“पत्थर
का योद्धा” भाग 13
(बच्चों के लिए लंबी कहानी)
कुछ
भी करने से पहले वीलीयन इस सूचना को अच्छी तरह से परख लेना चाहता था. वह
स्वयं जांच करने निकला. उसने पूरी सावधानी बरती. बड़ी
चालाकी से वह उस जगह आया जहां ज़ोरान खड़ा सीमा की निगरानी कर रहा था. निकट
आने में उसे डर लग रहा था, पर जान हथेली पर रख वह पास
आया. जब
उसने ज़ोरान को छुआ तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा. वहां ज़ोरान
नहीं था, एक पत्थर की मूर्ति थी.
प्रसन्नता
से वह झूम उठा. उसने तुरंत वापस लौट अपने राजा को यह सूचना
देने की बात सोची.
वह इस
बात से अंजान था कि तलाविया के बिछाए हुए जाल में वह फंस गया था. जिस
सैनिक ने चरवाहे को यह सूचना दी थी वह तलाविया का एक गुप्तचर था.
‘महाराज, ज़ोरान
मर चुका है. मैंने तो पहले ही यह सूचना आपको दे दी थी. सीमा
पर उसकी मूर्ति खड़ी है. मुझे
पता लगा है कि ज़ोरान की मृत्यु से तलाविया सेना घबराई हुई है. सेना
का साहस बढाने के लिए ही तलाविया के राजा ने हमें भ्रमित करने के लिए सीमा पर ज़ोरान
की मूर्ति स्थापित करवाई है. यह एक चाल हैं और और हम उनकी
चाल में फंस गये. मेरे विचार में यही समय है जब हम उन्हें हरा सकते हैं और उनसे बदला
ले सकते हैं,’ वीलीयन ने बड़े आत्मविश्वास के साथ ने राजा से
कहा.
राजा
कुछ सोच कर बोले, ‘हम हमला करेंगे, परन्तु इस बार हम बड़ी सेना
नहीं भेजेंगे. तुम सौ सैनिक ले कर जाओ और उनकी पूर्वी चौकी पर
दावा बोलो.’
वीलीयन इतने
कम सैनिकों के साथ हमला करने से घबरा रहा था,
परन्तु इस स्थिति से बचने का कोई उपाय उसे सुझाई न दे रहा था. सौ सैनिकों
के साथ वह पूर्वी चौकी पहुंचा. सब निकट के जंगल में छिप
गये. सैनिकों
ने ज़ोरान की मूर्ती को देखा. एक सैनिक बोला, ‘यह
ज़ोरान ही है, वह जीवित है. वह
सीमा चौकी की रक्षा कर रहा है. हम उससे युद्ध नहीं कर सकते. ज़ोरान
किसी को जीवित नहीं छोड़ता.’
‘मूर्खो
की भांति मत बोलो, ध्यान से देखो, वह कोई आदमी नहीं, एक मूर्ती है. ज़ोरान
मर चुका है,’ वीलीयन ने झल्ला कर कहा.
पर
सैनिकों को विश्वास न हुआ. वह युद्ध करने से कतराने लगे.
‘दो लोग
मेरे साथ आओ. मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि सच
क्या है.’
दो
सिपाही साथ लेकर वीलीयन ज़ोरान की मूर्ती के निकट आया.
सिपाहियों
ने स्वयं जांच कर सत्य जाना.
‘अरे, यह तो
सच में पत्थर की एक मूर्ती है, ज़ोरान नहीं. ज़ोरान
मर चुका है,’ एक ने कहा.
‘अब
हमें किसी का भय नहीं, अब हमें कोई भय नहीं. हम इन
कायरों को युद्ध में हरा देंगे. विजय हमारी होगी. अगर
उनकी चौकी पर हज़ार सैनिक भी हुए तब भी हम
ही जीतेंगे.’ दूसरे ने कहा.
ब्राशिया
के सैनिकों ने पूर्वी चौकी पर दावा बोल दिया, हमला
अचानक हुआ था फिर भी तलाविया के सैनिक आश्चर्यचकित न हुए थे. वह इस
आक्रमण के लिए तैयार थे. भीषण लड़ाई हुई. दोनों
ओर के सैनिक पूरे उत्साह से लड़ रहे थे. कोई भी एक इंच पीछे हटने को
तैयार न था.
तभी ब्राशिया
के एक सैनिक ने ज़ोरान को अपने सामने खड़ा पाया. ज़ोरान
का युद्ध-वेश बहुत ही शानदार और प्रभावशाली था. उसका
चेहरा पत्थर की तरह कठोर था. उसकी आँखें क्रोध से लाल थीं. ब्राशिया
के सैनिक के होश उड़ गये.
उसने उस
ओर देखा जहां ज़ोरान की मूर्ती लगी थी. मूर्ती गायब थी. सैनिक
को समझ न आया कि यह चमत्कार कैसे हुआ था. उसे लगा कि किसी जादुई शक्ति
से मूर्ती जीवित हो गई थी. भय से वह सैनिक चिल्लाया, ‘पत्थर
की मूर्ति लड़ने आ गई है.’
