भद्दा मज़ाक
(भाग 1)
चीपू बन्दर को एक
दिन एक शरारत सूझी. वह भालू के घर आया. खरगोश भी वहीं था. दोनों को एक साथ देख
बन्दर मन ही मन मुस्कुराया और बोला, “अगले सोमवार वनराज का जन्मदिन है. उस दिन
वनराज वन के दस बुद्धिमान पशूओं का सम्मान करेंगे और उन्हें पुरस्कार देंगें.”
“क्या पुरस्कार
मिलेगा?” भालू ने पूछा.
“किन पशूओं को
पुरस्कार मिलेगा?” खरगोश ने पूछा.
“यह मैं नहीं बता
सकता, पर मैं इतना बता सकता हूँ कि सम्मान और पुरस्कार पाने वालों में मेरा नाम भी
होगा.”
“हम तुम्हारे मित्र
हैं. हमें तो बता सकते हो,” खरगोश ने कहा. वनराज से सम्मान और पुरस्कार पाने की
इच्छा उसके मन में जाग उठी थी.
“यह सारी जानकारी
अभी पूरी तरह गुप्त है. परन्तु पीपल वाले बाबा ने मुझे सब बता दिया है,” बन्दर ने
ऐंठते हुए कहा.
“पीपल वाला बाबा? वह
कौन है?” भालू ने नाक चढ़ा कर पूछा.
“पीली नदी के पास जो
पुराना पीपल है वहां एक बाबा आजकल आये हुए हैं. सब उन्हें पीपल वाला बाबा कह कर
बुलाते हैं. मैं कल उनके दर्शन करने गया था. उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा
कि शीघ्र ही वनराज मुझे सम्मान और पुरस्कार
देंगे,” बन्दर गर्व के साथ बोला.
“अरे, यह बाबा लोग
सब ढोंगी होते हैं. तुम तो इतने चालाक हो, तुम उनके चक्कर में कैसे पड़ गये?” भालू
ने बन्दर का मज़ाक उड़ाते हुए कहा.
“पीपल वाले बाबा
ऐसे-वैसे बाबा नहीं हैं, जिसके भी सिर पर हाथ रख देते हैं उसका भाग्य पलट जाता है.”
बन्दर ने अकड़ते हुए कहा.
“अगर बाबा मेरे सिर
पर हाथ रखेंगे तो क्या मेरा भाग्य भी पलट जायेगा?” खरगोश ने उत्सुकता से पूछा.
“हां, अवश्य पलट जायेगा.”
बन्दर ने पूरे विश्वास से कहा.
“मित्र, हम भी बाबा
के दर्शन करने चलें?” खरगोश ने भालू से पूछा.
“मैं इन बातों में विश्वास
नहीं करता,” भालू ने कहा.
“एक बात जान लो,
बाबा सुबह तीन और चार के बीच ही दर्शन देतें हैं. देर से जाओगे तो खाली हाथ लौटना
पड़ेगा. और एक-दो दिनों में वह यहां से जा भी रहे हैं,” इतना कह चीपू बन्दर वहां से
चल दिया.
उसके जाते ही खरगोश
ने भालू से कहा, “ मुझे पीपल वाले बाबा के दर्शन करने ही हैं और वह भी कल सुबह.
तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो तुम्हें मेरे साथ चलना होगा. मैं कल सुबह तीन बजे तुम्हारे
घर पहुंच जाऊंगा. तुम मेरे साथ चलना.”
भालू मना न कर पाया
और खरगोश की बात मान गया.
खरगोश तो रात भर सो
भी न पाया. तीन बजते ही उसने भालू के घर का दरवाज़ा खटखटा दिया. भालू तो गहरी नींद
सो रहा था. आवाज़ सुन कर वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. दरवाज़े के बाहर खरगोश के देख कर वह
गुस्से से चिल्लाया, “इस समय दरवाज़ा क्यों पीट रहे हो? क्या हुआ है?”
“अरे, भूल गये? हमें
पीपल वाले बाबा के दर्शन करने जाना है,” खरगोश ने धीमे से कहा.
“लगता है उस पाजी
बन्दर ने तुम्हारा दिमाग़ ख़राब कर दिया है.”भालू ने कहा.
भालू को गुस्सा तो
बहुत आ रहा था परन्तु खरगोश के साथ चलने के लिए वह तैयार हो गया. दोनों नदी की ओर
चल दिये. चारों ओर घुप अँधेरा था. खरगोश को डर लग रहा था. भालू निडर था. उसे खरगोश
पर तरस आया और उसने कहा, “ डरो मत, मैं साथ हूँ.”
नदी किनारे पीपल का
एक पेड़ तो था, परन्तु वहां न तो कोई बाबा था और न ही बाबा के दर्शन करने आये लोग.
© आई बी अरोड़ा
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