Sunday, 18 May 2014

उड़ान

इक दिन हाथी मौज में आया
उड़ने का उसका मन कर आया

झटपट दौड़ा भागा आया
कबूतर का दरवाज़ा खटखटाया

बड़े प्यार से पुछा उसको
“उड़ते कैसे हो बतलाओ मुझको”

कबूतर पहले तो चकराया
बात हाथी की समझ न पाया

सिर अपना फिर उसने खुजलाया
और हाथी को यह समझाया

“बड़ी तेज़ मैं पंख हिलाऊँ
दूर आकाश में उड़ता जाऊँ”

सुनकर हाथी हुआ उदास
पंख नहीं थे उसके पास

पंख भला वो पाता कैसे
बिना पंख वो उड़ता कैसे

फिर हाथी ने सोचा मन में
मुझ सा न कोई दूजा वन में

मैं क्यों रहूँ भला उदास
मुझ सी शक्ति किस के पास 
© आई बी अरोड़ा 

4 comments:

  1. अपने काबिलियत पर भरोसा जगाती रचना.

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  2. Nice one. Be what you are because you are unique.

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