ब्राशिया
के सभी सैनिकों ने अपने उस साथी की ओर देखा जो चिल्लाया था. सभी
ने ज़ोरान को देखा, सभी ने एक साथ ज़ोरान की मूर्ती की ओर देखा. सभी
ने देखा कि मूर्ती गायब थी. सभी ने समझा कि किसी जादुई
शक्ति से मूर्ती जीवित हो गई थी. सभी भयभीत हो गये.
ज़ोरान
ने शत्रु सैनिकों पर भयंकर हमला किया. देखते ही देखते सब तितर-बितर
हो गये. कुछ
मारे गये थे, अन्य बुरी तरह घायल हुए थे. सब अपनी
जान बचाने को यहाँ-वहां भागने लगे.
भागते
हुए कुछ सैनिकों ने पीछे मुड़ कर देखा. ज़ोरान की मूर्ती तो अपनी जगह
ही स्थापित थी. सब भौंचक्के रह गये. क्या
हुआ था,
उन्हें समझ ही न आया.
‘लगता
है मृत्यु के बाद ज़ोरान एक पत्थर का योद्धा बन गया है. जब
हमने चौकी पर हमला किया तब वह पत्थर की मूर्ती था, पर
अचानक वह युद्ध स्थल में आ गया और हमसे लड़ने लगा.’ एक
सैनिक ने कहा.
‘हमारे
वहां से भागते ही वह फिर पत्थर की मूर्ती बन गया है.
परन्तु कैसे? पत्थर की कोई मूर्ति लड़ कैसे सकती है?’ दूसरे
सैनिक ने कहा.
‘अवश्य
ही किसी जादुई शक्ति से ऐसा हो रहा है,’ तीसरे सैनिक ने कहा.
‘अवश्य
ही कोई जादूगर उनकी सहायता कर रहा है,’ पहले ने कहा.
‘कोई
मनुष्य नहीं, पत्थर का योद्धा हमसे लड़ रहा था,’ दूसरा
चिल्लाया.
‘ऐसे
पत्थर के योद्धा को हराना असंभव है,’ तीसरे ने कहा.
चारों
ओर यह बात फ़ैल गई कि मृत्यु के बाद ज़ोरान एक पत्थर का योद्धा बन गया था.
ब्राशिया
के राजा यंगहार्ज़ को इस कहानी पर विश्वास न हुआ. उसने चिल्ला
कर अपने सैनिकों से कहा, ‘तुम सब हार कर आये हो और अब मुझे एक मनगढंत कहानी
सुना रहे हो. क्या कोई आदमी पत्थर की मूर्ती बन सकता है? क्या
कोई पत्थर की मूर्ती आदमी बन सकती है? क्या पत्थर की मूर्ती युद्ध
कर सकती है? तुम सब कायर हो, तुम
सब को मृत्यु दंड मिलेगा.’
लेकिन
जब हर सैनिक ने वही कहानी सुनाई तो उसे कुछ संदेह होने लगा. इस
बार राजा ने तय किया कि वह स्वयं हमला करेगा. आठ सौ
चुने हुए सैनिकों के साथ राजा पूर्वी चौकी की ओर आया.
चौकी
के दक्षिण में जो वन था उस वन में सेना ने अपना शिविर बनाया. राजा
ने अपने विश्वस्त गुप्तचर सारी जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजे.
अगले
दिन गुप्तचरों ने बताया की तलाविया की चौकी में कोई सौ
सैनिक थे, ज़ोरान चौकी में न था, उसकी
मृत्यु हो चुकी थी. चौकी के निकट उसकी मूर्ती लगी थी.
‘महाराज, हमनें
पूरी तरह जांच कर ली है. तलाविया वालों ने पत्थर की मूर्ती वहां स्थापित
कर रखी है. मूर्ती इतनी अच्छी बनी है कि उसे देख कर हर
किसी को भ्रम हो जाता है कि स्वयं ज़ोरान खड़ा है और सीमा की निगरानी कर रहा है. वह
पत्थर की मूर्ती कभी जीवित नहीं हो सकती. न ही वह मूर्ती वहां से हटाई
जा सकती है. ऐसा लगता है कि तलाविया वालों ने पिछली लड़ाई
में कोई छल किया होगा. हमारे सैनिकों को लगा होगा कि मूर्ती जीवित हो
कर युद्ध करने लगी थी. यह अवश्य ही शत्रु की कोई चाल थी. हमारे
सैनिक उनकी चाल में फंस गये और डर कर मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए. अब सच
हमारे सामने है. डरने की कोई आवश्यकता नहीं है. हमारी
संख्या अधिक है. हमारे सैनिक बहादुर हैं और तलाविया से बदला
लेने को आतुर हैं. हमारी जीत निश्चित है.’
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