दो यार
इक बन्दर और इक भालू
में
होने लगी इक दिन तकरार
वैसे थे वो दोनों ही
एक दूसरे के पक्के यार
बन्दर बोला “तुम
जैसा आलसी
मैंने देखा नहीं आज
तक”
भालू बोला “तुम ही
करते हो
हरदम इतनी ज़्यादा झकझक”
“भालू, तन के तो हो तुम
भूरे
पर मन है पूरा काला”
“बन्दर, तुम कपटी हो
कितने
यह है सबने देखा
भाला.”
बन्दर तब गुस्से से चिल्लाया
“आज बचोगे न तुम खाओगे मार”
भालू भी आँख दिखा कर
बोला
“अरे, मैं तो हूँ कब
से तैयार”
दोनों को लड़ता देख
सभी को आया खूब मज़ा
उनकी शैतानी की उनको
मिलने वाली थी आज सज़ा.
दोनों ही थे दुष्ट
बहुत
और परले दर्जे के शैतान
उन बदमाशों के कारण
हर कोई था खूब परेशान
पर आज सभी ने
था वन में अवसर पाया
सब ने ही मिलकर उन
दोनों को खूब उकसाया
दोनों हो गये आग
बबूला
आगा पीछा दोनों ने
भूला
एक दूसरे पर टूट पड़े
और लातें घूसें खूब
झड़े
भालू का टूट गया इक दाँत
बहने लगा खून नाक से
बहने लगा खून नाक से
बन्दर का टूट गया इक
हाथ
बहने लगे आंसू आँख से.
बहने लगे आंसू आँख से.
हाथी ने किया बीच-बचाव
और दोनों को इक डांट
लगाई
“हुआ क्या है मुझे
बताओ और
बंद करो यह हाथा-पाई”
बन्दर और भालू दोनों
खड़े हो गये मुंह
लटका कर
किस बात पर थे वह
झगड़े
याद न था यह उनको पर
हाथी को आया
गुस्सा
और दोनों पर वह
चिल्लाया
“जब बात न थी कोई लड़ने
की
लड़ कर तुम ने क्या पाया”
लड़ कर तुम ने क्या पाया”
सब को उन पर आई हँसी
सब ने ही था उनको
उकसाया
“दादा,अपनी शैतानी का फल
आज है इन दोनों ने पाया”
आज है इन दोनों ने पाया”
बन्दर और भालू दोनों
समझ गये गलती अपनी
“अब न करेंगे तंग किसी
को
मन में यह हमने
ठानी”
© आइ बी अरोड़ा
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