बारिश
नन्हा हाथी दौड़ा आया
सीधा नानी से आ टकराया.
नानी लेटी थी आँख मूंद कर
गन्ने खाए थे उसने मन भर.
सपनों में थी खोयी नानी
तभी आया कोई तूफानी.
नानी को कुछ समझ न आया
कौन था उससे आ टकराया.
झटपट उठ कर बैठी वो
घूर कर देखा नन्हें को.
‘किस मूर्ख से पड़ा है पाला
हरदम करता गड़बड़ घोटाला.
क्यों मारी तुम ने टक्कर
तुम तो हो पूरे घनचक्कर.’
नानी ने जोर से चपत लगाई
नन्हें हाथी को आ गई रुलाई.
नन्हा हाथी बोल न पाया
अंगुली उठा नानी को दिखलाया.
आकाश में घिर आये थे बादल
चारों ओर मची थी हलचल.
कब से था न पानी बरसा
पानी को था हर कोई तरसा.
बादल देख नन्हा रुक न पाया
झटपट घर को दौड़ा आया.
पर हड़बड़ में हो गई गड़बड़
नानी से उसकी हो गई टक्कर.
अब नानी का मन तरसाया
‘बेचारे पर क्यों गुस्सा आया.’
नानी समझ गई अपनी गलती
उसने कर दी थी थोड़ी जल्दी.
नानी ही तो थी सबसे कहती
‘जल्दी में बस होती है गलती’.
तभी पड़ी बूंदों की बौछार
नन्हें पर नानी को आया प्यार.
©आइ बी अरोड़ा
Really very nice and rythmic.
ReplyDeletethanks Abhijit
Delete