चपत तुम भूल न जाना
चोरी-चोरी कुछ मत खाना’
नन्हा भालू था सबसे छोटा
पर था वह सब भाइयों से मोटा
माँ की बात मोटु ने कब मानी
वह तो करता मन की मानी.
©आइ बी अरोड़ा
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