Monday, 7 November 2016

नन्हें हाथी ने देखा सपना

नन्हा हाथी था मज़े से सोया

मीठे सपनों में था खोया,

 

बैठा था वह नदी किनारे

गन्नें पड़े थे कई सारे,

 

गन्ने चूस रहा था मस्ती में

शोर मचा कहीं बस्ती में,

 

‘भागो-भागो हाथी है आया

हाथी ने है हुड़दंग मचाया’,

 

भय से कांप रहा था हर कोई

निकट न उसके आया कोई,

 

पर एक बहादुर आगे आया

 हाथ में पकड़े डंडा लाया,

 

डंडा नन्हें के सिर पर दे मारा

उछल पड़ा नन्हा बेचारा,

 

झटपट देखा चारों ओर

सोचा ‘क्यों मचा है शोर?’

 

पर कोई दिखा आस न पास

चारों ओर थी घास ही घास,

 

तभी सिर से कुछ टकराया

नन्हे को तब समझ में आया,

 

 पेड़ के नीचे था वह सोया

मीठे सपनों में था खोया,

 

पेड़ पर थी बंदरों की टोली

बोले रहे थे वो अपनी बोली,

 

 

बंदरों ने था आम से मारा

उझल पड़ा था नन्हा बेचारा,

 

वहां नहीं थी कोई बस्ती

बंदरों पर थी छाई मस्ती,

 

वहां नहीं थे गन्नों के ढेर

पर सोते-सोते हो गई थी देर,

 

नन्हें को अब माँ की सुध आई

घर की ओर तब दौड़ लगाई.

 

©आइ बी अरोड़ा