Tuesday, 7 April 2015

भद्दा मज़ाक
(अंतिम भाग) 
(कहानी का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं)

"पीपल वाले बाबा कहीं चले तो नहीं गये?” खरगोश निराशा से बोला.

“उस बन्दर ने मूर्ख बनाया हैं हमें.” भालू ने गुस्से से कहा.

“वह ऐसा क्यों करेगा?” खरगोश ने कहा.

“दूसरों को सताना उसे अच्छा जो लगता है. पर हमारे साथ ऐसा भद्दा मज़ाक करके उसने अच्छा नहीं किया. मैं अभी उसके घर जाकर उसकी ऐसी धुनाई करूंगा कि  आज के बाद वह किसी के साथ भी मज़ाक न करेगा.” भालू बुरी तरह भड़क चुका था.

“अभी उसके घर जाकर हंगामा करना ठीक न होगा. सब जान जायेंगे कि उसकी बातों में आकर हम दोनों बुद्धू बन गये. सब हम पर हसेंगे,” खरगोश ने समझाते हुए कहा.

“वह तो सब हंसेगे ही; वो बन्दर स्वयं ही सबको यह बात बड़ा-चढ़ा कर बतायेगा,” भालू ने कहा और दनदनाता हुआ बन्दर के घर की ओर चल दिया. खरगोश भी भागा-भागा उसके पीछे आया.

चीपू बन्दर के घर के निकट पहुँच कर दोनों ठिठक कर खड़े हो गये. दोनों ने देखा कि दो जने बन्दर के घर में घुसने की कोशिश कर रहे थे.

“चोर हैं,” खरगोश ने फुसफुसा कर कहा.

“चीपू के घर में चोरी करने जा रहे हैं,” भालू ने भी फुसफुसा कर कहा.

“हमें कुछ करना होगा,” खरगोश बोला.

“हम कुछ न करेंगे. बस तमाशा देखेंगे,”भालू ने कहा.

“यह क्या कह रहे हो? आज इन चोरों ने अगर चीपू के घर चोरी की तो कल हमारे, तुम्हारे घर में भी चोरी कर सकते हैं. चीपू से हम अलग से निपट लेंगे, पर इन चोरों को हम नहीं छोड़ सकते,” खरगोश ने समझाया.

“तुम ठीक कह रहे हो,” भालू ने कहा.

“पुलिस बुलायें?”

“इतना समय नहीं है, हमें ही साहस से कुछ करना होगा.”

दोनों सावधानी के साथ आगे आये, और अचानक चोरों पर झपट पड़े. चोर हक्के-बक्के रह गये. एक चोर के पास एक चाकू भी था. पर, इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, भालू ने दोनों चोरों को धर-दबौचा.

दोनों चोरों को पकड़ कर, भालू और खरगोश पुलिस स्टेशन ले आये. चोरों के देखते ही इंस्पेक्टर खुशी से उछल पड़ा, “अरे, आप लोगों ने तो कमाल कर दिया.”

उसने भालू और खरगोश की पीठ थपथपाई और कहा, “आप दोनों को सरकार की ओर से पचास हज़ार रूपए का पुरस्कार मिलेगा. और यह पुरस्कार वनराज स्वयं अपने हाथों से देंगे”

“क्यों-क्यों?” भालू और खरगोश एक साथ बोले.

“इन बदमाशों को पकड़ने के लिए, चार महीने पहले यह दोनों, एक सिपाही को घायल कर, जेल से भाग गये थे. तभी वनराज ने कहा था कि जो कोई भी इन बदमाशों को पकड़वायेगा उसे वह पुरस्कार देंगे.”

भालू और खरगोश प्रसन्नता से खिल उठे. भालू भी अपना गुस्सा भूल गया. तब खरगोश ने कहा, “मित्र, सुबह चीपू जी से भी मिलना है.”

सुबह होते ही दोनों चीपू के घर पहुँच गये. दोनों ने मुंह लटका रखे थे. उनको देख बन्दर मन ही मन बहुत खुश हुआ. उसने बड़े भोलेपन से कहा, “क्या बात है? इतनी सुबह कैसे आना हुआ?”

“एक बात बतानी थी, वनराज हमें पचास हज़ार का पुरस्कार देंगे,” खरगोश ने धीमे से कहा.

बन्दर कुछ समझ न पाया, पूछा, “क्यों?”

“सुबह तुम्हारे पीपल वाले बाबा ने हम दोनों के सिरों पर हाथ रखा और बस पुरस्कार की घोषणा हो गई,” भालू ने कहा.

“क्या मज़ाक कर रहे हो? कोई पीपल वाला बाबा नहीं है, वह तो मैंने बस तुम्हें बुद्धू बनाया था.” बन्दर ने कहा.

“हम भी तो तुम्हें बुद्धू ही बना रहे हैं,” इतना कह खरगोश खिलखिला कर हंस दिया.
फिर उसने सारी बात बताई. अब चीपू बन्दर पानी-पानी हो गया.

“मैंने तुम लोगों के साथ भद्दा मज़ाक किया पर तुम दोनों ने मुझे चोरों से बचाया.”

“अब ऐसा मज़ाक किसी के साथ न करना. अगर रात में चोर तुम्हारे घर चोरी करने की कोशिश न कर रहे होते तो तुम्हारी धुनाई हो जाती. अपने मित्र को मैंने कभी इतने गुस्से में न देखा था जितना गुस्सा उसे रात में आया था. तुम तो बाल-बाल बच गये.” खरगोश ने कहा.

“कभी दुबारा ऐसा मज़ाक तुम ने किया तो पिटने से न बच पाओगे,” इतना कह भालू खिलखिला कर हंस दिया.


© आई बी अरोड़ा

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